क्या हो गया श्री श्री रविशंकर को आजकल देखा जा रहा है कि स्वयंभू आध्यात्मिक गुरुओं को लगता है कि तपस्या और लोक शांति के बजाय अशांति फैलाने के लिए राजनीतिक मुद्दे उछालने का शौक हो गया है। एक पाखंडी गुरु रामदेव जहां योग शिक्षक की भूमिका छोड़कर नेता बनने की जुगत में लगे हैं और कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं, वहीं अपने उत्पादों की ब्राडिंग के लिए मॉडलिंग भी कर रहे हैं। रामदेव को तो कोई अधिक गंभीरता से पहले ही नहीं लेता है, लेकिन जिस तरह से श्री श्री रविशंकर के भी विभिन्न स्थानों पर विवादित कार्यक्रम और बयान आ रहे हैं, उससे लगता है कि वह भी अब रामदेव के रास्ते पर चलने लगे हैं। उनका कहना कि सरकारी स्कूलों में नक्सली पैदा होते हैं, यह घोर निंदनीय और आपत्तिजनक है। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले ही इस देश में सर्वाधिक चिकित्सक, नेता, वैज्ञानिक, प्रशासनिक और न्यायिक अधिकारी है, और ये न भी हों तो रविशंकर जी की इस बात को कतई सही नहीं माना जा सकता है...
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Showing posts from March 21, 2012
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प्रकाश झा और अमिताभ बच्चन को बधाई मैंने आज प्रकाश झा की फिल्म आरक्षण देखी, जिसको देखकर मैं पहले ही स्पष्ट करना चाहता हूं कि इस फिल्म में आपत्तिजनक जैसी कोई बात नहीं लगती, जैसा कि तमाम दलित नेताओं विशेष रूप से उत्तर प्रदेश की निवर्तमान मुख्यमंत्री मायावती ने अपना विरोध जताया था और उत्तर प्रदेश में इसके प्रदर्शन पर ही रोक लगा दी थी। इस फिल्म की पटकथा वास्तव में बहुत अच्छी लिखी गई है और उसमें अमिताभ बच्चन और सैफ अली खान के साथ ही मनोज वाजपेयी का काम बहुत ही अच्छा रहा, जिन्होंने अपने-अपने पात्रों के साथ न्याय किया। मैं प्रकाश झा, अमिताभ बच्चन, सैफ अली तथा मनोज वाजपेयी को हार्दिक बधाई देना देता हूं।
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मोंटेक सिंह अहलुवालिया की अपनी परिभाषा शहरों में 28.65 रुपये और गांवों में 22.42 रुपये से अधिक कमाने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर बताना योजना आयोग के नए मानदंड देशवासियों के साथ मोंटेक सिंह अहलुवालिया का सबसे बड़ा धोखा है। इस मानदंड को हकीकत से कोसों दूर ही माना जाएगा और इसको योजना आयोग की बजाय इसके उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया की निजी परिभाषा माना जाना चाहिए। लोकसभा में तमाम नेताओं द्वारा जिस तरह अहलुवालिया और खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की खिंचाई की गई है, उससे मोंटेक को आत्ममंथन अवश्य करना चाहिए और आगे देशवासियों को धोखा देने से बचना चाहिए।