POETRY : बस थोड़े दिन का रगड़ा है....
- बस थोड़े दिन का रगड़ा है...
-अनिल मौर्य-
एक तरफ सारा जहां, कोरोना से जकड़ा है।
दूसरी तरफ अमेरिका-चीन में,
खामियों का झगड़ा है ।।
तबाही के मंजर पर खड़ी है, दुनिया ये सारी ।
हमें तो इस बीमारी की,
मुक्ति की आश ने पकड़ा है ।।
देखकर मंजर ये खुदा,
बहा रहा आंसू बार-बार।
भूलकर गुनाहों को अपने तू,
अमादा होकर बेशर्मी में जकड़ा है ।।
रहम की खुद पर बांधे उम्मीद,
ग़ैरो की हिफाजत का भी रख ख्याल।
क्यूँ बार-बार की नसीहतों में तू,
अपनी खुदाई में अकड़ा है।
बन जा हमदर्द इक दूसरें का, संकट के इस दौर में।
भूला दे खामियां अब सबकी, फिर काहें का झगड़ा है।।
इज़हारे बयां कर,
बन जा ग़ैरो की खुशी अब।
गुम होकर घरों में बसर कर जिंदगी,
बस थोड़े दिन का रगड़ा है।।
हौंसला रख-हौंसलो की बात कर,
मुहब्बत का चमन भी खिलेगा।
दुआओं का दौर है अब जमानें में,
खुदा हमारा भी तगड़ा है।।
पूछकर दर्द किसी का, हमदर्दी जताता है तू बहुत ।
दिल से दिल की बात कर,
फिर काहें का दुखड़ा है ।।
यूँ वाहवाही लूटकर तू ना कर वक्त बर्बाद,
तेरी दुआओं का असर हम भी देखेगें आज,
रमजाने शरीफ़ में।
कुबुल होती दुआं तेरी,
या यूँ ही खुदाइयों में अकड़ा है ।।
- साभार : अनिल मौर्य, प्रधान स. जिलाधिकारी मेरठ/मंत्री-उत्तर प्रदेश कलेक्ट्रेट कर्मचारी संघ मेरठ मंडल।
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