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Showing posts from October, 2020

IFWJ: आईएफडब्ल्यूजे का 71 वा स्थापना दिवस

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 आईएफडब्ल्यूजे का 71 वां स्थापना दिवस मनाया  नोएडा के सेक्टर 29 स्थित नोएडा मीडिया क्लब में इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स का 71 वां स्थापना दिवस मनाया गया। इस मौके पर केक काटा गया तथा  वेबीनार के जरिए आईएफडब्ल्यूजे के देशभर के पदाधिकारियों ने संबोधित किया। आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय महासचिव परमानंद पांडे ने कहा कि सरकार के समक्ष उनके संगठन ने दो प्रमुख मांगे रखी है।  इसमे प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को समाप्त कर मीडिया कॉउन्सिल की स्थापना प्रमुख हैं । इस पर सरकार की ओर से संगठन को पूरा आश्वासन मिला है। संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हेमंत तिवारी ने कहा कि शीघ्र ही महाराष्ट्र में आईएएफडब्ल्यू जे का  कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा जिसमें नोएडा समेत सभी प्रांतों तथा जनपदों के मीडिया कर्मियों को आमंत्रित किया जाएगा।उन्होंने कहा कि अगले वर्ष दिल्ली में आईएफ़डब्लूजे का एक विशाल कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कोरोना कॉल के दौरान जिन मीडिया कर्मियों को नौकरी से निकाल दिया गया है उनकी बहाली को लेकर आई एफ डब्ल्यू जे मजबूती से आंदोलन करेगा तथा सरकार से भी इस मामले में हस्तक्षेप की मां

FIR against one thousand journalists : IFWJ shocked

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The Working Journalists of India ( WJI ) and Indian Federation of    Working  Journalists   ( IFWJ ) expressed shock that  the Maharashtra police  has  filed FIRs against one thousand working journalists of  Republic TV channel   . This  is worse than what had  happened during the infamous Emergency of 1975 .  Mr  Narender Bhandari  of WJI and  Mr Parmanand Pandey  of the IFWJ along with other prominent journalists asked the Maharashtra govt  to immediately  withdraw these FIRs against  journalists  as these amount to curbing  the freedom of press as enshrined in Indian Constitution  .  Veteran journalist and former Coordinator of International Federation of Journalists K.N.Gupta who presided over the webinar held in New Delhi condemned the police action.   and urged the Maharashtra and Union government to intervene into  this   urgent  matter  before  the world press takes notice of it.

English in Hindi : जब अंग्रेजी शब्द के मायने हिंदी में गुम हो जाएं

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 जब अंग्रेजी शब्द के मायने हिंदी में गुम हो जायें के विक्रम राव वर्षो से मेरी अवधारणा रही कि इंग्लिश जुबान तथा रोमन लिखावट के सामने हिंदी और नागरी लिपि हर प्रकार से त्रुटिहीन और परिपूर्ण हैं। देखें प्रमाण स्वरुप भारत के संविधान की प्रस्तावना पर प्रोफेसर राजमोहन गांधी ने (इंडियन एक्सप्रेस, 22 अक्टूबर 2020, पेज 7 कालम 8) में लिखा है कि भारत के संविधान की प्रस्तावना में समानता और स्वतंत्रता के साथ अग्रेंजी शब्द फ्रेटर्निटी (Fraternity) लिखा गया हैं जो अधूरे अर्थवाला है। ये पुल्लिंग वाला शब्द हैं। स्त्री इसमें समाहित नहीं हैं। इसके शाब्दिक अर्थ हैं भाई-चारा। बहनों के लिए शब्द होगा “Sorority”।  संविधान की नागरी लिपि में लिखी प्रस्तावना में शब्द “बंधुत्व” ज्यादा समावेशी हैं।  राजमोहन जी ने अपने समर्थन में लेखक हर्ष मान्दर का उल्लेख भी किया है। हालांकि इन दोनो की स्व-भाषा हिंदी नही हैं। तो अब शब्द फ्रेटर्निटी का सही विकल्प अथवा शब्द “बन्धुत्व” का अंग्रेजी पर्याय खोजना होगा। सवाल हैं कि क्या भारत के संविधान के 105वें संशोधन की अनिवार्यता अब आन पड़ेगी ? तो मेरा अभिमत है कि अंग्रेजी से हिंदी ज्य

