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Showing posts from January, 2019

मुबाहिसा : राजेन्द्र मौर्य : जी ग्रुप के सुभाष चंद्रा भी विजय माल्या की राह पर

मुबाहिसा : राजेन्द्र मौर्य राहुल के साथ प्रियंका गांधी  राहुल गांधी के राजनीति में सक्रिय होने के 15 वर्ष बाद प्रियंका गांधी की विधिवत एंट्री ऐसे अवसर पर हुई है जब सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति से धीरे-धीरे अलग होती जा रही हैं। ऐसे में माना यही जा सकता है कि प्रियंका गांधी जहां राहुल गांधी की सहयोगी बनेंगी वहीं, वह अपनी मां सोनिया गांधी की रिक्तता को भरने का काम भी करेंगी। कुछ लोग उनको इंदिरा गांधी के रूप में देख रहे हैं। इसमें साफ तौर पर समझ लेना चाहिए कि इंदिरा गांधी एक इतिहास हो चुकी हैं। मौजूदा पीढ़ी पर इंदिरा गांधी की कोई छाप नहीं दिखती है। ऐसे में इंदिरा गांधी के नाम,  उनकी छवि को लेकर प्रियंका गांधी को कोई बहुत बड़ा लाभ मिलेगा, इसकी बहुत कम गुंजाइश दिखती हैं। हां, प्रियंका गांधी की जो अपनी मिलनसार कार्यशैली है उससे यदि उन्होेंने राहुल गांधी तरह ही अपने को आम जनमानस से जोड़कर काम किया तो उसका भरपूर लाभ उन्हें मिलेगा और भारत में महिलाओं में भी वह अपनी एक अच्छी पकड़ बनाने में कामयाब हो जाएंगी। वह कांग्रेस के लिए कितना वोट बटोरने में कामयाब होंगी, इसको लेकर कोई भी द

गांव में मां का आंचल

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"गांव में मां का आंचल"           राजेन्द्र मौर्य गांव में घर का चौबारा, खुला आसमां खिली धूप, हर ओर खुशी, गम का न दूर तक कोई ठिकाना । चेहरों पर हंंसी की लालिमा, देखते ही उछल रहे बच्चे ।। मेहमान आया है, खुशियों का खजाना लाया है। देख मां अपने बेटे को खुशी के आंसू बहाने लगती है। क्या तुझको कभी मां-बाप की याद नहीं आती है।। हम तो दिन में हर क्षण तुझे याद करते हैं। तेरा कैसा दिल, जो मां-बाप को कभी याद नहीं करता है। बेटा बोला, फुर्सत नहीं, बस हर वक्त काम की फिक्र रहती है।। हर रोज सोचता हूं अब रोजाना करूंगा मां-बाप से बात। पूछूंगा उनका हालचाल, लेकिन काम से नहीं होती फुर्सत। सुबह सूरज उगता जरूर घर की छत से देखता हूं।। शाम को  घर की छत से सूरज छिपते देखे एक जमाना हो गया। गांव मां-बाप की छांव में यही तमन्ना लेकर आया हूं। जब तक हूं रोज सुबह-शाम घर के चौबारे से देखूंगा सूरज को। मां के हाथ से कच्चे चूल्हे पर बनी रोटी खाऊंगा ।  चाय पिऊंगा गुड़ के मीठे की पीतल का गिलास

चुनावी बिसात पर मोदी सरकार से मात खा गया विपक्ष

आर्थिक आधार पर आरक्षण ः संविधान की आत्मा पर प्रहार मुबाहिसा : राजेन्द्र मौर्य बिना होमवर्क के नोटबंदी और जीएसटी के बाद अब आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए संविधान में संशोधन के बिल को पास कराने से साफ हो गया है कि पहले अटल बिहारी वाजपेयी और अब मोदी सरकार के जरिए आरएसएस अपने छुपे एजेंडे के तहत संविधान की आत्मा पर कुठाराघात करना चाहती है जिसकी शुरूआत अब हो चुकी है। संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की कोई गुंजाइश नहीं है। संविधान में उन वर्गों और समूहों के लिए बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने आरक्षण का प्रावधान किया था जो जातीय  आधार पर दबाए और कुचले गए। इन वर्गों को आरक्षण के जरिए समान दर्जा देने की कवायद आरक्षण है लेकिन अब आरएसएस ने संविधान की आत्मा को मारने की तैयारी कर ली है, जिसकी शुरूआत आर्थिक आधार पर  आरक्षण के जरिए हो चुकी है। इसमें  चुनावी बिसात पर मोदी सरकार ने बहुत ही सदी हुई चाल से पूरे विपक्ष को भी मात दे दी है। इसका नतीजा हालांकि कुछ अर्से बाद मोदी सरकार के अन्य फैसलों की तरह ही जुमलेबाजी साबित होना है चूंकि जहां मोदी सरकार ने पूरे विपक्ष को अपनी चाल से मा