यूपी : मित्र, सहयोगी व भाई !



अखबार का क्या मतलब है व एक नए समाचारपत्र को किसी नई जगह स्थापित करने में कैसे मेहनत की जाती है, इसे समझने व जानने के लिए हमें हमारे प्रिय मित्र व अग्रज "राजेन्द्र मौर्य" को जानना होगा।
   लगभग 20 वर्ष पहले की बात होगी, जब वे हमारे शहर पानीपत में एक नए अखबार अमर उजाला के ब्यूरो चीफ बनकर आए थे। अखबार नया व अनजान था और मुकाबला करना चाह रहा था पंजाब केसरी व नवभारत टाइम्स जैसे जमे जमाए अखबारों से। इन अखबारों का रुतबा यह था कि  शहर की खबर छपती थी दो दिन बाद और इनके संवाददाताओं की हेकड़ी ये कि वे किसी को भी कुछ भी नहीं समझते थे। ऐसे समय में मौर्य  हमारे शहर में आए थे ।
    वे एक अत्यंत संजीदा व प्रबुद्ध व्यक्तित्व के धनी हैं । मिलनसार इतने कि जो उनसे एक बार मिल ले, तो उनका बन जाए और इन्हीं सब अपनी खूबियों की वजह से उन्होंने अखबार को जमाना शुरू किया और यह क्या कि कुछ दिन में ही अमर उजाला अपने एक प्रतिद्वंद्वी  के बराबर आ गया और दूसरे को तो पछाड़ ही दिया ।
      राजेन्द्र मौर्य ने इस दौरान अपने व्यक्तिगत पारिवारिक रिश्तों को भी मजबूत किया। उनके लिए एक अनजान नगर में  सैंकड़ों ऐसे परिवार होंगे, जिनसे उन्होंने पारिवारिक रिश्ता बनाया और सभी यह मानते रहे कि वे उनके सबसे करीब हैं।
     शहर में सामाजिक सम्बन्धों को भी उन्होंने मजबूत किया। क्योंकि हर व्यक्ति व संस्था उनसे आत्मीयता रखता था इसलिए अपने दिल की बात उनसे करता और कोई भी दिक्कत होने पर वे उसके साथ खड़े होते।
   नगर के लोगों के लिए वे एक अच्छे सलाहकार भी रहे। निंदा-चुगली से सर्वथा परे और हमेशा सहयोगी। पानीपत में अपने 4-5 साल प्रवास के दौरान उन्होंने जो लोकप्रियता हासिल की वह प्रेरणादायी है। पानीपत के बाद वे अनेक स्थानों पर कार्यरत रहे व आजकल कानपुर में हैं, परन्तु उनके रिश्ते सभी से पूर्ववत बने हैं।
   यूआरआई के राष्ट्रीय अधिवेशन में बनारस आने का मौका मिला । मन किया कि इलाहाबाद भी जाया जाए फिर यह भी विचार किया कि कभी कानपुर नहीं गए इस बार वहां भी जाएं । कानपुर के अनेक जानकर लोगों ने सलाह दी कि वहां कुछ देखने का खास नहीं है। परन्तु मेरा आकर्षण तो पर्यटन न होकर राजेंद्र मौर्य थे। हमारे उनके घर आने की सूचना पाकर वे भी आह्लादित थे और ट्रेन पहुंचने से एक घंटे पहले ही स्टेशन पर पहुंच गए थे । कानपुर की सड़कों  पर बहुत जाम रहता है उन्हें डर रहा कि कहीं वे उसमें न फंस जाए ।
     उनके पास एक दिन रहे। उनकी पत्नी राजेश्वरी की पारंगत कुकिंग ने हम चटोरे लोगों का मन जीत लिया। अभी नाश्ता चल ही रहा था और वे मेनू बता रही थी लंच का। मैं खुद भी अपने को पाककला का खलीफा मानता हूं, पर श्रीमती मौर्य के सामने सिर्फ सिखदर। मौर्य परिवार की मेहमान नवाजी से हम अभिभूत हैं।
हमें अपने मित्र, सहयोगी व भाई राजेन्द्र मौर्य व उनके परिवार से मैत्री सम्बन्धों पर गर्व है।                    कानपुर : राममोहन राय की कलम से साभार।

Comments

  1. मौर्याजी ग्रेट हैं। मुझे भी उनके साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।

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