बापू का शहादत दिवस : नफरत की आग सुलगाई

महात्मा गांधी के शहीदी दिवस 30 जनवरी को  एक गोपाल शर्मा नाम के युवक ने एक देशी तमंचे से जामिया मिलिया ,दिल्ली में आंदोलनकारियों पर *यह लो आज़ादी*  और *जय श्री राम* का नारा लगाते हुए , निशाना साध कर पुलिस की हाजिरी में गोली चलाई जिससे एक  नौजवान घायल हो गया । यह एक ऐसा कृत्य है जिसकी कठोर निंदा की जानी चाहिए ।  गोली चलाने का भी ऐसा दिन चुना गया जिस दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जघन्य हत्या एक हत्यारे नाथूराम गोडसे ने गोली मार कर  दी थी ।
 अब यदि कोई यह कुतर्क दे कि गोली तो तमंचे से चली थी। तमंचा एक नाबालिग के हाथों में था। यह नाबालिग काफी दिनों से परेशान था और इसी परेशानी में ही उसने यह कुकृत्य किया तो यह समझ से बाहर की बात है। यदि वह परेशान था तो उसने यह काम कहीं और क्यों नहीं किया? क्या वह देसी तमंचे की खोज किसी परेशानी में ही उससे हो गई? यह सब निरापद प्रश्न है? जिसे उठाया जा रहा है। पर एक बात हम ध्यान रखें कि हम भविष्य की एक ऐसी पीढ़ी को पोषित कर रहे हैं जो परेशानियों का बहाना लेकर अपने मन, दिल व शरीर में नफरत की आग सुलगा कर यह काम करेंगे। उनका निशाना होगा, उनके घृणा से भरे हुए वे लोग व  तबके, जिनके विरुद्ध उन्हें घृणा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं सिखाया होगा।  
          महात्मा गांधी की शहादत के दिन को जब पूरा विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मना रहा है, उसी ही दिन यह कृत्य दुनिया भर में गांधी के देश को कलंकित कर रहा है। हम यह जानते हैं कि गांधी के रास्ते पर चलने वाले मार्टिन लूथर किंग जूनियर की भी ऐसी ही हत्या हुई थी। बस फर्क इतना था कि नाथूराम भारत का था और उनका हत्यारा एक अमेरिकन श्वेत।
     आज हम इस पर जरूर विचार करें कि बच्चों और युवाओं में एक दूसरे के प्रति घृणा एवम वैमनस्य के संस्कार देकर हम कैसा भारत का भविष्य बनाना चाहते है ?  यह वह देश तो बिल्कुल नही हो सकता जिसका मूल मंत्र हो *सर्व आशा मम मित्रम भवन्तु* । या जिसके सन्त गाते हो कि *जिन प्रेम कियो तिन्ही प्रभु पायो* । क्या हम ऐसे बच्चे बनाना चाहेंगे जो हाथ मे छुरी, कटार, तलवार अथवा तमंचा लेकर दूसरे को काटने व मारने के लिये लालायित हो? कहीं हम अपनी संतान को ऐसा ही तो नही बना रहे जो किन्ही राजनीतिक स्वार्थो के शिकार होकर हिंसा ,घृणा एवम अलगाव के समर्थक हो रही है ?
     गोपाल शर्मा किसी नौजवान लड़के का ही नाम नही है बल्कि यह एक ऐसी जेहनियत का नाम है जो धर्म के नाम पर हिन्दुत्व वादी अथवा जेहादी पैदा करती है । जो किसी भी स्कूल ,कॉलेज एवम किसी शिक्षा संस्थान में नही पढ़ते परन्तु सब कुछ किन्ही पार्टियों के आई टी सेल की व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की अफवाहों एवम झूठे तंत्र से सीखते है और इनके दुष्प्रेरक हैं *हिटलर के सूचना मंत्री गोयबल्स*  जिनका कहना था कि यदि कोरे झूठ व गप्प को इतनी बार बोले कि जनता उसे सच मानने लगे ।
     बापू की हत्या किसने की जब यह सवाल उनके परम् शिष्य विनोबा से पूछा तो उन्होंने तपाक से जवाब दिया *मैंने* । लोग अचरच कर कहने लगे कि ऐसा कैसे ?  विनोबा का जवाब था कि जब देश मे साम्प्रदायिक लोग हिंसा व तनाव का वातावरण बना रहे थे तो मैं चुपचाप उसे देख रहा था । मेरी गुरु दीदी निर्मला देशपांडे जी न्याय शास्त्र के पद को उद्धरित करते हुए तीन प्रकार के दोषियों को इंगित करती थी । एक कृत -जो करता है । दो कारित -जो करवाता है और तीसरा अनुमोदित जो किसी भी अपराध का अनुमोदन करता है ।
 महात्मा गांधी की हत्या करने के बाद नाथूराम गोडसे का अदालत में बयान था *मैंने गांधी को गोली मारी ,मैने उसपर गोलियां बरसा दी  मुझे इसका कोई खेद नही है। मेरे विचार से यह सही काम था* ।
उसका छोटा भाई व बापू हत्याकांड में सह अपराधी गोपाल गोडसे ने कहा *हमारा इरादा सरकार पर नियंत्रण का नहीं था। हम तो ऐसे व्यक्ति से राष्ट्र को छुटकारा दिलाना चाहते थे, जिसने उसे नुकसान पहुंचाया और पहुंचा रहा था। उसने हिंदू राष्ट्र का लगातार अपमान किया और अहिंसा की विचारधारा से उसे कमजोर बनाया । उसने अनेक उपवासो में  मुसलमानों के पक्ष में शर्तें लगाई ।मुसलमान कट्टरपंथियों के लिए उसने कुछ नहीं किया। हम भारतीयों को दिखाना चाहते थे कि बेज्जती को बर्दाश्त न करने वाले भारतीय अभी भी हैं- हिंदुओं में अभी भी पुरुष शेष है* ।
      गांधी हत्याकांड के बाद तत्कालीन गृहमंत्री स0 पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन  माननीय सरसंघचालक एम एस गोलवलकर एवम हिन्दू महासभा के अध्यक्ष श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखे एक पत्र में उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा था * *उनके सभी नेताओं के भाषण में सांप्रदायिक जहर होता है इस प्रकार बनाए गए जहरीले वातावरण के कारण यह भयंकर त्रासदी महात्मा गांधी की हत्या हुई । गांधी की मृत्यु के बाद उनके संगठन के लोगों ने खुशियां मनाई और मिठाई बांटी*।
      हम आज भी ऐसे ही हालात से रूबरू हो रहे है । इस देश को एक रखने की जिम्मेदारी हम सब देशभक्त हिंदुस्तानियों की है । हमारा पहला धर्म यह ही होगा कि न तो हम हिंसा का समर्थन करेंगे , न उसमे किसी भी तरह की भागीदारी करेंगे और नफरत के माहौल को मोहब्बत से बदल देंगे ।
      हम उन राजनेताओं को भी समझाएंगे की उनकी एक बात का कितना खतरनाक असर होता है  । *गोली मारो सालो को*
और यही वह उकसावा रहा जिसने इस नौजवान को गोली चलाने को दुष्प्रेरित किया ।  ध्यान रहे ऐसे नेता अपने बच्चों को ऐसे कुकर्म से दूर रखते है और गरीब, दलित ,पिछड़े एवम कमजोर वर्गों के  युवाओं में घृणा पैदा कर उन्हें अपना हथियार बनाते है।
"सावधान , ऐसा  करके हम मजबूत भारत नहीं बना सकेंगे"।
साभार : राम मोहन राय, नई दिल्ली ।

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