बड़े खतरे की चेतावनी: डीएलए का प्रकाशन बंद

  

बड़े खतरे की चेतावनी: डीएलए का प्रकाशन बंद

मुबाहिसा : राजेन्द्र मौर्य
तमाम प्रयासों के बावजूद नहीं चल पाने की स्थिति में डीएलए का प्रकाशन आज से पूरी तरह बंद हो गया है। यह भविष्य में बंद होने की कतार में लगे कई और अखबारों का प्रारंभ  भी हो सकता है, जो प्रिंट मीडिया में काम कर रहे कर्मचारियों विशेष रूप से अखबारों के भरोसे पत्रकारों के लिए बड़े खतरे की चेतावनी भी मानी जा सकती है। कुछ-कुछ इसी तरह विकसित देशों में भी अखबारों के प्रकाशन बंद होने की शुरुआत भी डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के नाम पर पहले ही हो चुकी है। भारत में आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका  निभाने वाले एक नगर, वर्ग या एक जनपद तक प्रसार और डाक के जरिए सुदूर क्षेत्रों तक पहुंच रखने वाले समाचार पत्रों के साथ ही सांध्य दैनिक अखबारों को नब्बे के दशक में एक साथ तमाम स्थानों पर प्रिंटिंग युनिट लगाकर छापे गए क्षेत्रीय अखबारों ने बंदी के कगार पर पहुंचा दिया था।  एेसे में 2007 में अमर उजाला ग्रुप से अलग हुए इस ग्रुप के सह संस्थापक और  हिंदी के नामचीन बड़े  पत्रकारों में एक स्व. डोरीलाल अग्रवाल के सुपुत्र अजय अग्रवाल  ने डीएलए की सांध्य दैनिक के रूप में आगरा से शुरूआत करके फिर से स्थानीय दैनिक की कड़ी को पुनर्जीवित करने की कोशिश की थी। आगरा में पाठकों के सहयोग ने अजय अग्रवाल में जोश भी भर दिया था। नतीजा मेरठ, झांसी और दिल्ली से संस्करण प्रकाशित किए गए।अमर उजाला से निकाले गए या रूठे पत्रकार राजेश रपरिया, वीरेन्द्र सेंगर आदि आदि तमाम पत्रकारों को एकत्र किया गया और इस जोश व सपने के साथ सफलता पथ की शुरुआत की गई कि अब  अमर उजाला से आगे निकलना है। पर, कुछ ही अर्से बाद अहसास हुआ कि सांध्य का आइडिया गलत है और ट्रेड की सपोर्ट नहीं मिल पाने पर यह सांध्य दैनिक प्रातःकालीन करना पड़ा। इसके बाद जल्द ही अहसास होने लगा कि आगरा से मिल रहा सहयोग पाठकों का नहीं बल्कि उनके व्यक्तिगत संबंधों का है। नतीजा सामने आया कि आगरा को छोड़कर सभी शहरों में डीएलए अस्वीकार कर दिया गया और अंततः आगरा में भी अपना प्रभाव खो चुके डीएलए का आज से प्रकाशन बंद कर दिया गया है। भले ही डीएलए देश के नामी अखबारों में शुमार नहीं था, परंतु उसको प्रकाशन करने वाले अजय अग्रवाल के बडे़ मीडिया घराने के सदस्य होने को कोई  भी अस्वीकार नहीं कर सकता है। डीएलए के अंतिम अंक में अजय अग्रवाल की डिजिटल मीडिया से प्रिंट मीडिया को मिल रही चुनौती गंभीर और प्रिंट मीडिया में काम कर रहे कर्मचारियों के लिए चिंता और बड़े खतरे की चेतावनी है। इस खतरे को सभी मीडिया घराने भांप चुके हैं और उन्होंने विकल्पों पर काम करना भी शुरू कर दिया है। सभी का जोर डिजिटल मीडिया के साथ ही तमाम अन्य उपक्रमों पर हो गया है। अब केवलअखबारों के भरोसे कर्मचारियों विशेष रूप से पत्रकारों को भी इस खतरे की चेतावनी से सचेत होकर विकल्पों पर काम शुरू करने की जरूरत है।

Comments

  1. सर मैं आपकी बात से बिल्कुल सहमत हूं कि जिस तरीके से डिजिटल मीडिया को अधिक तवज्जो दी जा रही है उससे आगे के समय में प्रिंट मीडिया को भी अपने में बदलाव करना पड़ेगा

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