हनुमानजी की जाति ?

मुबाहिसा : राजेन्द्र मौर्य                                    

हनुमानजी की जाति बताना और उसपर सवाल उठाना कतई गलत है। आखिर कब राजनीति में जाति और धर्म का घालमेल बंद होगा। हम प्राणी हैं, इंसान ने अपनी सोच के मुताबिक जाति और धर्म में बांट दिया, जिसको राजनीति पोषित करने का काम कर रही है। इसके विपरीत मैं देखता हूं कि कई देशों के मूल धर्म समाप्ति की ओर हैं और उनके धर्मस्थल वीरान हो रहे हैं, लोग स्वेच्छा से दूसरे धर्म अपना रहे हैं। कई धर्म स्थलों के बिक जाने के भी उदाहरण सामने आ रहे हैं। पर इससे संबंधित देश की सरकार को कोई मतलब नहीं है। मैंने देखा एक देश में हमारे भारतीय गणपति भगवान की पालकी चर्च में लेकर गए तो वहां न केवल चर्च के पादरी ने स्वागत किया बल्कि मौजूद ईसाइयों ने भी पूजा-पाठ में शामिल होकर सभी को भोजन कराया। इससे कहीं भी दोनों धर्मों के लोगों की अपने धर्म के प्रति आस्था में कमी नहीं आती, बल्कि आपस में प्यार और सद्भाव बढ़ता है, जो एक-दूसरे के साथ रहने की ताकत बनता है। जब मैं अपने देश की सरकार को देखता हूं तो उसके मंत्री धर्म और जातियों के प्रतिनिधि बनकर बोलते हैं। एेसे में समझने की जरूरत है कि इन लोगों ने धार्मिक चोला सरकार बनने के लिए पहना या फिर इंसान को धर्म और जाति में बांटने के लिए ? राजनीति देश को दुनिया में प्रतिस्पर्धी बनाने और बेहतर कानून व्यवस्था देने की विचारधारा होती है। पर मेरे देश की राजनीति तो जाति और धर्म पर टिकी जा रही है। सरकार में शामिल लोग अब तो ईष्टदेवों की जाति बताकर वोट बटोरने पर आ गए तो उनसे कैसे आपसी प्यार और सद्भाव का माहौल देने की उम्मीद की जा सकती है। भारत को "अमूल" जैसा गौरवमयी संस्थान  देने वाले डॉ. वर्गीज कुरियन को जब उनकी धार्मिक आस्था के नजरिए से देखा जाए तो इससे बड़ा दुर्भाग्य कोई नहीं हो सकता है। जिस कुरियन को पूरा भारत अपना गौरव मानता है, तमाम युवा प्रेरणास्रोत मानते हैं। उस कुरियन को सरकार यदि उसकी धार्मिक आस्था के नाम पर नजरअंदाज करती है और नेता गलत टिप्पणी करते है तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश को किस ओर ले जाया जा रहा है। आज जब हम मानते हैं कि एक संगठित परिवार भी अपने मात्र 10-12 सदस्यों को एक समान व्यवहार में नहीं बांध सकता है। सभी की विचारधारा, जीवनशैली और खानपान तक अलग-अलग हो जाता है। ऐसे में पहले से घोषित विभिन्न विचारधारा, भाषा और जीवनशैली के साथ करोड़ों की आबादी वाले देश में एक समान विचारधारा को जबरन थोपने की सोच घातक है।

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