Popular posts from this blog
मायावती समझें खतरे की घंटी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अब यह बात साफ होने लगी है कि सवर्णों को लुभाने के चक्कर में बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लग गई है। दलितों में गैर जाटव वोट के बंटने से बसपा क ो भारी नुकसान हुआ। महापुरूषों के सम्मान में पार्कों और स्मारकों के जरिए दलित स्वाभिमान की आंच तेज करके उनके एकमुश्त वोट पाने की हसरत पर सपा ने जहां पानी फेर दिया, वहीं अन्य राजनीतिक दलों ने भी इसपर गंभीरता से काम किया है। जिस बसपा ने 2007 के विधानसभा चुनाव में दलित बाहुल्य सुरक्षित सीटों में 62 पर कब्जा किया था, उसमें से वह इस बार 47 सीटें हार गई। वह केवल 15 सीटें ही जीत पाई, जबकि मुख्यत: पिछड़े वर्ग की पार्टी मानी जाने वाली सपा ने 58 सीटें जीतकर संकेत दिया है कि अब दलितों में जाटव और चमार जाति के अलावा दूसरी जातियों को साथ लेकर अच्छी सफलता हासिल की जा सकती है। इस चुनाव में इसी रणनीति पर कमोबेश सभी राजनीतिक दलों ने काम किया है, चूंकि सत्ताधारी बसपा विरोधी लहर में जनता के समक्ष समाजवादी पार्टी विकल्प बनी तो उसको थोक में वोट मिल गया और अगले चुनाव में...
कहानी : मजदूर की विरासत
कहानी---- मजदूर की विरासत आर.के मौर्य दि ल्ली से सटे जनपद गाजियाबाद के एक गांव वैली में शाम के समय एक कृषक मजदूर बलवंत के घर में उसकी पत्नी रामरती प्रसव पीड़ा से कराह रही थी। बलवंत झोपड़ी के बाहर काफी तनाव में इधर-उधर घूम रहा था। बलवंत के पिता रामसिंह के माथे पर भी चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं। यह चिंता घर में संतानोत्पत्ति से अधिक इसके लिए होने वाले खर्च को लेकर थी। घर में एक रुपया भी नगदी नहीं थी। दाई बच्चा पैदा होेने पर पैसे मांगेगी तो कहां से देंगे, इसको लेकर रामसिंह ने बलवंत से कहा कि बेटा जाकर घर में रखे बर्तन बेचकर या फिर गिरवी रखकर कुछ पैसे ले आओ। बलवंत घर के बर्तन एक बोरे में लेकर गया और साहूकार के यहां से उनकेबदले 600 रुपये ले आया। झौपड़ी के अंदर से दाई काफी मायूसी में आई, उसने पुत्र पैदा होने के साथ ही रामरती के मरने की सूचना भी दी, जिसपर बलवंत बिलख पड़ा, जैसे उसपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। बलवंत अपने पिता रामसिंह से लिपटकर रोते-रोते बेहोश हो गया। प्रसव खर्च को आए पैसे रामरती के अंतिम संस्कार में काम आए। रामरती की मौत के बाद बच्चे को पालने की जिम्मेदारी बलवंत की म...
Comments
Post a Comment