Dance in Darbar of king : नर्तकी का दोहा, सुधारा सबका जीवन
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नर्तकी का दोहा, सुधारा सबका जीवन एक पुरानी कथा जो आज भी बिल्कुल प्रासंगिक है। एक राजा को राज करते काफी समय हो गया था। बाल भी सफ़ेद होने लगे थे। एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया व अपने गुरुदेव को भी बुलाया।* *उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया।* *राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दी, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे भी उसे पुरस्कृत कर सकें।* *सारी रात नृत्य चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त की बेला आई, नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है और तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, वरना राजा का क्या भरोसा दंड दे दे।* *तो उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा -* ...✍ *"घणी गई थोड़ी रही,* *या में पल पल जाय।* *एक पलक के कारणे,* *युं ना कलंक लगाय।"* ...✍ *अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अर्थ निकाला।* *तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा।* ...✍ *जब यह दोहा गुरु जी ने सुना, तो गुरुजी ने सारी मोहरें उस नर्तकी को अर्पण कर दी।* ...✍ *दोहा सुनते ही *राजकुमारी ने