दिल्ली : सवाल मेरे हिंदू होने का नहीं, राष्ट्रीय एकता का है
एक मित्र ने मुझ से कहा कि नागरिकता संशोधन एक्ट, आपको तो किसी तरह से प्रभावित नहीं करता, तो फिर आप क्यों इसका विरोध कर रहा हैं ? उनका यह भी कथन था कि हम हिन्दुओं को तो खुश होना चाहिए कि एक ऐसा कानून बना है, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफ़ग़ानिस्तान में अपमान व पीड़ा की अवस्था में रह रहे हमारे सहधर्मी भाई-बहनों को भारत में शरण देने तथा नागरिकता देने का न्यायिक रास्ता साफ करता है ? उनका यह भी कहना रहा कि यह कानून तो पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है, क्योंकि यह पीड़ित ईसाई, बौद्ध, पारसी, सिखों तथा जैनों को भारत आने का रास्ता खोलता है। भारत ही तो ऐसा देश है जो इनकी पितृ भूमि है, इसके अलावा वे जाएंगे कहाँ ? यह सभी ऐसे मासूम प्रश्न हैं, जो किसी को भी आंदोलित करते हैं। अभी हमारे शहर में इस कानून के पक्ष में एक रैली आयोजित हुई। उसके अनेक नारों में से कुछ चुनिंदा नारे यह भी थे "बिछड़ों को वापिस लाना है एक नया राष्ट्र बनाना है। "सीएए के समर्थन में राष्ट्रवादी मैदान में"। इस बारे में कतई दो राय नहीं कि सन् 1947 में भारत की आज़ादी के समय भारत एक तरफ एक लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष भारत