Fanishwar Nath Renu : साहित्यकार सरहद की कैद में कर्मों ?
साहित्यकार सरहद की कैद में क्यों ? के. विक्रम राव फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशती शुरू हुए चार माह (4 मार्च से) बीत गए| एक तिहाई काल तो गुजर गया| कोरोना का बहाना मिल गया| फिर भी हिंदी भूभाग में, खासकर दोआबा में, कोई तेज साहित्यिक स्पंदन अथवा हलचल न दिखी, न सुनाई दी| मानों वे मुगलसराय (अब डीडीयू जंक्शन) के पूरब तक ही बांध दिए गए हों| वहां भी बस अररिया से पूर्णिया तक के साठ किलोमीटर के दायरे में ही| हालाँकि हिंदी-धरा तो काफी व्यापक है| अर्थात, अगर “भारत यायावर” जी, डॉ. रामबचन राय और पूर्व विधायक प्रेमकुमार मणि को छोड़ दें, तो अन्य नाम खोजने पड़ेंगे| सवाल यही कि नदीतट तक ही हिंदी सीमित क्यों ? वह संगम तट से सागर तट तक है| क्योंकि डॉ. धर्मवीर भारती बांद्रा तक पहुंचे थे| भला हुआ कि अपनी संतानों के कारण अमृतलाल नागर चौक तथा भगवती चरण वर्मा “चित्रलेखा” बिल्डिंग (महानगर) तक कैद नहीं रहे| उनका व्यक्तित्व देशव्यापी रहा| फणीश्वरनाथ रेणुजी को साहित्य से हटकर भी आम भारतीय जानता है| विशेषकर हम जेपी के लोग रेणु को तानाशाही से लड़े धनुर्धर के रूप में देख चुके हैं| जो पीढ़ी गुजर गई, उसने ...