Posts

Showing posts from June 4, 2021

Modi & Hanuman ji : जब मोदी बने हनुमान

Image
 जब मोदी बने हनुमान... भारतमित्र, किन्तु अतीव जुगुप्सित ''मसीहा''        इसके पहले कि आप आगे पढ़कर इस राजनेता को पूर्णतया कुत्सित और सिर्फ घृणास्पद मान लें, उससे जुड़ी तीन नीक बातों का उल्लेख पहले कर दूं। जब नरेन्द्र मोदी ने ब्राजील गणराज्य के इस छाछठ—वर्षीय 38वें राष्ट्रपति तथा भारतमित्र जायूर मसीहा बोल्सोनारो को उनके बीस करोड़ नागरिकों हेतु कोविड—19 कोवैक्सीन खुराक भेजी थी तो उन्होंने आभार में कहा था कि : ''हनुमान संजीवनी लाये थे, रामानुज को बचाया था। वैसे ही कोविड—19 से निबटने हेतु मोदीजी ने हमें संजीवनी भेजी है (22 जनवरी 2021)।'' एक उपकार ब्राजील ने किया था कि भारत के वित्तीय उत्कर्ष के लिये चीन, रुस तथा दक्षिण अफ्रीका के साथ परस्पर सहयोग के तीन गठबंधन रचे। इसे ''ब्रिक्स, आईबीएस तथा बीएएसआईसी'' नाम दिया। इससे भारत को विकास के अपार अवसर मिले।        अगली ​और अन्तिम कृपा की है कि गत गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2020)  पर वे नयी दिल्ली में विशेष अतिथि थे। दक्षिण एशिया और लातिन अमेरिका के इन दोनों राष्ट्रों की डेढ़ अरब जनता के दो नुमाइन्दे साथ

Arya Samaj & UNITED PUNJAB (3) : आर्य समाज ने महिलाओं को बराबर माना

Image
आर्य समाज ने महिलाओं को बराबर माना  स्वा मी दयानंद सरस्वती ने अपनी संपूर्ण कार्यों में सर्वोपरि महिलाओं की शिक्षा को रखा। अपने बाल्यकाल में ही अपनी अत्यंत प्रिय बहन का वियोग उन्होंने सहा था। उसकी मृत्यु के बाद वे कई दिन तक शोक ग्रस्त तथा उद्विग्न रहे। अपनी माता के कहने पर ही उस मूलशंकर ने शिवरात्रि के अवसर पर पूरी रात जाग कर शिव  प्राप्ति का संकल्प लिया था।         स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना के बाद तो महिलाओं के सशक्तिकरण ,उद्धार एवं उन्हें शिक्षित करने का अनुप म कार्य किया। उनसे पूर्व ब्राह्मण समाज में यह धारणा थी कि, *स्त्री शूद्रौ नाधीयातामिति श्रुते:* अर्थात स्त्री और शूद्र न पढ़ें यह श्रुति है । परंतु दयानंद ने इसके उत्तर में कहा कि सभी स्त्री-पुरुष अर्थात मनुष्य मात्र को पढ़ने का अधिकार है। उन्होंने उन पौराणिक ग्रंथों की भर्त्सना की  जिसमें महिलाओं सहित अन्य पिछड़े दलित वर्गों को शिक्षा के अधिकार से वंचित किया गया था। अपने पक्ष के समर्थन में वेद के इस मंत्र को, ' *यथेमां वाच कल्याणीमावदानी जनेभ्य:* ब्रह्मराजन्याभ्या शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय' अर्था

BSP IN UP : यूपी: बसपा हाशिये की ओर

Image
   यूपी: बसपा हाशिये की ओर   यू पी में अगल वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक गलियारे में नेताओं ने राजनीतिक पंडितों के जरिए अपना भविष्य बनाने के ल‌िए कुंडली देखना शुरू कर दिया है और आ रही ग्रहों की बाधाओं को दूर करने के ल‌िए उपाय करने की ओर बढ़ने लगे हैं। भाजपा इन दिनों किसी भी नुकसान से बचने के लिए कदम फूंक-फूंक कर उठा रही है, वहीं बसपा कील-कांटे निकालकर अपने को मजबूती के साथ खड़ा करने की कोशिश कर रही है। वह अलग बात है कि वह 19 विधायकों से सात पर पहुंच गई है और अपने कई निष्ठावान नेताओं और कार्यकर्तांओं को बाहर का रास्ता दिखा चुकी है। इस  मोर्चे में ब्राह्मणवादी नेता सतीश मिश्रा निरंतर मजबूत हो रहे हैं। लगता है, यह नेताजी ही किसी विशेष योजना के तहत इस पार्टी से दलितों, पिछड़ों तथा मुस्लिम नेताओं को बाहर निकलवाकर  न जाने किस वर्ग की पार्टी बनाना चाहते हैं। इससे यह भी लगता है कि यह पार्टी अपने मूल मिशन के बजाय केवल दो लक्ष्य बनाए हुए हैं पैसा और सत्ता। लोगों को लगता है कि बहनजी बोल्ड निर्णय लेती हैं, लेकिन वे निर्णय क्यों और कैसे और कितने पार्टी के लिए नुकसान वाले है, इसपर कोई

Arya Samaj and Mahrishi Dayanand : वर्ण व्यवस्था और छुआछात पर चोट की महर्षि दयानंद ने

Image
  वर्ण व्यवस्था और छुआछूत पर चोट की महर्षि दयानंद ने म हर्षि दयानंद सरस्वती का सबसे ज्यादा प्रभाव संयुक्त पंजाब (पंजाब_पाकिस्तान, पंजाब-भारत, वर्तमान हरियाणा) के साथ-साथ पश्चिम उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा दक्षिणी राजस्थान में पड़ा। इसका कारण यह भी हो सकता है कि ये सभी इलाके कृषि प्रधान थे तथा इससे जुड़ी तमाम किसान जातियां एक दूसरे पर निर्भर थीं। मेहनती लोगों के पराक्रम ने भी महर्षि दयानंद के विचारों को उत्साहित किया।      स्वामी दयानंद सरस्वती जन्मना ब्राह्मण, वर्ण एवं जाति से थे।  इसके विपरीत वे अस्पृश्यता, भेदभाव तथा जन्मजात वर्ण व्यवस्था के विरुद्ध थे और जब वे अपने वक्तव्यों में कहते कि अस्पृश्यता वेद विरुद्ध है, महिलाओं को भी पुरुषों के समान बराबर के अधिकार हैं तथा किसी व्यक्ति के वर्ण को उसके जन्म से नहीं, उसके गुण, कर्म, स्वभाव से जाना जाएगा तो इस क्षेत्र की तमाम श्रमिक जातियां जिसमें विशेष तौर पर जाट, गुर्जर, रोड, राजपूत ,सैनी व दलित जातियां थी, वे उनके पीछे लामबंद होने लगीं।    जमींदारों ने भी अपने खेतों को बेघर व बेजमीन दलित लोगों