Nobel winner Razzaq in eyes of India
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नोबेल विजेता रज्जाक भारत की नजर में ? के. विक्रम राव इस वर्ष के साहित्यवाले नोबेल पारितोष से नवाजे गये अश्वेत अफ्रीकी प्रोफेसर अब्दुल रज्जाक गुर्नाह के माध्यम से विश्व के आमजन की विपदा पर मनन होगा। विषय है : विस्थापित, निष्कासित, शरणार्थी, पलायन कर रहे लोग, (काबुल, म्यांमार, हांगकांग के ताजा संदर्भ में)। अपनी किशोरावस्था में अब्दुल रज्जाक स्वभूमि जंजीबार द्वीप में नस्ली उथल—पुथल से उत्पीड़ित हो चुके थे। गोरे अरब मुसलमानों द्वारा समधर्मी अश्वेतों (हब्शी) को संतप्त करना उनकी एक विषादभरी प्रतीति थी। हालांकि इस्लाम समतामूलक मजहब है, जहां कलमा पढ़ते ही सब समान हो जाते हैं। हिन्दुओं जैसा भेदभाव नहीं। पर यह सरासर झूठ निकला। त्वचा के रंगभेद से इस्लाम भी मुक्त नहीं है। बस इसी गुत्थी को सुलझाना ही अब्दुल रज्जाक की कृति का मूलाधार रहा। फिलवक्त प्रोफेसर अब्दुल रज्जाक को जानकर उनकी मातृभूमि जंजीबार (तंगानियाका) और भारत के अत्यन्त आत्मीय प्रसंग अनायास मस्तिष्क पटल पर उभर आतें हैं। पड़ोसी राष्ट्र रहे तंगानियाका और द्वीप राष्ट्र जंजीबार दो सदियों के बाद यूरोपीय साम्राज्यवादियों स