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Showing posts from March 18, 2012
ममता बनर्जी कब तक ब्लैकमेल करेंगी ? केंद्र में जब से यूपीए की सरकार में ममता बनर्जी शामिल हैं, तब से ही वह किसी न किसी मुद्दे पर केंद्र सरकार को ब्लैकमेल कर रही हैं और अब की बार तो उन्होंने हद ही कर दी है, जब रेल बजट पेश होते ही उन्होंने अपनी पार्टी के प्रतिनिधि के तौर पर रेल मंत्री बने दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री पद से हटने का फरमान सुना दिया। शुरू में दिनेश त्रिवेदी भी काफी अकड़ फूं में थे। उन्होंने संसद भवन में ममता बनर्जी को आवंटित कक्ष के बजाय दूसरा कक्ष आवंटित करने पर हंगामा कर दिया था और अब जब वह रेल मंत्री के रूप में बजट पेश कर रहे थे, तो शायद भूल ही गए कि वह खुद कुछ नहीं है बल्कि एक तानाशाह प्रवृत्ति अपना रहीं ममता बनर्जी के प्रतिनिधि मात्र हैं। वैसे तो उनका कहना सही था कि देश हित के सामने पार्टी या व्यक्ति हित को नहीं देखा जाना ‌चाहिए, लेकिन वह यह बात समझ नहीं पाए कि सुदीप बंधोपध्याय किस तरह उनको ममता बनर्जी के दरबार में नीचे गिराने का काम कर रहे हैं।      ‌‌त्रिवेदी यह भी भूल गए कि उनकी अपनी कोई हैसियत नहीं है। वह तब तक ही मंत्री हैं, जब तक ममता जी चाहती ह
मुश्किल  है  अपना  मेल  प्रिये, यह  प्यार  नहीं  है  खेल  प्रिये तुम   M.A फर्स्ट  divison  हो , मै ं  हुआ  मेट्रिक  फ़ैल  प्रिये मुश्किल  है  अपना  मेल  प्रिये, यह  प्यार  नहीं  है  खेल  प्रिये तुम   फौजी  अफसर  की  बेटी, मै ं  तो  किसान  का   बेटा  हूं तुम   राबड़ी  खीर  मलाई  हो , मै ं  तो  सत्तू  सपरेटा  हूँ तुम   A.C घर  में  रहती  हो , मै ं  पेड़  के   नीचे  लेटा हूँ तुम   नयी  मारुती  लगती  हो , मै ं  स्कूटर  लम्ब्रेटा  हूँ इस  कदर  अगर  हम  छुप-छुप  कर  आपस  में  प्रेम  बढ़ाएंगे तो  एक  रोज़  तेरे  daddy अमरीश  पूरी  बन  जायेंगे सब  हड्डी  पसली  तोड़  मुझे, भिजवा  देंगे  वोह  जेल  प्रिये मुश्किल  है  अपना  मेल  प्रिये, मुश्किल  है  अपना  मेल  प्रिये तुम   अरब  देश  की  घोड़ी  हो , मैं   हूँ  गधे   की  नाल  प्रिये तुम   दिवाली  की  बोनुस  हो , मै ं  भूखों  की  हड़ताल  प्रिये तुम   हीरे  जड़ी  तश्तरी  हो , मै ं  अल्लुमिनियम  की  थाल  प्रिये तुम   चिक् के न  सौप  बिरयानी  हो , मै ं  कंकड़  वाली  दाल  प्रिये तुम   हिरन  चौकड़ी  भारती  हो , मै ं  हूँ  कछुए  की  चाल  प्रिये
 STORY   Once, a Chinese traveller came to meet Kautilya (Chanakya). It was dusk and darkness had just started to set in. When the traveller entered Chanakya's room, he saw that Chanakya was busy writing some important papers under the lighting of an oil lamp. You know that there were no bulbs or tube lights in those days, since there was no electricity. So, in those days people used to light oil lamps. Chanakya smilingly welcomed his guest and asked him to sit. He then quickly completed the work that he was doing. But do you know what did he do on completing his writing work? He extinguished the oil lamp under which he was writing and lit another lamp. The Chinese traveller was surprised to see this. He thought that maybe this was a custom followed by Indians when a guest arrives at their home. He asked Chanakya, "Is this a custom in India, when a guest arrives at your house? I mean, extinguishing one lamp and lighting the other?" Chanakya replied, &quo