Webinar : पत्रकारों पर झूठे मुकदमों के खिलाफ पत्रकार संगठनों का प्रस्ताव पारित

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  व र्किंग जर्नालिस्ट्स ऑफ इंडिया (संबद्ध भारतीय मजदूर संघ) की ओर से  आयोजित वेबिनार में महाराष्ट्र सरकार व मुंबई पुलिस द्वारा रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों व कोरोना महामारी में देशभर में सैंकड़ों पत्रकारों के खिलाफ दर्ज किए गए झूठे मुकदमों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया। ये प्रस्ताव देश के वरिष्ठ पत्रकार  केएन गुप्ता लेकर आए, जिसका समर्थन वर्किंग जर्नालिस्ट्स ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव नरेंद्र भंडारी, इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नालिस्ट्स ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव परमानन्द पांडेय ने किया और आम राय से प्रस्ताव पारित हो गया। वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया (संबद्ध भारतीय मजदूर संघ) की तरफ से हाल ही में संसद से पारित लेबर कोड्स को लेकर आयोजित वेबिनार में देश के वरिष्ठ पत्रकार केएन गुप्ता, भारतीय मजदूर संघ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री पवन कुमार, इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नालिस्ट्स के राष्ट्रीय महासचिव परमानंद पांडेय, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील लल्लन चौधरी ने पत्रकारों को लेबर कोड्स से जुड़ी वे जानकारियां दी, जिनसे ज्यादातर पत्रकार साथी अछूते थे। यदि आप पत्रकार हैं, त

Koshyari & Thakre : कोश्यारी का कटाक्ष

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 कोश्यारी का कटाक्ष ! के. विक्रम राव महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अपने शिवसैनिक मुख्यमंत्री उद्धव बाल ठाकरे को राय दी| उद्धव उसे गाली मान बैठे| पलटवार कर दिया| शिष्ट तथा अशिष्ट के बीचवाली बारीक रेखा मिटा डाली|  राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से पूछा था कि “आप तो सेक्युलर बन गए| इस शब्द से कभी आपको घिन लगती थी|”  निजी मित्रता के कारण मुझे कोश्यारी की यह उक्ति कुछ अचरजभरी लगी|  कुमायूं का यह भाजपायी राजपूत अंग्रेजी भाषा का पत्रकार (संपादक) रहा| उन्होंने विलियम शेक्सपियर को जरूर पढ़ा होगा कि “दूसरे को अपने कान दो, आवाज कभी नहीं|” वह भी उद्धव के लिए जो अपने पिता बाल ठाकरे की भांति उद्दण्ड सियासत के लिए जाने जाते हैं | घृणा फैलाना उनका सुरूर है, गुरूर भी| कोश्यारी को राज्य सरकार के आचरण पर क्रोध आना सही था|  मुंबई में ठाकरे ने मदिरालयों पर आठ माह पुराना लॉकडाउन ख़त्म कर दिया| मंदिरों पर नहीं|  क्यों ?  राज्यपाल को संदेह हुआ कि मुख्यमंत्री को इल्हाम हो रहा है कि देव-दर्शन टालते रहो, दारू पीना नहीं | हिन्दू ह्रदय-सम्राट कहलाने वाले बाप बाल ठाकरे के बेटे को लगा कि यह भाजपायी राज्यपाल उन्

Upnyas: दूब का बंदा (समीक्षा)

