Every Relationship thirsty for blood In MAHABHARAT: हर रिश्ता बना खून का प्यासा
- महाभारत युद्ध : हर रिश्ता बना खून का प्यासा
दुनिया में यूं तो तमाम युद्ध हुए, लेकिन जो इतिहास में याद किए जाते
हैं उनमें महाभारत युद्ध को शायद ही कभी भुलाया जा सकेगा। इस युद्ध
के कारणों और जिम्मेदारों को लेकर हर व्यक्ति अपने-अपने तरह से
व्याख्या करता है, जो हमेशा होती रही है और भविष्य में भी होती
रहेगी। इन दिनों कोरोना लॉकडाउन के चलते टीवी पर प्रसारित हो रहे
महाभारत धारावाहिक के कारण एक बार फिर घर-घर में लोग इस धारावाहिक की
व्याख्या करने में जुटे हैं। निश्चित ही आप भी कुछ न कुछ अवश्य ही
किसी भी पात्र की अपने स्तर से व्याख्या करने में जुटे होंगे। युद्ध
वास्तव में बहुत बड़ा था, जिसमें कौरवों की सेना की ओर से सभी
बड़े-बड़े योद्धा मारे गए, जिनको तमाम वरदान और उनकी प्रतिज्ञाएं भी
मरने से नहीं रोक पाईं। एकमात्र जीवित बचा कौरव युयुत्सु था और करीब
25 हजार कौरव सैनिक लापता हो गए थे। माना जाता है कि लव और कुश की
50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से
लड़े थे। इस महाभारत युद्ध में न अहंकार जीता और न ही कपट। बस एक ऐसा
अमिट इतिहास बना, जिसकी हजारों वर्षों बाद भी चर्चा हो रही है तमाम
लोग शोध में जुटे हैं। कुछ मान रहे कथा तो कुछ सत्य की खोज में अभी
भी आगे बढ़े जा रहे हैं और निरंतर कुछ अनकहे, अनसुने रोचक तथ्य
सामने आते जाते हैं। ऐसे ही कुछ तथ्यों को हम यहां बता रहे हैं ।
- भगवान श्रीकृष्ण 83 वर्ष के थे
महाभारत युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण की आयु 83 वर्ष थी और
महाभारत युद्ध के भी 36 वर्ष बाद उन्होंने देह त्यागा। इस तरह माना
जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने 119 वर्ष की आयु तक धरती पर रहकर देह
त्याग किया था। भगवान श्रीकृष्ण द्वापर के अंत और कलियुग के आरंभ के
संधि काल में विद्यमान थे। कलियुग को आरंभ हुए 5112 वर्ष माने जाते
हैं। कलियुग के आरंभ होने से छह माह पहले मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को
महाभारत का युद्ध आरंभ हुआ था, जो 18 दिनों तक चला था। आओ जानते हैं
महाभारत युद्ध के 18 दिनों के रोचक घटनाक्रम को।
- कुरुक्षेत्र (हरियाणा) बना था महाभारत का युद्ध मैदान
पांडवों ने महाभारत युद्ध से पहले अपनी सेना का पड़ाव कुरुक्षेत्र के
पश्चिमी क्षेत्र में सरस्वती नदी के दक्षिणी तट पर बसे समंत्र पंचक
तीर्थ के पास डाला था। कौरवों ने अपना पड़ाव कुरुक्षेत्र के पूर्वी
भाग में वहां से कुछ योजन (करीब आठ किमी) की दूरी पर एक समतल मैदान
में डाला था। कौरवों और पांडवों के शिविरों में सैनिकों के भोजन और
घायलों के इलाज की उत्तम व्यवस्था की गई थी। हाथी, घोड़े और रथों की
अलग व्यवस्था थी। हजारों शिविरों में से प्रत्येक शिविर में प्रचुर
मात्रा में खाद्य सामग्री, अस्त्र-शस्त्र, यंत्र और कई वैद्य और
शिल्पी रखे गए थे।
- भारत के सभी जनपद (स्वतंत्र राज्य) तीन खेमों में बंटे
महाभारत में दोनों सेनाओं के बीच युद्ध के लिए 5 योजन यानि 40 किमी
का घेरा छोड़ दिया गया था। इस युद्ध में उस समय के भारत तमाम
स्वतंत्र राज्यों के राजा आपस में रिश्तेदार होने के बावजूद
आमने-सामने आ गए थे। जहां अधिकांश जनपद कौरव और पांडवों के खेमे में
बंटे थे वहीं कुछ जनपद यानि स्वतंत्र राज्यों के राजाओं ने अपने को
तटस्थ कर लिया था। उनमें भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम भी थे।
