P.V. Narasimha Rao : एक बार फिर नरसिम्हा राव

एक बार फिर नरसिम्हा राव

के. विक्रम राव

राष्ट्रीय मीडिया में  (25 जुलाई 2020) सुर्खी है कि “अंततः मां-बेटे ने पी.वी. नरसिम्हा राव की आर्थिक उपलब्धियों की प्रशंसा की। ” इस प्रधानमंत्री की मौत के सोलह साल बाद ही सही, कांग्रेस की वर्तमान अध्यक्ष (सोनिया गाँधी) और निवर्तमान अध्यक्ष (राहुल गाँधी) को अपनी पार्टी के पुराने मुखिया रहे इस प्रथम दक्षिण भारतीय प्रधानमंत्री की याद तो आयी। उनके गृहराज्य तेलंगाना में नरसिम्हा राव का वर्षपर्यंत जन्मशती समारोह (28 जून 2020) मनाया जा रहा है। मगर कल 29वीं वर्षगांठ थी, जब नरसिम्हा राव के वित्तमंत्री सरदार मनमोहन सिंह का क्रांतिकारी, सुधारवादी आर्थिक बजट (24 जुलाई 1991) पेश हुआ था। उस वक्त भारत विश्व में दिवालिया घोषित हो जाता। विदेशी मुद्रा भण्डार रसातल पर पहुँच गया था। उनके पूर्व वाले प्रधानमंत्री ठाकुर चंद्रशेखर सिंह के वित्तमंत्री बिहार वाले (बाद में झारखंडी) यशवंत सिन्हा ने भारतीय स्वर्ण भण्डार को लन्दन की गलियों में नीलाम कर दिया था, ताकि पेट्रोल खरीद सकें। सरकार के भीख का कटोरा यूरोप में घूम रहा था। 
इसी परिवेश में नरसिम्हा राव के नाती एन.वी. सुभाष ने व्यथा व्यक्त की कि हर मौके पर नीचा दिखाने, छवि विकृत करने और उनकी उपलब्धियों को हल्का बताने की प्रवृत्ति से सोनिया तथा राहुल बाज नहीं आते। मिट्टी के तेल से शव दहन करने और पार्टी कार्यालय (24 अकबर रोड) के फुटपाथ पर शव डाल देने तथा राजघाट पर शव दहन से मना करने का उल्लेख भी इस नाती ने किया। मात्र सांसद रहे संजय गाँधी की भी राजघाट पर समाधि बनवाइ गयी है। 
लेकिन एन.वी. सुभाष का यह आरोप वजनदार है कि पांच वर्ष (1991-1996) प्रधानमन्त्री काल में नरसिम्हा राव को कमजोर करने में सोनिया ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी।  संदेह तो यह भी है कि द्वितीय परमाणु परीक्षण की सूचना भी अमरिकियों को दिला दी गई। तभी नरसिम्हा राव ने अटलजी से शपथ ग्रहण के तुरंत बाद आग्रह किया था कि “मेरा पोखरण द्वितीय अवश्य पूरा करो।” 
इस पूर्व प्रधानमंत्री को अभी तक भारत रत्न से विभूषित नहीं किया गया। जबकि खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर, गायिका लता मंगेशकर, फ़िल्मी सितारे एम. जी. रामचंद्रन आदि को नवाजा जा चुका है। अतिरिक्त प्रधानमन्त्री पद पर आते-जाते रहे, गुलजारी लाल नन्दा भी नहीं छूटे। राजग और संप्रग सरकारें आयीं-गयीं पर इस भाषाविद, विद्वान, योग्य प्रधानमंत्री के बारे में सोचा तक नहीं गया। बिना बहुमत के पांच साल तक सरकार चलाना करिश्मा है, जो नरसिम्हा राव ने कर दिखाया।  
तो प्रश्न यह है कि आज अकस्मात् गैर-नेहरु परिवार के कांग्रेसी पुरोधा पर प्यार क्यों छलका है? 

क्या वंशानुगत धब्बे को मिटाने हेतु ?

