गांव में मां का आंचल

"गांव में मां का आंचल"

          राजेन्द्र मौर्य

गांव में घर का चौबारा, खुला आसमां खिली धूप,
हर ओर खुशी, गम का न दूर तक कोई ठिकाना ।
चेहरों पर हंंसी की लालिमा, देखते ही उछल रहे बच्चे ।।
मेहमान आया है, खुशियों का खजाना लाया है।
देख मां अपने बेटे को खुशी के आंसू बहाने लगती है।
क्या तुझको कभी मां-बाप की याद नहीं आती है।।
हम तो दिन में हर क्षण तुझे याद करते हैं।
तेरा कैसा दिल, जो मां-बाप को कभी याद नहीं करता है।
बेटा बोला, फुर्सत नहीं, बस हर वक्त काम की फिक्र रहती है।।
हर रोज सोचता हूं अब रोजाना करूंगा मां-बाप से बात।
पूछूंगा उनका हालचाल, लेकिन काम से नहीं होती फुर्सत।
सुबह सूरज उगता जरूर घर की छत से देखता हूं।।
शाम को  घर की छत से सूरज छिपते देखे एक जमाना हो गया।
गांव मां-बाप की छांव में यही तमन्ना लेकर आया हूं।
जब तक हूं रोज सुबह-शाम घर के चौबारे से देखूंगा सूरज को।
मां के हाथ से कच्चे चूल्हे पर बनी रोटी खाऊंगा । 
चाय पिऊंगा गुड़ के मीठे की पीतल का गिलास भरकर।।
शहर में खूब खाता हूं अपने बच्चों के साथ फास्ट फूड।
दफ्तर में भी हर वक्त खाते-खाते फटा रहता है पेट ।
पर मां कितना भी खिलाए, कभी नहीं देता पेट जवाब। 

Comments

Popular posts from this blog

Honor of Sanjay Dwivedi : संजय द्विवेदी का सम्मान