जो युद्ध के खिलाफ थे और उन्होंने किसी के भी पक्ष में खड़े होने से
साफ मना कर दिया था। कहने के लिए तो भगवान श्रीकृष्ण ने भी किसी के
पक्ष में हथियार नहीं उठाने का संकल्प लिया था और उनके संकल्प को
तोड़ने के लिए खुद भीष्म ने अपने हथियारों से कई बार उकसाया। भगवान
श्रीकृष्ण घायल भी हुए लेकिन उन्होंने बिना हथियार उठाए ही अर्जुन का
विजयी मार्ग प्रशस्त किया।
- कौरवों के साथ शामिल जनपद
कौरवों की ओर से युद्ध में गांधार, मद्र, सिन्ध, काम्बोज, कलिंग,
सिंहल, दरद, अभीषह, मागध, पिशाच, कोसल, प्रतीच्य, बाह्लिक, उदीच्य,
अंश, पल्लव, सौराष्ट्र, अवन्ति, निषाद, शूरसेन, शिबि, वसति, पौरव,
तुषार, चूचुपदेश, अशवक, पाण्डय, पुलिन्द, पारद, क्षुद्रक,
प्राग्ज्योतिषपुर, मेकल, कुरुविन्द, त्रिपुरा, शल, अम्बष्ठ, कैतव,
यवन, त्रिगर्त, सौविर और प्राच्य जनपद शामिल हुए। इन जनपदों के
भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य,
भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा, कलिंगराज, श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त,
जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज, सुदक्षिण, बृहद्वल, दुर्योधन व
उसके 99 भाई सहित अन्य हजारों योद्धाओं ने यु्द्ध में भागीदारी की।
- पांडवों के साथ शामिल जनपद
पांडवों की ओर से युद्ध में पांचाल, चेदि, काशी, करुष, मत्स्य, केकय,
सृंजय, दक्षार्ण, सोमक, कुन्ति, आनप्त, दाशेरक, प्रभद्रक, अनूपक,
किरात, पटच्चर, तित्तिर, चोल, पाण्ड्य, अग्निवेश्य, हुण्ड, दानभारि,
शबर, उद्भस, वत्स, पौण्ड्र, पिशाच, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारुत,
धेनुक, तगंण और परतगंण जनपद शामिल हुए। इन जनपदों के भीम, नकुल,
सहदेव, अर्जुन, युधिष्टर, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सात्यकि,
उत्तमौजा, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, अभिमन्यु, पाण्ड्यराज,
घटोत्कच, शिखण्डी, युयुत्सु, कुन्तिभोज, उत्तमौजा, शैब्य और अनूपराज
नील आदि हजारों योद्धाओं ने युद्ध में भागीदारी की।
- महाभारत में तटस्थ रहे जनपद
महाभारत में जहां पूरा भारत वर्ष दो खेमों में बंटने की कोशिश करते
हुए कौरवों और पांडवों ने सभी जनपदों को अपने-अपने खेमों में जोड़ने
के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी, वहीं कुछ जनपदों ने इस महायुद्ध
से अपने को पूरी तरह अलग रखा और तटस्थ रहकर इस युद्ध के हिस्सेदार
नहीं बने। तटस्थ रहेन वाले जनपदों में विदर्भ, शाल्व, चीन, लौहित्य,
शोणित, नेपा, कोंकण, कर्नाटक, केरल, आन्ध्र, द्रविड़ आदि जनपद मुख्य
रूप से शामिल थे।
- महाभारत में युद्ध के नियम
महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले रणभूमि पर बने पितामह भीष्म के
शिविर में दोनों सेनाओं के सेनापतियों समेत महायोद्धाओं की एक
मंत्रणा बैठक हुई, जिसमें युद्ध के नियम बनाए गए और इनपर सभी
योद्धाओं ने सहमति जताई। इस दौरान की योद्धाओं में आपसी तकरार भी
हुई, लेकिन भीष्म ने अपने हस्तक्षेप से तकरार को शांत किया। इन
नियमों का सभी ने पालन करने का भरोसा दिलाया।
- प्रतिदिन युद्ध सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक ही रहेगा। सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं होगा।
- युद्ध समाप्ति के पश्चात छल-कपट छोड़कर सभी लोग प्रेम का व्यवहार करेंगे।
- रथी रथी से, हाथी वाला हाथी वाले से और पैदल पैदल से ही युद्ध करेगा।
- एक वीर के साथ एक ही वीर युद्ध करेगा।
- भय से भागते हुए या शरण में आए हुए लोगों पर अस्त्र-शस्त्र का प्रहार नहीं किया जाएगा।