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सुप्रसिद्ध लेखक डॉक्टर पुष्पलता का बाल मन को छू लेने वाला उपन्यास है  "दूब का बंदा" आदरणीया,  आपका उपन्यास दूब का बन्दा पढ़ा  अभी उपन्यास के नायक द्वारा अंत में ये कहना कि  अपने दादू की इज्जत कभी कम नही होने देगा।।।उसे दूब का बन्दा  मिल गया बहुत सुंदर ,60 पेज का सहज सुखद,सामयिक  प्रभाव शाली, विचारणीय,प्रेरक, सही दिशा- निर्देश   देने वाला, बाल मन को  प्रभावित कर उसे रास्ता दिखाने वाला । पात्र राहुल का सुखद अहसास सदा बाल मन को स्मरण रहने वाला है ।यादगार,सटीक जानकारी देता एक  ऐसा उपन्यास है "दूब का बन्दा" जो   बाल हिन्दी साहित्य में सदा अपने समय को याद दिलाता, प्रेरणा देता रहेगा ।डॉ पुष्पलता  जी  सचमुच खूब  बधाई की हकदार  हैं कि आज जब बाल  साहित्य हाशिये पर खड़ा है  ऐसे समय डॉ पुष्पलता जी का यह  उपन्यास मील का पत्थर साबित  होगा। सहज यथार्थ , बाल मन का खूब  सूरत चित्र हमारे सामने रखता है । यह बच्चों  के मन,मस्तिक को अवश्य प्रभावित करेगा ।बच्चो की बातचीत के माध्यम से  खूब  सहजता से   अपनी बात रखती हैं  डॉ पुष्पलता जी। देखे सहज बानगी।। सुन यार ,तेरे पास कितने पैसे हैं । राह

RamVilas Paswan passesaway : रामविलास पासवान नहीं रहे

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पासवान का 74 साल की उम्र में दिल्ली में निधन, छह दिन पहले हार्ट सर्जरी हुई थी केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का गुरुवार को दिल्ली में निधन हो गया। वे 74 साल के थे। वे पिछले कुछ दिनों से बीमार थे और दिल्ली के एस्कॉर्ट हॉस्पिटल में भर्ती थे। उनके बेटे चिराग पासवान ने ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामविलास पासवान के निधन पर कहा कि वो अपना दुख शब्दों में बयां नहीं कर सकते हैं। मैंने अपना दोस्त खो दिया। रामविलास पासवान मोदी कैबिनेट में सबसे उम्रदराज मंत्री थे। चिराग ने किया भावुक ट्वीट पिता के निधन के बाद चिराग ने गुरुवार रात 8 बजकर 40 मिनट पर रामविलास पासवान और अपने बचपन की फोटो के साथ एक भावुक ट्वीट किया।  मोदी ने रामविलास पासवान के निधन पर दुख जाहिर किया और कहा कि पासवान कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्चय से राजनीति की ऊंचाइयों पर पहुंचे। वो एक असाधारण संसद सदस्य और मंत्री थे। पापा....अब आप इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन मुझे पता है आप जहां भी हैं हमेशा मेरे साथ हैं। Miss you Papa...  — युवा बिहारी चिराग पासवान (@iChiragPaswan)  October 8, 2020

Advani &Atalji : न पूरक, न विकल्प

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आडवाणी और अटल :  न पूरक, न विकल्प ! के. विक्रम राव समस्त अयोध्या प्रकरण (आज का) के सन्दर्भ में लालकृष्ण आडवाणी प्राचीन ग्रीक नाटकों के त्रासद हीरो लगते हैं| ऐसा नायक जो निन्यानवे तक चढ़कर फिसल जाता है| सांप-सीढ़ी के खेल की तरह| बस एक रन से शतक छूट जाता है| प्रधानमंत्री नहीं बन पाए| ‘उप’ ही बन सके| लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या काण्ड के शिल्पी थे| तब पार्टी के मुंबई अधिवेशन (अप्रैल 1980) में बजाय अटल के आडवाणी अध्यक्ष बने| तब तक भाजपा निचले पायदान पर रही| मगर वाह रे आडवाणी जी ! 1989 बोफोर्स मसले पर वीपी सिंह की सरकार बनवा दी| साल भर हुए फिर सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा निकालकर भाजपा को सत्ता के ऊँचे पायदान तक ले आये| भाजपा उठती गई| मगर प्रधानमंत्री हर बार अटलजी ही बनते रहे| तेरह दिन के लिए, तेरह मास, फिर पांच वर्ष के लिए| अखरनेवाली बात थी कि वोट मिले आडवाणी जी की मशक्कत के कारण| मगर पुरस्कार पा गए अटल जी| लालचन्द किशिनचंद आडवाणी उस खेतिहर श्रमिक की भांति लगे जिसने गोड़ाई की, रोपाई की, बोया और निराई की| मगर फसल काट ले गए अटल जी| आडवाणी जी उस असली वंचित भारतीय कृषक का प्रतिरूप बन गए | आज भी यही हुआ|