कोरोना लॉकडाउन : वक्त सवालों का नहीं, राष्ट्रधर्म का है
हममें से किसी की भी नासमझी व मूर्खता न केवल पूरे समुदाय को नफरत व परहेज का पात्र बना देती है, वहीं पूरे मुद्दे को ही बदल देती है। ऐसा सब कुछ निज़ामुद्दीन दिल्ली में स्थित तब्लीगी मरकज़ के वाकये से हुआ है। इसको यह कहकर दुरुस्त नहीं किया जा सकता कि फलां मंदिर, तीर्थस्थल अथवा अन्य स्थान पर भी तो यात्री फंसे हैं। तब्लीगी मरकज़ के इस घटनाक्रम ने उन सभी लोगों को भी बचाव के दायरे में ला दिया है, जो मुस्लिम हितों के पैरोकार थे तथा हर बात के लिए उन्हें ही जिम्मेवार ठहराने के घृणात्मक आरोपों के विरुद्ध उन इल्ज़ामों का विरोध कर स्वयं मुस्लिम परस्त सुनने का काम करते थे। सब काम सरकार के खाते में डालना हमें हमारी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकता। सबको अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए। हमें यहां भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की भी उदारता का स्वागत करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा कि आज समय दोषारोपण का नहीं, अपितु उसे ठीक करने का है।
मुझे गर्व है कि मेरा जन्म एक राष्ट्रवादी आर्य समाजी- कांग्रेसी परिवार में हुआ। आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन जैसे सशक्त देशभक्त संगठन में मेरी शिक्षा-दीक्षा हुई तथा स्व. निर्मला देशपांडे, अरुणा आसिफ अली, मोहित सेन जैसे प्रगतिशील लोगों का संपर्क मिला और अब स्वामी अग्निवेश तथा डॉ एसएन सुब्बाराव जैसे व्यक्तित्वों के सानिध्य में काम करने का अवसर मिल रहा है। यही कारण है कि सांप्रदायिकता, जातीयता एवम् क्षेत्रीयता जैसे विषैले ज़िषाणु हमें कभी भी संक्रमित नहीं कर पाए हैं।
मुझे कार्ल मार्क्स, लेनिन और स. भगतसिंह जैसे अनीश्वरवादी चिंतकों के न केवल विचारों को पढ़ने का अवसर मिला बल्कि मुझे उनके जन्म व कार्यस्थलों पर भी जाने का अवसर मिला। उनके विचारों से सहमत होने के बावजूद मैं अपने बाल्यावस्था के आर्य समाजी संस्कारो से मुक्त न हो सका । मेरी पत्नी उदयपुर(राजस्थान) के एक पौराणिक वैष्णव परिवार से है। जब मैंं अपने आर्य समाजी स्वभाव को न छोड़ सका। अतः अपनी पत्नी के संस्कारों को भी छोड़ने का मैंने कभी दुराग्रह नहीं किया। उनकी आस्था का सम्मान करते हुए मैंने कभी भी उनके साथ किसी देवालय अथवा किसी अन्य धार्मिक स्थान पर जाने की मनाही नहीं की। यह मेरी समझ रही कि मैंने जाने में तो उनका साथ दिया, परन्तु वहाँ भी अपनी आस्था का पालन किया।
शायद इस हमारे पारिवारिक संस्कारों का ही प्रभाव है कि मुझे न केवल इस देश से अपितु इस देश में रहने वाले हर निवासी से प्यार है। जब भी कोई धर्म अथवा जाति के नाम पर किसी के प्रति घृणा फैलाने का काम करता है तो स्वयं को उसके विरुद्ध खड़ा पाया है। इसीलिए सन् 1984 में सिख विरोधी दंगो में खालिस्तान समर्थक देशद्रोही, 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस पर रामद्रोही, 2002 में गुजरात जनसंहार के विरोध के कारण पाकिस्तान परस्त व अब धर्म विरोधी राष्ट्रद्रोही शब्दों से से "सम्मानित" होता रहा हूं।
मेरा परिवार नियमित यज्ञ प्रेमी है। ऐसा मेरी व्यक्तिगत आस्था है। जिसे मैं किन्ही भी तर्को-कुतर्को के बावजूद नही छोड़ पाया हूं। मेरी मूर्ति पूजा में कतई आस्था नहीं है पर मैं अपनी मूर्तिपूजक पत्नी व नास्तिक पुत्र से कभी भी झगड़े पर नहीं उतरा।
आज के इस संकट के समय में एक ही धर्म है कि हम मानव जाति को कोरोना की महामारी से हर प्रकार से बचाएं। इसकी कोई अभी तक दवाई ईजाद नहीं हुई है। अनुभवी चिकित्सकों की एक ही सलाह है कि एकांतवास का पालन करें। बहुत प्रसन्नता की बात है कि सभी धर्म संस्थान आज बन्द होकर आस्थावान लोगों को घरों में ही प्रार्थना-पूजा-इबादत की सलाह दे रहे हैं। इसके बावजूद ऐसे भी लोग हैं, जो इसके विपरित चुपचाप ऐसे कार्य भी कर रहे हैं, जो किसी भी दृष्टि से हितकारी नहीं। आज की सबसे बड़ी धर्म आज्ञा अथवा फतवा यही है कि हम सरकार व चिकित्सकों के द्वारा नियमों का पालन करें। सरकार के गलत निर्णयों की समय आने पर खूब आलोचना करेंगे। जरूर सवाल पूछेंगे की घंटे-घड़ियाल, थाली-ताली पिटवाने का क्या परिणाम निकला ? अयोध्या में रामलला की मूर्ति स्थापित करवाने में मुख्यमंत्री जी को क्या जल्दी थी अथवा मध्यप्रदेश में सरकार गिराकर तुरंत शपथ ग्रहण में भारी संख्या में भीड़ जुटाने की क्या प्रमुखता थी? कर्नाटक में मुख्यमंत्री जी एक विवाह समारोह में सरकारी निर्देशों की अवलेहना करने क्यों पहुंचे ? हां यह भी की "नमस्ते ट्रंप" के नाम पर लाखों लोगों को इस बीमारी के संक्रमण के बावजूद क्यों इकठ्ठा किया गया? बिल्कुल सवाल पूछेंगे की जब 30 जनवरी को केरल में पहले केस का पता चल गया था तो फिर 22 मार्च तक क्यों लापरवाही बरती गई? यह भी मजदूरों की घर वापिसी के लिए क्यों समयानुसार व्यवस्था नहीं की गई और की भी गई तो ऐसी ढुलमुल क्यों, आदि -2 । पर आज नहीं समय आने पर। आज का राष्ट्रधर्म यही है कि हम घरों में रहें, प्रवासी मजदूरों को पलायन करने से रोकें। गरीब व भूखों के लिए रोटी का इंतज़ाम करें। वरना शास्त्र आदेश है कि *बुभिक्षतम किं न करोति पाप पूंसाम* भूखा आदमी क्या पाप नहीं करता ?
- हाली पानीपती ने 120 साल पहले कहा था -
यही है इबादत,यही दीनों इमां,
की काम आए दुनियां में इंसां के इंसा।
की काम आए दुनियां में इंसां के इंसा।
- साभार : राम मोहन राय, पानीपत (हरियाणा)
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