- जो वीर निहत्था हो जाएगा उस पर कोई अस्त्र नहीं उठाया जाएगा।
- युद्ध में सेवक का काम करने वालों पर कोई अस्त्र नहीं
उठाएगा।
- महाभारत का पहला दिन : धृतराष्ट्र के पुत्र युयुत्सु
पहुंचे पांडवों की ओर, युद्ध में कौरव भारी पड़े
रणभूमि में जहां कृष्ण-अर्जुन अपने रथ के साथ दोनों ओर की सेनाओं के
मध्य खड़े थे और अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे, इसी दौरान भीष्म
पितामह ने सभी योद्धाओं से कहा कि अब युद्ध शुरू होने वाला है। इस
समय जो भी योद्धा अपना खेमा बदलना चाहे, वह स्वतंत्र है कि वह जिसकी
तरफ से भी चाहे युद्ध करे। इस घोषणा के बाद धृतराष्ट्र का पुत्र
युयुत्सु डंका बजाते हुए कौरव दल को छोड़कर पांडवों के खेमे में चला
गया। श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाकर
युद्ध की घोषणा कर दी।
पहले दिन 10 हजार से भी अधिक सैनिकों की मौत हुई। भीम ने दु:शासन पर आक्रमण किया। अभिमन्यु ने भीष्म का धनुष तथा रथ का ध्वजदंड काट दिया। पहले दिन की समाप्ति पर पांडव पक्ष को भारी नुकसान उठाना पड़ा। विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत क्रमशः शल्य और भीष्म के द्वारा मार दिए गए। भीष्म द्वारा उनके कई सैनिकों का वध कर दिया गया।
पहले दिन 10 हजार से भी अधिक सैनिकों की मौत हुई। भीम ने दु:शासन पर आक्रमण किया। अभिमन्यु ने भीष्म का धनुष तथा रथ का ध्वजदंड काट दिया। पहले दिन की समाप्ति पर पांडव पक्ष को भारी नुकसान उठाना पड़ा। विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत क्रमशः शल्य और भीष्म के द्वारा मार दिए गए। भीष्म द्वारा उनके कई सैनिकों का वध कर दिया गया।
- महाभारत का दूसरा दिन : भगवान कृष्ण के उपदेश का असर, पांडव भारी पड़े
रणभूमि में दूसरे दिन भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश का असर अर्जुन पर
दिखा और अर्जुन तथा भीष्म, धृष्टद्युम्न तथा द्रोण के मध्य युद्ध
हुआ। सात्यकि ने भीष्म के सारथी को घायल कर दिया। द्रोणाचार्य ने
धृष्टद्युम्न को कई बार हराया और उसके कई धनुष काट दिए। भीष्म द्वारा
अर्जुन और श्रीकृष्ण को कई बार घायल किया गया। इस दिन भीम का कलिंगों
और निषादों से युद्ध हुआ तथा भीम द्वारा सहस्रों कलिंग और निषाद मार
गिराए गए, अर्जुन ने भी भीष्म को भीषण संहार मचाने से रोके रखा।
कौरवों की ओर से लड़ने वाले कलिंगराज भानुमान, केतुमान, अन्य कलिंग
वीर योद्धा मारे गए। माना जाता है कि दूसरे दिन कौरवों को नुकसान
उठाना पड़ा और पांडव पक्ष मजबूत रहा।
- महाभारत का तीसरा दिन : भीम ने दुर्योधन की सेना
को भगाया
रणभूमि में तीसरे दिन कौरवों ने गरूड़ तथा पांडवों ने अर्धचंद्राकार
जैसी सैन्य व्यूह रचना की। कौरवों की ओर से दुर्योधन तथा पांडवों की
ओर से भीम व अर्जुन सुरक्षा कर रहे थे। इस दिन भीम ने घटोत्कच के साथ
मिलकर दुर्योधन की सेना को युद्ध से भगा दिया। यह देखकर भीष्म भीषण
संहार मचा देते हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को भीष्म वध करने को कहते हैं,
परंतु अर्जुन उत्साह से युद्ध नहीं कर पाता जिससे श्रीकृष्ण स्वयं
भीष्म को मारने के लिए उद्यत हो जाते हैं, परंतु अर्जुन उन्हें
प्रतिज्ञारूपी आश्वासन देकर कौरव सेना का भीषण संहार करते हैं। वे एक
दिन में ही समस्त प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव क्षत्रियगणों को
मार गिराते हैं। भीम के बाण से दुर्योधन अचेत हो गया और तभी उसका
सारथी रथ को भगा ले गया। भीम ने सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया। इस
