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Sardar Bhagat Singh : तू न रोना कि तू है, भगत सिंह की माँ

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तू न रोना कि तू है, भगत सिंह की माँ (एक जून स्मृति दिवस)  स न् 1965 में शहीद ए आज़म सरदार भगत सिंह व उनके साथियों पर पहली बार एक फ़िल्म "शहीद" सिनेजगत में आई। यह वह दौर था जब देश की आज़ादी को बचाने व उसकी रक्षा करने का जज्बा पूरे जोरों पर था और उनमें था अग्रणी सरताज हीरो भगत सिंह। आर्य समाज के भजनीक शहरों, कस्बों व गांवों के चौराहों पर सरदर भगत सिंह के गीत, भजनों की लय पर ढोलकी, बाजे व चिमटों के संगीत पर सुनाया करते, जिनको सुनने के लिए सेंकड़ों  की भीड़ एकत्रित होती थी। मेरा परिवार  स्वतंत्रता संग्राम, कांग्रेस व आर्य समाज से जुड़ा हुआ था, इसलिए सभी को शाम ढलते ही जल्दी खाना बनाने व खाने के बाद इन कार्यक्रमों में जाने का जुनून होता था। सरदार भगत सिंह के परिवार की आर्य समाज से जुड़ाव गाथा सबसे ज्यादा प्रभावित करती कि किस प्रकार उनके दादा सरदार अर्जुन सिंह ने आर्य समाज के प्रवर्तक  स्वामी दयानंद सरस्वती से दीक्षा लेकर समाज सुधार का काम किया  था। उनके पिता सरदार किशन सिंह व चाचा सरदार अजीत सिंह ने देश की आज़ादी के लिए सजाए काटी। भगत सिंह की मां तथा बहनों की तरफ से भजनीक व