कोरोना लॉकडाउन : वक्त सवालों का नहीं, राष्ट्रधर्म का है
हममें से किसी की भी नासमझी व मूर्खता न केवल पूरे समुदाय को नफरत व परहेज का पात्र बना देती है, वहीं पूरे मुद्दे को ही बदल देती है। ऐसा सब कुछ निज़ामुद्दीन दिल्ली में स्थित तब्लीगी मरकज़ के वाकये से हुआ है। इसको यह कहकर दुरुस्त नहीं किया जा सकता कि फलां मंदिर, तीर्थस्थल अथवा अन्य स्थान पर भी तो यात्री फंसे हैं। तब्लीगी मरकज़ के इस घटनाक्रम ने उन सभी लोगों को भी बचाव के दायरे में ला दिया है, जो मुस्लिम हितों के पैरोकार थे तथा हर बात के लिए उन्हें ही जिम्मेवार ठहराने के घृणात्मक आरोपों के विरुद्ध उन इल्ज़ामों का विरोध कर स्वयं मुस्लिम परस्त सुनने का काम करते थे। सब काम सरकार के खाते में डालना हमें हमारी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकता। सबको अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए। हमें यहां भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की भी उदारता का स्वागत करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा कि आज समय दोषारोपण का नहीं, अपितु उसे ठीक करने का है। मुझे गर्व है कि मेरा जन्म एक राष्ट्रवादी आर्य समाजी- कांग्रेसी परिवार में हुआ। आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन जैसे सशक्त देशभक्त संगठन ...