दिन दोनों पक्षों की सेना में कड़ा मुकाबला हुआ, जिसमें कौरवों को ही
भारी क्षति होती है। उनके प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव वीर
योद्धा मारे जाते हैं।
- महाभारत का चौथा दिन : कौरवों ने बाणों से ढक दिया अर्जुन को
रणभूमि में चौथे दिन कौरवों ने अर्जुन को अपने बाणों से ढंक दिया,
परंतु अर्जुन ने सभी को मार भगाया। भीम ने तो इस दिन कौरव सेना में
हाहाकार मचा दी, दुर्योधन ने अपनी गज सेना भीम को मारने के लिए भेजी,
परंतु घटोत्कच की सहायता से भीम ने उन सबका नाश कर दिया और 14 कौरवों
को भी मार गिराया, परंतु राजा भगदत्त द्वारा जल्द ही भीम पर नियंत्रण
पा लिया गया। बाद में भीष्म को भी अर्जुन और भीम ने भयंकर युद्ध कर
कड़ी चुनौती दी। चौथे दिन भी कौरवों को नुकसान उठाना पड़ा और पांडव
पक्ष मजबूत दिखा।
- महाभारत का पांचवा दिन : पांडवों की ओर से
सात्यकि के 10 पुत्र मारे गए
महाभारत की रणभूमि में पांचवें दिन भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद
युद्ध की शुरुआत हुई और फिर भयंकर मार-काट मची। दोनों ही पक्षों के
सैनिकों का भारी संख्या में वध हुआ। भीष्म ने पांडव सेना को अपने
बाणों से ढक दिया। उनपर रोक लगाने के लिए अर्जुन और भीम ने भयंकर
युद्ध किया। सात्यकि ने द्रोणाचार्य को भीषण संहार करने से रोके रखा।
भीष्म द्वारा सात्यकि को युद्ध क्षेत्र से भगा दिया गया। सात्यकि के
10 पुत्र मारे गए। इस दिन दोनों ही पक्ष एक दूसरे पर भारी पड़ते
दिखे, लेकिन शाम तक पांडवों को भारी नुकसान हुआ।
- महाभारत का छठा दिन : भीष्म ने किया पांचाल सेना
का भयंकर संहार
रणभूमि में छठे दिन कौरवों ने क्रोंचव्यूह तथा पांडवों ने मकरव्यूह
के आकार की सेना कुरुक्षेत्र में उतारी। भयंकर युद्ध के बाद द्रोण
का सारथी मारा गया। युद्ध में बार-बार अपनी हार से दुर्योधन क्रोधित
होता रहा, परंतु भीष्म उसे ढांढस बंधाते रहे। अंत में भीष्म द्वारा
पांचाल सेना का भयंकर संहार किया गया। इस दिन पांचाल सेना के संहार
के कारण पांडवों को अपना काफी नुकसान होता नजर आया।
- महाभारत का सातवां दिन : नकुल और सहदेव ने शल्य को रणभूमि से भगाया
महाभारत युद्ध के सातवें दिन कौरवों द्वारा मंडलाकार व्यूह की रचना
और पांडवों ने वज्र व्यूह की आकृति में सेना लगाई। मंडलाकार में एक
हाथी के पास सात रथ, एक रथ की रक्षार्थ सात अश्वारोही, एक
अश्वारोही की रक्षार्थ सात धनुर्धर तथा एक धनुर्धर की रक्षार्थ दस
सैनिक लगाए गए थे। सेना के मध्य दुर्योधन था। वज्राकार में दसों
मोर्चों पर घमासान युद्ध हुआ। अर्जुन ने अपनी युक्ति से कौरव सेना
में भगदड़ मचा दी। धृष्टद्युम्न दुर्योधन को युद्ध में हरा देता है।
अर्जुन पुत्र इरावान द्वारा विन्द और अनुविन्द को हरा दिया जाता है,
भगदत्त घटोत्कच को और नकुल सहदेव मिलकर शल्य को युद्ध क्षेत्र से भगा
देते हैं। यह देखकर एकभार भीष्म फिर से पांडव सेना का भयंकर संहार
करते हैं। विराट पुत्र शंख के मारे जाने से इस दिन कौरव पक्ष की
क्षति होती है।
- महाभारत का आठवां दिन : अर्जुन की दूसरी पत्नी
उलूपी के पुत्र इरावन और धृतराष्ट्र के 17 पुत्रों का वध,
रणभूमि में आठवें दिन कौरवों ने कछुआ व्यूह तो पांडवों ने तीन शिखरों
वाला व्यूह रचा। पांडव पुत्र भीम धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध कर
देते हैं। अर्जुन की दूसरी पत्नी उलूपी के पुत्र इरावान का बकासुर के
पुत्र आष्ट्रयश्रंग (अम्बलुष) के द्वारा वध कर दिया जाता है।
