न्याय अथवा अन्याय ? केवल दृष्टिकोण की विषमता है.... के. विक्रम राव मानवाधिकारवादियों, लोकतंत्र-प्रेमियों, जनवादी योद्धाओं और विविध धनोपासक एनजीओ का समूह निश्चित ही विकास दुबे की ‘हत्या’ को वीभत्स पुलिसिया अपराध करार देगा। सर्वोच्च न्यायालय में जांच हेतु याचिका दायर हो चुकी है। विपक्ष तो कमर कसकर धमाल करेगा ही| वे सब कागनेत्र से ही इस परिदृश्य को देखेंगे| मानवतावादियों के दहशत के कारण यह दिवंगत द्विज, दो वेदपाठी (द्विवेदी), यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मण, पण्डित विकास दुबे पुलिस के मुठभेड़ के बजाय उसकी गिरफ्त में रहता तो ? वह पहले केवल हिरासत (पुलिस तथा न्यायिक जेल) का निवासी बनता। फिर अभियोग पत्र (चार्जशीट) पुलिस खरामा-खरामा साठ दिनों में भी तैयार न कर पाती, तो जमानत लेकर, सीना तानकर छुट्टा घूमता, जैसा गत तीन दशकों से वह करता रहा है। रासुका भी लगता तो एक सीमित अवधि तक ही। भाजपाई विधायक कुलदीप सिंह सेंगर भी सालों तक मुक्त नागरिक जैसा था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ समय पूर्व...