मुलायम के समाजवाद की पोल खुली
वैसे तो मुलायमसिंह यादव अपने को डॉ. राममनोहर लोहिया के पथ पर चलने का दावा करते हैं, लेकिन जिस तरह अखिलेश यादव के शपथ ग्रहण में करोड़ों रुपये की बर्बादी की गई, वह उनके समाजवाद की पोल खोलने भर के लिए काफी है। अच्छा होता कि अखिलेश यादव राजभवन में ही किसी औपचारिकता में पड़े बगैर सादगी से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर नई मिसाल पैदा करते, लेकिन शायद अब समाजवाद भी पूंजीवाद से आकर्षित हो रहा है, जिसका पहले भी मुलायमसिंह यादव जी की कार्यशैली से कई बार मिल चुका है। पहले तो इसके लिए उनके खास सिपाहसलार अमरसिंह को इसके लिए जिम्मेदार माना जाता था और समय-समय पर इसके लिए अपने को खाटी के समाजवादी कहे जाने वाले कई नेता अमरसिंह को कोसते हुए दिखाई देते थे, लेकिन अब तो अमरसिंह कहीं दूर तक भी नहीं हैं फिर क्यों समाजवाद पूंजीवाद को ओढ़ रहा है? क्यों नहीं समाजवादी इसपर चोट कर रहे हैं। बेटे को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले को भी कहीं से समाजवादी विचारधारा से नहीं जोडा जा सकता है। केवल मुसलिम लड़कियों को ही शादी और आगे की शिक्षा के लिए 30 हजार रुपये की सहायता राशि कौन सी समाजवादी विचारधारा है? क्या अन्य किसी समाज की लड़कियों को यह राशि दिया जाना समाजवादी विचारधारा नहीं है?
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