घटोत्कच द्वारा दुर्योधन पर शक्ति का प्रयोग परंतु बंगनरेश ने
दुर्योधन को हटाकर शक्ति का प्रहार स्वयं के ऊपर ले लिया तथा बंगनरेश
की मृत्यु हो जाती है। इससे दुर्योधन के मन में मायावी घटोत्कच के
प्रति भय व्याप्त हो जाता है। तब भीष्म की आज्ञा से भगदत्त घटोत्कच
को हराकर भीम, युधिष्ठिर व अन्य पांडव सैनिकों को पीछे ढकेल देता है।
दिन के अंत तक भीमसेन धृतराष्ट्र के नौ और पुत्रों का वध कर देता है।
इस दिन के युद्ध में अर्जुन के पुत्र की मौत हुई वहीं धृतराष्ट्र के
भी 17 पुत्रों को भीम ने मार डाला।
- महाभारत का नौवां दिन : अर्जुन घायल , रथ भी जर्जर
महाभारत युद्ध के नौवें दिन भगवान श्री कृष्ण के उपदेश के बाद भयंकर
युद्ध हुआ, जिसके चलते भीष्म ने बहादुरी दिखाते हुए अर्जुन को घायल
कर उनके रथ को जर्जर कर दिया। युद्ध में आखिरकार भीष्म के भीषण संहार
को रोकने के लिए कृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ती है। उनके
जर्जर रथ को देखकर श्रीकृष्ण रथ का पहिया लेकर भीष्म पर झपटते हैं,
लेकिन वे शांत हो जाते हैं, परंतु इस दिन भीष्म पांडवों की सेना का
अधिकांश भाग समाप्त कर देते हैं। इस दिन के युद्ध में कौरव पांडवों पर भारी पड़े।
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महाभारत का दसवां दिन : अर्जुन ने भीष्म को बाणों से छेदा
रणभूमि में भीष्म द्वारा बड़े पैमाने पर पांडवों की सेना को मार
देने से घबराए पांडव पक्ष भयभीत हो गया, तब श्रीकृष्ण के कहने
पर पांडव भीष्म के सामने हाथ जोड़कर उनसे उनकी मृत्यु का उपाय पूछते
हैं। भीष्म कुछ देर सोचने पर उपाय बता देते हैं। इसके बाद भीष्म
पांचाल तथा मत्स्य सेना का भयंकर संहार कर देते हैं।
फिर पांडव पक्ष युद्ध क्षेत्र में भीष्म के सामने शिखंडी को युद्ध
करने के लिए लगा देते हैं। युद्ध क्षेत्र में शिखंडी को सामने डटा
देखकर भीष्म ने अपने अस्त्र त्याग दिए। इस दौरान बड़े ही बेमन से
अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को छेद दिया। भीष्म बाणों की शरशय्या
पर लेट गए। भीष्म ने बताया कि वे सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर
छोड़ेंगे, क्योंकि उन्हें अपने पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वर
प्राप्त है। दसवें दिन जहां पांडवों को शतानीक की क्षति हुई, वहीं
कौरवों ने भीष्म जैसा योद्धा खो दिया। इस दिन के युद्ध में पांडव बहुत
मजबूत हुए।
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महाभारत का ग्यारवां दिन : कर्ण ने पांडव सेना का भारी संहार किया
युद्ध में भीष्म के शरशय्या पर लेटने के बाद ग्यारहवें दिन के
युद्ध में कर्ण के कहने पर द्रोण सेनापति बनाए गए। ग्यारहवें
दिन सुशर्मा तथा अर्जुन, शल्य तथा भीम, सात्यकि तथा कर्ण और सहदेव
तथा शकुनि के मध्य युद्ध हुआ। कर्ण भी इस दिन पांडव सेना का भारी
संहार करता है। दुर्योधन और शकुनि द्रोण से कहते हैं कि वे युधिष्ठिर
को बंदी बना
लें तो युद्ध अपने आप खत्म हो जाएगा, तो जब दिन के अंत में द्रोण
युधिष्ठिर को युद्ध में हराकर उसे बंदी बनाने के लिए आगे बढ़ते ही
हैं कि अर्जुन आकर अपने बाणों की वर्षा से उन्हें रोक देता है। नकुल,
युधिष्ठिर के साथ थे। अर्जुन भी वापस युधिष्ठिर के पास आ गए। इस
प्रकार कौरव युधिष्ठिर को नहीं पकड़ सके। इस दिन विराट के वध से
पांडवों को भारी हानि हुई और कौरवों को कर्ण के आने का बल मिलता दिखा।
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महाभारत का बारहवां दिन : द्रोपदी के पिता राजा द्रुपद मारे गए
