तड़पती बेरोजगारी

रोजगार मेले में सजी दुकानें हजार हैं, फिर भी तड़प रहे बेरोजगार हैं। कोई भी एक दुकान नहीं, जिसमें रोजगार मिल रहा है। यह कैसी नीति? हमारा भारत दुनिया के लिए खुला बाजार बन तमाम बडे़-बडे़ देशों के लिए रोजगार उपलब्ध करा रहा है और हमारे देश के हर घर में बेरोजगारी पैर पसार रही है। हम भले ही रोजगार उपलब्ध कराने के लिए नित नए दावे कर रहे हैं, पर हाल यह है कि कुछ हाथों को रोजगार मिल रहा है तो दुगने हाथों से रोजगार छिन रहा है। क्या है कोई, जो इस विकराल समस्या पर चिंतित होकर हर हाथ को रोजगार देने का काम कर सके ?

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