CORONA LOCKDOWN : मीडिया नहीं भांप रही जन अविश्वास का खतरा
- CORONA LOCKDOWN : मीडिया नहीं भांप रही जन अविश्वास का खतरा
- मुबाहिसा : आर.के. मौर्य
कोरोना से निपटने को बचाव के रूप में पूरी दुनिया ने डब्ल्यूएचओ की 
गाइडलाइन पर सबसे बड़े बचाव के रूप में  लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के 
हथियार को अपनाया। हालॉकि शुरूआत में  कोरोना वायरस के  फैलाव के लिए 
मुख्य रूप से जिम्मेदार चीन से लेकर सभी देशों ने इसकी अनदेखी की।  कोरोना 
की भयावहता अब पूरी दुनिया में चरम पर है। दुनिया में करीब पचास लाख लोग 
कोरोना की चपेट में आ चुके हैं, जिनमें काफी लोग सही भी हो रहे हैं, इसके 
बावजूद करीब सवा तीन लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यह आँकड़ा कभी भी एक 
शतक पहले आई महामारी स्पेनिश फ्लू से पीड़ितों और जान गंवाने वालों के 
आँकड़ों को पछाड़ भी सकता है। इससे यह भी साबित होता है कि कोई भी देश अपने
 को 100 साल में किसी महामारी से लड़ने के लिए आत्मनिर्भर नहीं कर पाया है।
 हालात कमोबेश सभी देशों के एक समान हैं। सभी देशों में चिकित्सा संसाधन 
जवाब दे गए हैं। 
 - कोरोना महामारी की शुरूआत
- वैश्विक महामारी घोषित होने के बावजूद हुए बड़े आयोजन
- मजदूर पीड़ा में
- पत्रकारिता खो रही जनविश्वास
मित्रों, भारत में पत्रकारिता का जन्म केवल सूचनाएं देने वाले माध्यम के रूप में नहीं हुआ, बल्कि यहां अंग्रेजी हुकुमत की गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए आजादी के संघर्ष के गर्भ से पत्रकारिता का जन्म हुआ है। इसका खयाल भी नए जमाने की पत्रकारिता और पत्रकारों को रखना चाहिए। अब नहीं समझे, तो फिर जन अविश्वास की आंधी में पत्रकारिता को उड़ते देर नहीं लगेगी और बाद में सोचने से कुछ नहीं होगा। इसलिए पत्रकारों और मूल रूप से पत्रकारिता के पुरोधाओं द्वारा स्थापित किए गए मीडिया घरानों को आत्ममंथन करने की जरूरत है।
- साभार :
- आर.के. मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार।
 


 
 
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