रणभूमि में पहले दिन अर्जुन के कारण युधिष्ठिर को
बंदी न बना पाने के कारण शकुनि व दुर्योधन अर्जुन को युधिष्ठिर से
काफी दूर भेजने के लिए त्रिगर्त देश के राजा को उससे युद्ध कर उसे
वहीं व्यस्त बनाए रखने को कहते हैं, वे ऐसा करते भी हैं,
परंतु एक बार फिर अर्जुन समय पर पहुंच जाता है और द्रोण असफल हो जाते
हैं। युद्ध में जब त्रिगर्त, अर्जुन को दूर ले जाते हैं तब सात्यकि,
युधिष्ठिर के रक्षक थे। वापस लौटने पर अर्जुन ने प्राग्ज्योतिषपुर
के राजा भगदत्त को अर्धचंद्र बाण से
मार डाला। सात्यकि ने द्रोण के रथ का पहिया काटा और उसके घोड़े मार
डाले। द्रोण ने अर्धचंद्र बाण द्वारा सात्यकि का सिर काट लिया।
सात्यकि ने कौरवों के अनेक उच्च कोटि के योद्धाओं को मार डाला जिनमें
से प्रमुख जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, म्लेच्छों की
सेना, भूरिश्रवा, कर्णपुत्र प्रसन थे। युद्ध भूमि में सात्यकि को
भूरिश्रवा से कड़ी टक्कर झेलनी पड़ी। हर बार सात्यकि को कृष्ण और
अर्जुन ने बचाया। युद्ध में पांडव पक्ष से राजा द्रुपद भी मारे गए।
कौरवों को त्रिगर्त नेरश की क्षति झेलनी पड़ी। इस दिन दोनों ओर से भारी
नुकसान के बावजूद मुकाबला बराबर बना रहा।
- महाभारत का तेरहवां दिन : चक्रव्यूह में अभिमन्यु का वध, अर्जुन की प्रतिज्ञा
रणभूमि में कौरवों ने चक्रव्यूह की रचना की। इस दिन दुर्योधन राजा
भगदत्त को अर्जुन को व्यस्त बनाए रखने को कहते हैं। भगदत्त युद्ध में
एक बार फिर से पांडव वीरों को भगाकर भीम को एक बार फिर हरा देते हैं
फिर अर्जुन के साथ भयंकर युद्ध करते हैं। श्रीकृष्ण भगदत्त के
वैष्णवास्त्र को अपने ऊपर ले उससे अर्जुन की रक्षा करते हैं। अर्जुन
भगदत्त की आंखों की पट्टी को तोड़ देता है, जिससे उसे
दिखना बंद हो जाता है और अर्जुन इस अवस्था में ही छल से उनका वध कर
देता है। इसी दिन द्रोण युधिष्ठिर के लिए चक्रव्यूह रचते हैं, जिसे
केवल अभिमन्यु तोड़ना जानता था, परंतु निकलना नहीं जानता था। अर्जुन
युधिष्ठिर, भीम आदि को उसके साथ भेजता है, परंतु चक्रव्यूह के
द्वार पर वे सबके सब जयद्रथ द्वारा शिव के वरदान के कारण रोक दिए
जाते हैं और केवल अभिमन्यु ही प्रवेश कर पाता है। कर्ण के कहने पर
सातों महारथियों
कर्ण, जयद्रथ, द्रोण, अश्वत्थामा, दुर्योधन, लक्ष्मण तथा शकुनि ने
एकसाथ अभिमन्यु पर आक्रमण किया। लक्ष्मण ने जो गदा अभिमन्यु के सिर
पर मारी वही गदा अभिमन्यु ने लक्ष्मण को फेंककर मारी। इससे दोनों की
उसी समय मृत्यु हो गई। अभिमन्यु के मारे जाने का समाचार सुनकर जयद्रथ
को कल सूर्यास्त से
पूर्व मारने की अर्जुन ने प्रतिज्ञा की अन्यथा अग्नि समाधि ले लेने
का वचन दिया। इस दिन के युद्ध में अभिमन्यु की मौत से पांडवों को
भारी क्षति हुई।
- महाभारत का चौदहवां दिन : कृष्ण ने माया से सूर्यास्त किया, बाहर निकले जयद्रथ को अर्जुन ने मार गिराया
रणभूमि में अर्जुन की अग्नि समाधि वाली बात सुनकर कौरव पक्ष में
हर्ष व्याप्त हो जाता है और फिर वे यह योजना बनाते हैं कि आज युद्ध
में जयद्रथ को बचाने के लिए सब कौरव योद्धा अपनी जान की बाजी लगा
देंगे। द्रोण जयद्रथ को बचाने का पूर्ण आश्वासन देते हैं और उसे सेना
के पिछले भाग में छिपा देते हैं। युद्ध शुरू होता है भूरिश्रवा, सात्यकि को मारना चाहता था, तभी अर्जुन
ने भूरिश्रवा के हाथ काट दिए, वह धरती पर गिर पड़ा तभी सात्यकि ने
उसका सिर काट दिया। तब कृष्ण अपनी माया से सूर्यास्त कर देते हैं। सूर्यास्त होते देख
अर्जुन अग्नि समाधि की तैयारी करने लगे जाते हैं। छिपा हुआ जयद्रथ
