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Dukkham-Sukkham : लगा ये तो मेरी कहानी शुरू हो गई

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दुक्खम सुक्खम : लगा ये तो मेरी कहानी शुरू हो गई डा. पुष्पलता  अनेक बार "दुक्खम -सुक्खम" पढ़ने की इच्छा हुई क्योंकि जिस कृति को व्यास पुरस्कार मिला वह निश्चित ही अद्भुत होगी इसकी उम्मीद थी ।गूगल पर सर्च की नहीं मिली तो ममता  कालिया दी से ही पूछा । पता चला प्रतिलिपि डॉट कॉम पर है ।पढ़ना शुरू किया तो लगा ये तो मेरी कहानी शुरू हो गई है।  लड़की के जन्म पर उपेक्षा और लड़के के जन्म पर खुशी ।फिर कथा  जैसे जैसे आगे बढ़ती रही रोचकता बढ़ती रही । लेखिका  भिन्न- भिन्न स्त्री -पुरुषों  के  जीवन ,चरित्र- प्रकृति  का हर पहलू , उसके मन के भीतरी कोने में दबा दी गईं परतें ,  सौम्यता, विनम्रता, सरलता, सहजता से उघाड़ती  दिखाती और तह लगाकर रखती गई । दुलार से दुत्कार तक और कैद से उड़ान तक ,ख्वाब से हक़ीक़त तक ,इच्छा से अनिच्छा तक, मोह से विरक्ति तक ,विरक्ति से फिर मोह तक , भाव से भावशून्यता तक ,गुलामी से आजादी तक ,कविता से अकविता तक ,निवेश से ब्याज तक ,उपेक्षा से पश्चात्ताप तक ,परवरिश से उड़ान तक कुछ भी तो नहीं छूटा जो कथा में समाहित न हुआ हो ।स्त्री ,पुरुष ,शिशु ,युवा ,वृद्ध सबकी  जीवन से जद्दोजहद ,सुख- दुख