दिल्ली : जिम्मेदारों ने लगाया चुनावी चश्मा

हमने खुद ही उसी पेड़ की डाली को बहुत ही निर्दयता से काट दिया जिस पर हम बैठे थे ।
   उर्दू के एक शायर ने हमारी इन्हीं हरकतों पर कहा "फैले बद तो खुद करे, लानत करे शैतान को"।
    दिल्ली व उसके आसपास के इलाके आज गैस चैंबर बन गए हैं और वहाँ हर स्थान पर एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स 500 से भी पार हो चुका है । सच मानिए कहीं-कहीं तो 800 से 1000 तक ।  समर्थवान लोग घरों में दुबके हैं, जबकि रोज कमा कर खाने वाले लोगों की आफत है । स्कूल बंद कर दिए हैं और लोगों को सूचना दी जा रही है कि अपनी बाहर की आमद को सीमित करें । दूसरे मायनों में आपातकाल लगा दिया गया है । सरकारी व निजी अस्पतालों तथा चिकित्सालयों में दमा, एलर्जी, हृदय रोगियों की तादाद एकदम दुगने  तक पहुंच गई है । सम्पन्न लोग अपने घरों में एयर प्यूरिफायर मशीन लाकर भी बदहाल हैं, क्योंकि वे भी इस भीषण प्रदूषण के सामने नकारा ही साबित हो रहे हैं। जिम्मेदार तो चुनावी चश्मा लगाकर प्रकृति की इस मार के लिए भी एक दूसरे को ही कसूरवार बता कर आगामी चुनाव के आईने में देखकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं, जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट  ने भी तल्ख टिप्पणी की है। शहरी लोग कह रहे हैं कि  किसानों द्वारा धान की पराली जलाने की वजह से यह धुआं है,  जबकि शहर में दीवाली पर कानूनी पाबन्दी के बावजूद जिस तरह आतिशबाजी जलाई गई वह भी कोई कम कारण नहीं है। कारखानों में चिमनियों से निकलने वाला जहरीला धुआं भी जहर फैलाने में कम नहीं है और इनके इलावा भी कई अन्य कारण  विराजमान हैं।
    मेरा खुद का शहर पानीपत प्रदूषण के मामले में नम्बर वन है । कई लोग इस बात से ही खुश हैं कि कहीं तो यह शहर नम्बर वन हुआ ।
     दीवाली के दिन जिस तरह से पटाखे छोड़े गए उनमें रिकॉर्ड बना होगा, जब किन्ही ने इस पर एतराज किया उन्हें हिन्दू - मुस्लिम की बात कर समझाया गया कि जब मुसलमान आतिशबाजी करते हैं तो क्यों नहीं बोलते ?
 जब यह हालात है तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा।  क्या सरकार वादा करती है कि किसान की पराली खरीदेगी और क्या किसान वादा करेगा कि वह उसे नहीं जलाएगा ।
   क्या अति उत्साही अथवा कथित धनाढ्य लोग वादा करेंगे कि वे आतिशबाजी नहीं चलाएंगे ।
क्या कारखानेदार वादा करेंगे कि वे जहरीला धुआं, गैस व केमिकल युक्त पानी नहीं छोड़ेंगे ।
     यदि कर पाओगे तो अगली बार इससे निजात पाओगे वरना भुगतो ।

साभार : राम मोहन राय की कलम से

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