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Showing posts from December 8, 2019

म्यूजिक वीडियो वास्ते ने मचाई धूम

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वुमेन पावर

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महिला सुरक्षा के 200 एप में 40 ही काम के

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प्याज : फर्श से अर्श तक... आंसू ही आंसू

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 वास्तव में प्याज के दामों ने अच्छे-अच्छो अच्छे-अच्छो के आंसू निकाल दिए हैं। इसी की यह शोधपूर्ण रिपोर्ट है।

लता मंगेशकर 28 दिन बाद अस्पताल से डिस्चार्ज

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भारत रत्न प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर (90) अस्पताल से इलाज के बाद स्वस्थ होकर घर लौट आई हैं । लता जी को 28 दिन पहले गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया था । अब वह स्वस्थ हैं।लता जी ने खुद भी ट्वीट कर यह जानकारी दी है।

मध्यप्रदेश : संजय द्विवेदी बने मूल्यांकन मीडिया के अध्यक्ष

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मूल्यानुगत मीडिया अभिक्रम समिति(Society of Media Initiative for Values) की महापरिषद का चुनाव कार्यक्रम इंदौर के ओम शांति भवन में संपन्न हुआ। चुनाव में समिति के संयोजक, संचालन परिषद एवं कोर कमेटी के सदस्य शामिल हुए। महापरिषद चुनाव में सर्वसम्मति से संचालन परिषद का अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद् प्रो. संजय द्विवेदी को चुना गया। इसके साथ ही रंजीता ठाकुर (भोपाल) को संचालन परिषद का सचिव, वरिष्ठ पत्रकार राजेश राजोरे (संपादक : देशोन्नति, मराठी दैनिक,बुलढाना) को उपाध्यक्ष एवं प्रभाकर कोहेकर (सामाजिक कार्यकर्ता, इंदौर) को कोषाध्यक्ष चुना गया। परिषद में सर्वश्री प्रो. संजीव भानावत ( जयपुर), वैभव वर्धन (टीवी पत्रकार, दिल्ली), संदीप कुलश्रेष्ठ (उज्जैन) और सुशांत बेहरा सदस्य चुने गए। इसी प्रकार कोर कमेटी के अध्यक्ष सोमनाथ वडनेरे (जलगांव) होंगें तथा सदस्यों में वरिष्ठ पत्रकार एन.के. सिंह (दिल्ली), मधुकर द्विवेदी(रायपुर), बीके शांतनु (दिल्ली), नारायण जोशी (इंदौर), गौरव चतुर्वेदी (भोपाल), प्रियंका कौशल यादव (रायपुर), संतोष गुप्ता (मुरादाबाद), सोमनाथ महस्के, दिलीप बोरसे (नासिक) के नाम शामिल ...

गीता जयंती : स्वामी गीतानंद जी भिक्षुक

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मेरी उम्र उस समय 7-8 साल की होगी । न तो हमारा पानीपत शहर बड़ा था औऱ न ही हमारा दायरा । देवी मंदिर जो कि मुश्किल से एक किलोमीटर होगा परन्तु कई खेत पार करके जाना होता था जो ऐसा लगता मानो कई मील दूर है । दिन ढलते ही सभी लोग ऐसे अपने घर मे आ जाते जैसे पक्षी अपने नीड़ में आ जाते हो । शहर के चारो तरफ दीवार थी तथा उनमें  निकले -बड़ने के दरवाजे लगे थे । हम जिस मोहल्ले में रहते थे उसके तीन तरफ रास्ते खुलते थे । एक घेर राइयाँ की तरफ ,दूसरा बाजार की ओर तीसरा दौलत हलवाई की तरफ से बाजार में और तीसरा रास्ता था घाटी बार की तरफ जहां सड़क पार करते ही *परम हंस कुटिया* थी । जहाँ सुबह - शाम सत्संग होता और कोई न कोई साधु- संत आते ही रहते । पर वहाँ सिर्फ बड़े - बूढ़े ही जाते थे क्योंकि वहाँ उनके मतलब का ही रूखा सूखा काम ही होता । वहाँ हम बच्चों का क्या काम ,क्योंकि वहाँ प्रशाद तक नही बटता था । इसके विपरीत एक बात और कि हमारा परिवार ठहरा आर्य समाजी जो ऐसे सत्संगों में भी आस्थावान न था ।      पर एक दिन दोपहर बाद उस परमहंस कुटिया में खूब चहल पहल थी । हमारा तो जैसे पूरा मोहल्ला ही वहाँ उमड़ा हुआ ...