अमन चाहिए, जंग नहीं
 
                            ब्रेख्त के जरिए दर्पण  का पैगाम    के. विक्रम राव   आ ज  बगदाद से बालाकोट तक, बरास्ते तेहरान, युद्ध का जुनून दुनिया को ग्रस रहा  है| अतः जर्मन नाटककार बर्तोल्ट ब्रेख्त की  याद आना सहज है, नीक भी|  सैकड़ों अमरीकी बम बर्लिन को नहीं बदल सके, मगर ब्रेख्त कि एक रचना “मदर  करेज एण्ड हर चिल्ड्रेन” (1941) ने यही कर दिखाया था| आज जर्मनी सबसे  जबरदस्त युद्ध-विरोधी राष्ट्र है| कारण वाजिब भी है| बौराए हिटलर की खब्त  से तबाही वही भुगता था| मटियामेट हो गया था| दर्पण  की पेशकश में इसी का  चित्रण चाक्षुष दृश्य के अनुरूप है (रूपक ‘हे ब्रेख्त’ , 11-12 जनवरी 2020,  वाल्मीकि रंगमच, संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ)| जानेमाने व्यंग्यकार और  नाट्यशास्त्री डॉ. उर्मिल कुमार थपलियाल की कल्पनाशीलता की यह नायाब कृति  है| प्रस्तोता अनिल रस्तोगी की कला का नैपुण्य नेपथ्य से झांकता है| इस  (उर्मिल-अनिल) युग्म ने दर्शकों को अंत तक समेटे रखा| आगोश में बांधे रखा|   ब्रेख्त  की उक्तियों, संदेशों, घटनाओं और तात्पर्यों को समेटकर यह...
 
