प्रेस परषिद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू ने सही कहा
यह चिंता कवेल काटजू जी की नहीं है बल्कि इस दौरान हर जागरूक व्यक्ति इसको लेकर चिंतित है कि आखिर यह मीडिया देश को किस ओर ले जा रहा है। एक बार गोवा के मुख्यमंत्री श्री दिगंबर कामत से चर्चा हो रही थी, उनके द्वारा जिस तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की चर्चा करते हुए अपनी चिंता जताई, वह भी मेरे जैसे लोगों के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा के चलते हुए गिर जाने की खबर के प्रस्तुतिकरण को लेकर आपत्ति जाहिर की थी। उनका कहना था कि मीडिया ने उस खबर को जिस तरह चटखारे लेकर प्रस्तुत किया, उससे कहीं न कहीं अपने राष्ट्र को विदेशों के सामने अपमानित किया। इसी तरह एक बार दिल्ली में एड्स को लेकर एक जागरूकता कार्यक्रम में एक हॉलीवुड कलाकार गेरे द्वारा बालीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के चुंबन की खबर का प्रस्तुतिकरण काफी आलोचना वाला था, इसको लेकर खुद शिल्पा शेट्टी का कहना था कि गेरे ने तो अपनी संस्कृति के चलते उनका एक बार चुंबन लिया लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया ने उसको बार-बार रिपीट करके इतना आपत्तिजनक बना दिया जैसे यह संस्कृति के बजाय अश्लील चुंबन हो।
रोजाना देश के किसी न किसी हिस्से में लोग अपने हकों या फिर अपने साथ हो रहे अत्याचार को लेकर जाम प्रदर्शन करते हुए पुलिस की लाठियों से पीटे जाते हैं, लेकिन उनकी आवाज यह मीडिया केवल इसलिए नहीं बन पाता चूंकि वे समाज में अपनी कोई विशेष हैसियत नहीं रखते हैं, लेकिन जब कोई सेलेब्रिटी बाबा रामदेव जैसा व्यक्ति धरना प्रदर्शन के दौरान दो लाठी खाता है, तो उसको पूरा मुद्दा बनाया जाता है, चूंकि उसकी खबर बिकने वाली है और आम लोगों की खबर बिकने योग्य नहीं है। इसी बिकने वाली खबर के प्रचलन ने रोजाना एक या दो खबरों को ही मुख्य बनाकर प्रस्तुत करने का चलन बना दिया है।
एक चिंता का विषय और भी है कि मीडिया कहीं न कहीं भारत के लोकतंत्र की नींव को भी कजोर करने का काम कर रहा है। मीडिया जिस तरह से नेताओं की छवि को खराब कर रहा है, उसके आने वाले दिनों में काफी दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं। हम कहीं भी यह बात दमदारी से नहीं रख पा रहे हैं कि यह भारतीय लोकतंत्र ही कि इसमें यदि कोई नेता लोकतांत्रिक रास्ते से अलग हटकर अपने हितों को साधने या फिर तानाशाही का रास्ता अपनाता है तो इंदिरा गांधी की तरह सत्ता से हटाया भी जा सकता है और ए राजा या सुरेश कलमाड़ी की तरह इसी भारतीय कानून के तहत जेल भी भेजा जा सकता है।
मैं काटजू जी से कहना चाहता हूं कि उनकी चिंता न केवल जायज है बल्कि उनके द्वारा इलेक्टॉनिक मीडिया पर शिकंजा कसने की तैयारी काफी प्रशंसनीय है। मैं उम्मीद करता हूं कि यदि काटजू जी के प्रस्तावों को माना गया तो निरंकुश और गैर जिम्मेदार मीडिया पर कुछ हद तक नकेल कसी जा सकेगी।
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