ALLAHABAD HIGH COURT''S JUDGMENT : कबीर की बांग
कबीर की बांग के. विक्रम राव अदालती निर्णयों में दर्शनशास्त्र और साहित्यिकता का पुट अब कमतर हो रहा है। शायद इसलिए कि अंग्रेजी का ज्ञान क्षीण हो गया है। कभी इलाहबाद हाईकोर्ट के ख्यात अंग्रेजी निर्णयों से उद्धरण पेश कर वक्ता लोग गोष्ठियों में चमक जाते थे। इस मन्तव्य का सन्दर्भ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 15 मई के दिन “लाउडस्पीकर पर अजान” वाले दिए निर्णय से है। न्यायमूर्ति-द्वय शक्तिकांत गुप्त तथा अजित कुमार की खण्डपीठ द्वारा प्रदत्त यह जजमेंट है। याची सांसद अफजाल अंसारी ने लाउडस्पीकर से मस्जिद से रमजान माह में शासन द्वारा अजान की अनुमति न देने को धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकारों का उल्लंघन बताया। मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर हस्तक्षेप करने की माँग की थी। कोर्ट ने पत्र को जनहित याचिका मान ली। अजान पर फैसला तो 15वीं सदी के हिंदी कवि कबीर ने सदियों पूर्व दे दिया था। उन्होंने कहा था कि मस्जिद पर से “मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय?” इसके पूर्व कबीर मूर्तिपूजकों का मजाक बनाते लिख चुके थे कि “पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजूं पहार।” हालाँकि कवि की राय में हिन्दुओं के लिए ...