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Showing posts from July 21, 2021

Eid Ul Adha : ईद पर गमजदा रहे कई मुसलमान

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 ईद पर गमजदा रहे कई मुसलमान !! के. विक्रम राव           अ रब, पठान, मलमो तथा अन्य सुन्नी—बहुल फिरकों के मुल्कों में ईद—उल—अजाह मनाया तो गया, मगर इस त्याग, प्रेम और बलिदान के प्रतीक पावन पर्व पर आगजनी, खूरेंजी, बमधमाका और सहअकीदतमंदों पर हिंसा बेतहाशा हुयी। काबुल के राष्ट्रपति भवन पर नमाज अता करते हुए सदरे जम्हूरिया अशरफ घनी तथा पैगंबर के कई अनुयायियों पर तालिबानियों ने राकेट और गोले दागे। ईस्लामी स्टेट आफ ईराक एण्ड सीरिया के आतंकियों ने अपनी ''अमाक'' संवाद समिति द्वारा प्रसारित किया था कि इन गद्दारों पर हमला जायज है। अमाक एजेंसी का नामकरण किया पत्रकार बारा काडेक उर्फ रायन मशाल ने। वह अमेरिकी बमबारी में मारा जा चुका है। संवाद समिति का नाम भी महत्वपूर्ण है। दक्षिण तुर्की के अमूक घाटी के मजहबी स्थल से जुड़ा है। वहीं इन इस्लामी गणराज्यों से शिया, इबादी, अहमदिया, आगा खान के शिष्यों आदि के संहार का निर्देश जारी होता है। इसी के खलीफा अबु बकर अल बगदादी यदाकदा जलवा अफरोज हुआ करते थे। इन्हें बाद में अमेरिकी सैनिकों ने मार डाला।        ईद के पर्व पर बगदाद के समीप भीड़भाड़ वाले सद

News Peper : चांद सा हो मुख पृष्ठ भी !

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चांद सा हो मुख पृष्ठ भी ! के. विक्रम राव      मा नव के मुखड़े की भांति अखबार का प्रथम पृष्ठ उसका परिचायक होता है। अत: हम श्रमजीवी पत्रकारों की अनवरत कशमकश रहती है कि दिलचस्प रीति से आकर्षक समाचार द्वारा पाठक के चितवन को खींच लें और पढ़ने पर बाध्य कर दें। अर्थात ऐसा हो फ्रंटपेज। अब इसके लिए जरूरी है कि उस अवसर की खबर भी तो जोरदार हों !  इसी कारण से रिपोर्टर और सबएडिटर अमूमन नकारात्मकता वाली बात को खोजता है क्योंकि वही खबर बनती है। मगर ऐसा सदैव नहीं होता है।   मसलन आज ही का दिन (20 जुलाई 1969) था, जब भूमंडल डुलानेवाली इतनी बड़ी घटना हुई, जो न इसके पहले कभी हुई थी, न इसके बाद आज तक हुई है। स्थल था विश्व के बाहर, अंतरिक्ष में। दूर शशिलोक पर अमेरिकी पायलेट नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर पैर रखा था।      दुनिया से वह जीते जी परलोक में चला गया था। भले ही उसकी इस हरकत के परिणाम से शायर और कवियों में, प्रेमी युगलों में ​काफी नीरसता व्यापी थी। नैराश्य भी। अप्राप्य अब हासिल हो रहा था।  वह रविवार बड़ा यादगार रहा। सर्वोत्तम खबरिया रात थी। वह रिकॉर्ड गत शती में नहीं, अभी तक भी टूटा नहीं। चांद