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Janvadi : जनवादी ? या वहशी !

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 जनवादी ? या वहशी ! के. विक्रम राव  चीनपरस्त भारतीयजन, खासकर मार्क्सवादी-कम्युनिस्टों से, यह प्रश्न है| जनवादी हक़, मानव-सहज गरिमा और सोचने तथा बोलने की आजादी की गणना वैश्विक मानव अधिकारों में की जाती है| उन्हें किसी राष्ट्र के भूगोल में सीमित नहीं किया जा सकता है| मानव और मानव के बीच विषमता करना अमान्य है| चिन्तक कार्ल मार्क्स की उद्घोषणा भी थी कि “दुनिया के मजदूरों एक हो|” अतः पड़ोसी लाल चीन में नागरिकों पर हो रहे अमानुषिक हिंसा पर दिल्ली में प्रतिरोध व प्रदर्शन न हो, नागवार लगता है| वियतनाम पर अमरीकी बमबारी तथा हंगरी में सोवियत टैंक द्वारा दमन पर भारत में जगह जगह विरोध, जुलूस निकाले गए थे|  इसीलिए पड़ोसी हांगकांग में चल रहे जनसंघर्ष के दौरान 71-वर्षीय मीडिया संपादक-स्वामी लाई ची यिंग (जिम्मी लाई) को रात ढले उनके शयनकक्ष से पकड़कर, उनकी बाहें मरोड़कर, पीठ पीछे ले जाकर हथकड़ी डालकर, गुमनाम हिरासत में ले जांए| फिर आजीवन कारावास की सजा हो जाये| जघन्य हिंसा ही तो है|  धरा पर कहीं भी अन्याय हो तो साम्यवादी तथा समाजवादी भर्त्सना में हमेशा आवाज उठाया करते थे|  अब सब कहां हैं ?  क्या अंधे हो गए, ग