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Sahitya Bhushan : साहित्य भूषण पुरस्कार प्राप्ति कथा

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अथ श्री  साहित्य भूषण पुरस्कार प्राप्ति कथा "रूखी -सूखी खाय ले ठंडा पानी पी, देख पराई चूपड़ी मत ललचा यूँ  जी " एक लिक्खाड़ कवि  को एक दिन किसी मित्र ने पुस्तक के लिए उत्तर प्रदेश संस्थान की विज्ञप्ति भेज दी।  पढ़कर उसकी बांछे खिल गई ।वह तो साहित्य भूषण के लिए भी अप्लाई कर सकता है।उसने आस पास नजर दौड़ाई कोई परिचित ऐसा नहीं था जिसे सहित्य भूषण मिला हो  ।प्रकाशक ने रही सही हिम्मत यह कहकर तोड़ दी कि पुरस्कार यूँ ही नहीं मिलते इनके लिए  केवल लिक्खाड़ होना ही  नहीं  ऊपर जुगाड़ होना भी  जरूरी है। उसने एक पुरस्कार पा चुके व्यक्ति से बात की थी उसने बताया था कि उसने अपने रिश्तेदार को दिलवाया था ।उसने यह भी बताया था कि वह तो मुख्यमंत्री के साथ बैठकर खाना खाता है। नेट पर उसका लिटरेचर ढूंढा तो उसे केवल सड़क छाप अश्लील साहित्य नुमा एक सूखी पत्नी की देह से अरुचि और एक मोटी भद्दी स्त्री के प्रति आकर्षण की वासना भरी कहानी मिली   ।उसने छी थू ये साहित्य है कहा मगर प्रत्यक्ष में तारीफ की ।बाकी भी लिखा होगा उसे मिला नहीं। वह चाह रहा था  वह उसकी संस्तुति कर दे मगर उसने बिना कहे ही समझते हुए कहा कि साठ साल