जिज्ञासावश अर्जुन को अग्नि समाधि लेते देखने के लिए बाहर आकर हंसने
लगता है, उसी समय श्रीकृष्ण की कृपा से सूर्य पुन: निकल आता है और
तुरंत ही अर्जुन सबको रौंदते हुए कृष्ण द्वारा किए गए क्षद्म
सूर्यास्त के कारण बाहर आए जयद्रथ को मारकर उसका मस्तक उसके पिता के
गोद में गिरा देते हैं। इस दिन कौरवों को जयद्रथ की भारी क्षति का सामना करना पड़ा।
- महाभारत का पंद्रहवां दिन : छल से किया द्रोण का वध
युद्ध में द्रोण की संहारक शक्ति के बढ़ते जाने से पांडवों के
खेमे में दहशत फैल गई। पिता-पुत्र ने मिलकर महाभारत युद्ध में
पांडवों की हार सुनिश्चित कर दी थी। पांडवों की हार को देखकर
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छल का सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत
युद्ध में यह बात फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया', लेकिन
युधिष्ठिर झूठ बोलने को तैयार नहीं थे। तब अवंतिराज के अश्वत्थामा
नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया। इसके बाद युद्ध में यह बात
फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया'। जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता
जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया- 'अश्वत्थामा मारा गया, परंतु
हाथी।' श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया, जिसके शोर के चलते गुरु
द्रोणाचार्य आखिरी शब्द 'हाथी' नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा मेरा
पुत्र मारा गया। यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि
में आंखें बंद कर शोक में डूब गए। यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को
निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट
डाला। इस दिन कौरवों को द्रोण की भारी क्षति का सामना करना पड़ा और पांडव काफी मजबूत साबित हुए।
- महाभारत का सोलहवां दिन : भीम ने पीया दुःशासन की छाती का रक्त
रणभूमि में पहले दिन के युद्ध द्रोण के छल से वध किए जाने के बाद
कौरवों की
ओर से कर्ण को सेनापति बनाया जाता है। कर्ण पांडव सेना का भयंकर
संहार करता है और वह नकुल व सहदेव को युद्ध में हरा देता है, परंतु
कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता। फिर अर्जुन के
साथ भी भयंकर संग्राम करता है। दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने अमोघ
शक्ति द्वारा घटोत्कच का वध कर
दिया। यह अमोघ शक्ति कर्ण ने अर्जुन के लिए बचाकर रखी थी, लेकिन
घटोत्कच से घबराए दुर्योधन ने कर्ण से इस शक्ति का इस्तेमाल करने के
लिए कहा। यह ऐसी शक्ति थी, जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था। कर्ण
ने इसे अर्जुन का वध करने के लिए बचाकर रखी थी। इस बीच भीम का युद्ध
दुःशासन के साथ होता है और वह दु:शासन का वध कर
उसकी छाती का रक्त पीता है और अंत में सूर्यास्त हो जाता है। इस दिन
के युद्ध में कौरव पक्ष को दुःशासन के वध से भारी नुकसान हुआ।
- महाभारत का सत्रहवां दिन : कर्ण को अर्जुन ने मार गिराया
रणभूमि में निर्णायक युद्ध की ओर बढ़ते हुए सत्रहवें दिन शल्य को
कर्ण का सारथी बनाया गया। इस दिन भीम और
युधिष्ठिर को हराकर कर्ण अपनी माता कुंती को दिए वचन को स्मरण कर
उनके प्राण नहीं
लेता। बाद में वह अर्जुन से युद्ध करने लग जाता है। कर्ण तथा अर्जुन
के मध्य भयंकर युद्ध होता है। कर्ण के रथ का पहिया धंसने पर
श्रीकृष्ण के इशारे पर अर्जुन द्वारा असहाय अवस्था में कर्ण का वध कर
