जब न्याय दिलाने के माध्यम पुलिस और वकील आपस में मारपीट कर सड़कों पर मोर्चाबंदी कर रहे हैं तो फिर आम आदमी किससे उम्मीद करेगा ? सरकारें तमाशबीन बनती जा रही हैं। दिल्ली में तो जैसे कुछ महीनों से अराजकता का माहौल बना हुआ है। समस्याओं के समाधान खोजकर उनके निराकरण पर ध्यान नहीं है। बस हर मामले और समस्या को आगामी चुनावी आईने में फिट करने की कोशिश की जा रही है। पीड़ित हर वर्ग को सरकारी दफ्तरों में भटकते देखा जा रहा है या आक्रोशित होकर मोर्चाबंदी कर सड़कों पर दिख रहा है, इसे कम से कम राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में तो गंभीरता से लिया ही जाना चाहिए। यह नहीं एक दूसरे पर शब्दों के बाण चलाने शुरू कर देने चाहिए।