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दलित सियासत

बताएं, आप भी दारापुरी जी बात से सहमत हैं।                              --------------------------- दलित राजनीति को चाहिए एक नया रेडिकल विकल्प एस. आर. दारापुरी हाल के लोक सभा चुनाव ने दर्शाया है कि दलित राजनीति एक बार फिर बुरी तरह से विफल हुयी है. इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराने के उद्देश्य से बना सपा- बसपा गठबंधन बुरी तरह से विफल हुआ है. इस चुनाव में यद्यपि बसपा 2014 के मुकाबले में 10 सीटें जीतने में सफल रही है परन्तु  इसमें इस पार्टी का अवसान भी बराबर दिखाई दे रहा है .  2014 के लोक सभा चुनाव में इसका पूरी तरह से सफाया हो गया था और इसे एक भी सीट नहीं मिली थी. इस चुनाव में भी इसका वोट प्रतिशत 2014 के 19.60% से घट कर 19.26% रह  गया है. इसी तरह 2007 के बाद बसपा के वोट प्रतिशत में लगातार गिरावट आयी है जो 2007 में 30% से गिर कर 2017 में 23% पर पहुँच गया था.  यद्यपि  मायावती ने बड़ी चतुराई से इस का दोष सपा  के यादव वोट के ट्रांसफर न होने तथा ईवीएम मशीनों की गड़बड़ी बता कर अपनी जुम्मेदारी पर पर्दा डालने की कोशिश की है परन्तु उसकी अवसरवादिता, भ्रष्टाचार, तानाशाही, दलित हितों की