लांछन तो नरसिम्हा राव पर कई लगाये गए। पर ख़ास रहे : बाबरी ढांचा गिरने देने का, मुस्लिम वोट बैंक को रुष्ट करने का, नेहरु के वंशजों के लिए वनवास की तैयारी करने का तथा परमिट राज के मुनाफाखोरों को चोट पहुँचाने का। पंजाब को भारत से जोड़े रखने का।
मगर इनमें विशेष इल्जाम था अल्पसंख्यकों का वोट बैंक तोड़ डालने का। मसलन इजरायली गणराज्य को मान्यता देने का। जब अरब आक्रमणकारियों को शिकस्त देनेवाले इजरायली विदेश मंत्री मोशे दयान भारत आये थे तो उनसे भेंट करने प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और विदेशमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी शाम ढले गुप्त जगह गए थे। मोरारजी देसाई ने तो आशंका जतायी थी कि यदि पता लग गया तो जनता पार्टी सरकार गिर जाएगी। अल्पसंख्यकों से ऐसी दहशत थी। नरसिम्हा राव ने खुलकर इजरायली नेताओं को भारत आमंत्रित किया। उनके गणराज्य को मान्यता प्रस्तावित की। सबसे पहले यह सूचना इस भारतीय प्रधानमंत्री ने दी यासर अराफात को जो इजरायल के घनघोर शत्रु थे। अराफात ने इस प्रस्ताव की ताईद की थी।
ऐसी ही बात थी अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण की। कांग्रेस पार्टी तो मुस्लिम वोट के खातिर निश्चित रही थी कि मस्जिद अक्षुण्ण रहेगी। पर नरसिम्हा राव ने भाजपा को बता दिया था कि वे राम मंदिर के पक्षधर हैं। कानूनन आज रामजन्म भूमि पर दावा ठोकने वालों की लाइन लगी है। विश्व हिन्दू परिषद्, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल, शिवसेना, भाजपा आदि। पर, अधिकारिक रूप से नरसिम्हा राव वाली भारत सरकार ने रामलला को ठौर दिलाई थी। 
इसी सन्दर्भ में सिलसिलेवार गौर कीजिये । दिसंबर 6, 1992, संध्या 4.50 बजे बाबरी ढांचे का आखिरी गुम्बद कारसेवकों ने ढा दिया था।  ठीक चालीस मिनट (5:30 शाम) बाद मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने राजभवन जाकर राज्यपाल बी. सत्यनारायण रेड्डी को त्यागपत्र दे दिया था। उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गयी थी। अर्थात नरसिम्हा राव की सरकार का पूरे उत्तर प्रदेश में गोधूली तक शासन कायम हो गया था। तो रामलला का मन्दिर तो उसी घंटे भर में निर्मित हो गया था।  अर्थात अगले अगस्त पांच को अयोध्या में नरेंद्र मोदी केवल ईंट, मौरंग, सीमेंट और बालू डालेंगे।  अतः समूचा श्रेय इस तेलुगुभाषी नियोगी ब्राह्मण को जाता है। तभी तो राहुल गाँधी ने कहा था कि यदि उनके परिवार का प्रधानमंत्री होता तो बाबर की मस्जिद बरक़रार रहती। यह सब लालचन्द किशिनचन्द अडवाणी, श्रेष्ठतम कारसेवक ने, अपनी आत्मकथा “माई कंट्री, माई लाइफ” (रूपा एण्ड कंपनी) में लिखी है। 
इंदिरा गाँधी परिवार के प्रति नरसिम्हा राव का रुख सदैव सहृदयतापूर्ण रहा। राजीव फाउंडेशन, जिसकी जांच हो रही है, को नरसिम्हा राव ने सौ करोड़ दिया था। माँ, बेटा, बेटी को बड़ा आवास और सुरक्षा दिया था। बोफोर्स काण्ड को समाप्त कराने हेतु नरसिम्हा राव ने अपने विदेशमंत्री माधवसिंह सोलंकी के हाथ स्वीडन के प्रधानमंत्री के नाम सन्देश भेजा था। राज फूटा तथा बेचारे सोलंकी की नौकरी चली गयी। सोनिया प्रधानमंत्री की जासूसी करती रहीं। इस पर भी वे शांत रहे। 
मुझे अपनी घटना याद है । हमारे IFWJ के पैंतीस पत्रकार जर्मनी प्रशिक्षण पर जा रहे थे। नरसिम्हा राव ने उन्हें अपने आवास पर चाय पर आमंत्रित किया। पीआईबी के प्रमुख एस. नरेंद्र और प्रधान सचिव पीवीआरके प्रसाद, ने व्यवस्था की थी। जब राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते मैंने बताया कि ये युवक-युवतियां जर्मनी पत्रकारिता-प्रशिक्षण हेतु जा रहे हैं। तो फटाक से प्रधानमंत्री ने पूछा, “बर्लिन में पत्रकारिता क्या सीखनी है, जो भारत में उपलब्ध न हो?”  मेरा उत्तर था, “पर्यटन भी एक प्रकार की शिक्षा तथा अनुभव है।”
फ़िलहाल नरसिम्हा राव इतिहास के ऐसे त्रासदीपूर्ण व्यक्ति हैं जिसे भाग्यलक्ष्मी ने वर तो लिया था, पर स्नेह से वंचित रखा|

K Vikram Rao, Sr. Journalist.
Mob: 9415000909
k.vikramrao@gmail.com

Comments

Popular posts from this blog

mirror of society : समाज का आईना है "फीका लड्डू"