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Showing posts from December, 2018

लोकसभा चुनाव-2019 : भ्रम का जाल

लोकसभा चुनाव-2019 : भ्रम का जाल     मुबाहिसा : राजेन्द्र मौर्य          2 018 समाप्त होते-होते एक साफ संदेश दे गया है कि 2012 में गुजरात जीत के साथ विजय रथ पर सवार हुए नरेंद्र मोदी का जादू अब समाप्त हो रहा है। देश में वोटों का दो धाराओं भाजपा और गैर भाजपा में धुर्वीकरण हो रहा है। इसको साफ  तौर पर आरएसएस और भाजपा भी समझ रही है। सभी जानते हैं कि गैर भाजपा वोटों के धुर्वीकरण की ताकत के सामने भाजपा ठहर नहीं पाएगी। यह बात इस वर्ष के लोकसभा उपचुनावों के साथ ही हाल ही संपन्न हुए मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा की शिकस्त ने साबित की है। एेसे में नरेंद्र मोदी तमाम कोशिश के बावजूद दो तरफा जूझ रहे हैं। एक, वह आरएसएस संचालित भाजपा के गुप्त एजेंडे को नहीं रोक पा रहे हैं, जिससे उनकी महत्वाकांक्षी विश्व मान्य छवि बनाने के प्रयासों को भी धक्का लग रहा है। साथ ही अमित शाह व कुछेक उपकृत मंत्री और नेताओं के अलावा भाजपा नेतृत्व में ही एक बड़ा वर्ग उनसे नाराज है, जो नाराजगी को शायद सही वक्त आने के इंतजार में दबा...

PAGDANDI KA GANDHI

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मुबाहिसा : राजेन्द्र मौर्य.       "पगडंडी का गांधी"          लो कतंत्र की यही ताकत है, जिसमें किसान, मजदूर, व्यापारी कोई भी वह साधारण से साधारण व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मंत्री बन सकता है, जिसे जनता चाहती है। और जनता जिसे नकार दे तो वह बड़े से बड़े पद से बेदखल कर दिया जाता है। 1977 में इंदिरा गांधी को बुरी तरह हराने समेत इतिहास ऐसे तमाम उदाहरणों से भरा पड़ा है। इन दिनों भाजपा के दो कामदारों ने भारत को कांग्रेसमुक्त का नारा दिया हुआ है। यह नारा दरअसल नेहरू-गांधी परिवार से मुक्ति का है, जिसे पहले भी कई बार दिया चुका है पर जिसे जनता चाहती है तो फिर उसका कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू की मौत के बाद इंदिरा गांधी अपनी राजनीतिक स्वीकार्यता से आगे बढ़ीं और उनके साथ ही संजय गांधी ने भी अपनी नेतृत्व क्षमता को साबित किया,  जहां वह 1977 में इंदिरा गांधी की हार के बड़े कारण बने वहीं 1980 में कांग्रेस की वापसी का भी काफी श्रेय उन्हीं को जाता है। मुझे वर्ष 1980 में अपनी बा...

हनुमानजी की जाति ?

मुबाहिसा : राजेन्द्र मौर्य                                     हनुमानजी की जाति बताना और उसपर सवाल उठाना कतई गलत है। आखिर कब राजनीति में जाति और धर्म का घालमेल बंद होगा। हम प्राणी हैं, इंसान ने अपनी सोच के मुताबिक जाति और धर्म में बांट दिया, जिसको राजनीति पोषित करने का काम कर रही है। इसके विपरीत मैं देखता हूं कि कई देशों के मूल धर्म समाप्ति की ओर हैं और उनके धर्मस्थल वीरान हो रहे हैं, लोग स्वेच्छा से दूसरे धर्म अपना रहे हैं। कई धर्म स्थलों के बिक जाने के भी उदाहरण सामने आ रहे हैं। पर इससे संबंधित देश की सरकार को कोई मतलब नहीं है। मैंने देखा एक देश में हमारे भारतीय गणपति भगवान की पालकी चर्च में लेकर गए तो वहां न केवल चर्च के पादरी ने स्वागत किया बल्कि मौजूद ईसाइयों ने भी पूजा-पाठ में शामिल होकर सभी को भोजन कराया। इससे कहीं भी दोनों धर्मों के लोगों की अपने धर्म के प्रति आस्था में कमी नहीं आती, बल्कि आपस में प्यार और सद्भाव बढ़ता है, जो एक-दूसरे के साथ रहने की ताकत बनता है। जब मैं अपने देश की सरका...