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कहानी : मजदूर की विरासत

कहानी---- मजदूर की विरासत आर.के मौर्य दि ल्ली से सटे जनपद गाजियाबाद के एक गांव वैली में शाम के समय एक कृषक मजदूर बलवंत के घर में उसकी पत्नी रामरती प्रसव पीड़ा से कराह रही थी। बलवंत झोपड़ी के बाहर काफी तनाव में इधर-उधर घूम रहा था। बलवंत के पिता रामसिंह के माथे पर भी चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं। यह चिंता घर में संतानोत्पत्ति से अधिक इसके लिए होने वाले खर्च को लेकर थी। घर में एक रुपया भी नगदी नहीं थी। दाई बच्चा पैदा होेने पर पैसे मांगेगी तो कहां से देंगे, इसको लेकर रामसिंह ने बलवंत से कहा कि बेटा जाकर घर में रखे बर्तन बेचकर या फिर गिरवी रखकर कुछ पैसे ले आओ। बलवंत घर के बर्तन एक बोरे में लेकर गया और साहूकार के यहां से उनकेबदले 600 रुपये ले आया। झौपड़ी के अंदर से दाई काफी मायूसी में आई, उसने पुत्र पैदा होने के साथ ही रामरती के मरने की सूचना भी दी, जिसपर बलवंत बिलख पड़ा, जैसे उसपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। बलवंत अपने पिता रामसिंह से लिपटकर रोते-रोते बेहोश हो गया। प्रसव खर्च को आए पैसे रामरती के अंतिम संस्कार में काम आए। रामरती की मौत के बाद बच्चे को पालने की जिम्मेदारी बलवंत की म