दिया जाता है। इसके बाद कौरव अपना उत्साह हार बैठते हैं। उनका मनोबल
टूट जाता है।
फिर शल्य प्रधान सेनापति बनाए गए, परंतु उनको भी युधिष्ठिर दिन के
अंत में मार देते हैं। इस दिन कर्ण, शल्य और दुर्योधन के 22 भाइयों
की मौत से कौरवों को भारी क्षति का सामना करना पड़ताहै। पांडव कौरवों पर
भारी पड़ते गए औ कौरवों में हताशा का माहौल छा गया।
- महाभारत का अंतिम दिन :
महाभारत के अंतिम दिन निर्णायक युद्ध में कौरवों के तीन योद्धा
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा ही शेष बचे थे। इसी दिन अश्वथामा
द्वारा
पांडवों के वध की प्रतिज्ञा ली गई। सेनापति अश्वत्थामा तथा
कृपाचार्य के कृतवर्मा द्वारा रात्रि में पांडव शिविर पर हमला किया
गया। अश्वत्थामा ने सभी पांचालों, द्रौपदी के पांचों पुत्रों,
धृष्टद्युम्न तथा शिखंडी आदि का वध किया। पिता को छलपूर्वक मारे जाने
से अश्वत्थामा दुखी होकर क्रोधित
हो गए और उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया, जिससे युद्ध भूमि
श्मशान भूमि में बदल गई। यह देख कृष्ण ने उन्हें कलियुग के अंत तक
कोढ़ी के रूप में जीवित रहने का शाप दे डाला। इस दिन भीम दुर्योधन के
बचे हुए भाइयों को मार देता है। सहदेव शकुनि
को मार देता है और अपनी पराजय हुई जान दुर्योधन भागकर सरोवर के स्तंभ
में जा छुपता है। इसी दौरान बलराम तीर्थयात्रा से वापस आ गए और
दुर्योधन को निर्भय रहने का आशीर्वाद दिया। छिपे हुए दुर्योधन को
पांडवों द्वारा ललकारे जाने पर वह भीम से गदा
युद्ध करता है और छल से जंघा पर प्रहार किए जाने से उसकी मृत्यु हो
जाती है। इस तरह महाभारत में पांडव विजयी हो जाते हैं। इस दिन के
युद्ध में पांडव पक्ष की ओर से द्रौपदी के पांच पुत्र,
धृष्टद्युम्न, शिखंडी मारे जाते हैं और कौरव पक्ष की ओर से
हस्तिनापुर के युवराज और अंतिम योद्धा दुर्योधन को भी मार दिया जाता है।
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महाभारत युद्ध के अंत मेंः युधिष्ठर को राज्य, धन और वैभव से हुआ वैराग्य
महाभारत युद्ध जीतने के बाद युधिष्ठिर ने बचे हुए मृत सैनिकों का
(चाहे वे शत्रु वर्ग के हों अथवा मित्र वर्ग के) दाह-संस्कार एवं
तर्पण किया। इस युद्ध के बाद युधिष्ठिर को राज्य, धन, वैभव से
वैराग्य हो गया। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन भी अपने भाइयों के साथ हिमालय
चले गए और वहीं उनका देहांत हुआ।
महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से तीन और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे, जिनमें कौरव के : कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि।
महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से तीन और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे, जिनमें कौरव के : कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि।
- भीष्म 170 वर्ष के थे महाभारत युद्ध के वक्त भीष्म पितामह की आयु लगभग 170 वर्षथी, जब वे महाभारत युद्ध करते हुए शरशैया पर शरीर त्यागा। उस काल में 200 वर्ष की उम्र होना सामान्य बात थी। बौद्धों के काल तक भी भारतीयों की उम्र सामान्य तौर पर 200 वर्ष तक होती थी।
- प्रस्तुति : राजेश्वरी मौर्य, नई दिल्ली।
Asbhut jaankari. Lekhak ko kotishah badhai.
ReplyDeleteMujhe to Dronacharya aur Bhishma dono ka hi charitra achchha nahi laga. Karna ke saath jo anyay hua ,us par aaj ke pariprkshya me likha jana chahiye kyonki Mahabharata aaj bhi karono logon ko prabhawait karta hai.