Ek Awaaz for justice : फ्लैट होल्डर्स के साथ धोखाधड़ी, आरोपियों पर सख्त कार्रवाई क्यों नहीं ?
- फ्लैट होल्डर्स के साथ धोखाधड़ी, आरोपियों पर सख्त कार्रवाई क्यों नहीं ?
- क्या सुप्रीम कोर्ट लेगा इसका स्वत संज्ञान ?
- डॉ. पुष्पलता
अगर कोई भारत के किसी व्यक्ति को ये कहता है तू भ्रष्ट है, घटिया है तो भारत कतई घटिया या भ्रष्ट नहीं होता ! ठीक इसी तरह जब किसी जज या वकील को भ्रष्ट कहा जाता है, तो अदालत भ्रष्ट नहीं हो जाती और न ही अदालत की अवमानना मानी जा सकती है। फिर कुछ जज ऐसे कृत्य कर क्यों रहे हैं कि उनपर उँगली उठ रही हैं, सम्मान नहीं हो रहा है ? वे अपना सम्मान बरकरार क्यों नहीं रख पा रहे ? अदालत कभी भ्रष्ट नहीं हो सकती और कोई भी व्यक्ति जीवन भर ईमानदार होने के बावजूद कभी बेईमान हो सकता है! अब कोई कहे गोगोई का सम्मान करें क्या वो सम्मान करने लायक बचे हैं ? खुद की गरिमा जज खुद गिरा रहे हैं फिर कहा जा रहा है कि माफी मांगो, मानहानि हो गई। ये भी ध्यान रहे उंगली उठाने वाले उसी वर्ग से हैं।लोग त्राहिमाम कर रहे हैं उनकी। जान, धन, सम्मान, स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यवसाय की हानि हो रही है। पर्यावरण की हानि हो रही है,लोग बाढ़ और नालों में डूबे पड़े हैं। सब निजीकरण और निजी हो रहा है, सब गलत हो रहा है। किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही, कोई संज्ञान नहीं ले रहा तो अवमानना की ट्वीट कैसे दिख गई ? इसका मतलब तो यही हुआ कि सब जानबूझकर इग्नोर किया जा रहा है। सच बोलो तो जेल या पिटाई। हम आजाद हैं या नहीं ? कहां है हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ? संविधान की रक्षा कौन करेगा? ये सारे सवाल मुंह बाए खड़े हैं, कौन देगा इनके उत्तर?
अगर कोई किसी व्यक्ति को भ्रष्ट कहता है तो सुप्रीम कोर्ट भ्रष्ट नहीं होती, उसकी अवमानना नहीं होती। जज और वकील सुप्रीम कोर्ट के हाथ पैर और सिर हैं। शरीर के हिस्से हैं। मामला वसुंधरा गाजियाबाद सेक्टर 5 आइवरी टॉवर हिमालय कॉआपरेटिव सोसायटी का है। एक पुरानी
कॉआपरेटिव सोसायटी से दूसरे व्यक्तियों की समिति मिलकर आवास विकास से एक करोड़ 72 लाख में जमीन लेती है। फ्लैट बनाकर, बेचकर पूरा पैसा लेकर उड़ जाती है। आवास विकास के दो करोड़ प्लस लेट भरती है। फ्लैट होल्डर्स से स्विमिंग पूल के नाम पर ज्यादा पैसा वसूला जाता है। पार्किंग के भी पैसे वसूले जाते हैं। फिर स्विमिंग पूल की जगह भी फ्लैट बनाकर बेच दिए जाते हैं और पैसे लेकर वे भाग जाते हैं।आवास विकास ब्याज पर ब्याज चढ़ाकर उसके अतिरिक्त साढ़े नौ करोड़ बनाकर फ्लैट होल्डर्स की गर्दन दबोच लेता है कि दोबारा पैसे भरो। पंद्रह साल से रजिस्ट्री हुई नहीं।उन्हें अब कहा जा रहा है कि साढ़े नौ करोड़ ब्याज के तुम भरो, वरना वे जो पैसे दे चुके वे भी जाएंगे और फ्लैट भी।इन घटिया कानूनों में बदलाव क्यों नहीं होता? उन्हीं में से एक सचिव के नाम पर सम्मुख खड़े व्यक्ति को पकड़कर क्यों नहीं पैसे लेकर भाग जाने वाले उसकी गवाही पर पकड़े जाते ? ऐसी बातों का सुप्रीम कोर्ट, सरकार कभी खुद संज्ञान क्यों नहीं लेती ? मैंने भी संज्ञान लें कहकर ट्वीट किया था, उस पर क्यों नजर नहीं गई ? जब तक दस बीस फ्लैट होल्डर्स आत्महत्या न कर लें मीडिया भी नहीं सुनेगा ? किसी का तनाव में हार्ट फेल हो जाए, होता रहे। कोई आवास विकास से ये क्यों नहीं पूछता वे पन्द्रह बीस साल से कहाँ सो रहे थे? उन्होंने जमीन जब दी थी तो सोसायटी से अब तक क्यों नहीं वसूले ? यद्यपि वे दो करोड़ प्लस ले चुके हैं। अब उन्होंने ब्याज पर ब्याज चढ़ाकर उससे अलग साढ़े नौ करोड़ बना दिए हैं। फ्लैट होल्डर कहाँ दोषी है ? उनसे पैसे वसूलने का क्या अधिकार है ? ऐसे कानूनों की खामियों से लोग जब जमीन और पैसे हजम कर रहे हैं, आखिर क्यों नहीं बदले जाते ये कानून ? वे सोसायटी के सदस्य सब पैसे हजम कर एक आदमी को सचिव के नाम पर आगे कर पर्दे के पीछे खड़े हैं, वे क्यों नहीं पकड़े जाते ? इस अंधेरगर्दी के उपचार क्यों नहीं होते ? उन्हें जेल क्यों नहीं भेजा जाता ? जो बिल्डर्स कॉआपरेटिव सोसायटी के नाम पर फ्लैट होल्डर्स के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं। वे सोसायटी के नाम पर अपना फंदा फ्लैट होल्डर्स के गले में डाल रहे हैं, जबकि वे तय शुदा मांगा हुआ पैसा दे चुके हैं और आवास विकास उनपर तलवार लटका रहा है। किसानों के बाद अब मध्य वर्ग की आत्महत्या की बारी है। रिटायर, पेंशनर लोग कुछ लोन लेकर जैसे तैसे अपने घर का जुगाड़ करते हैं। उनसे वो छीन लेने की तैयारी उनके गले पर अंगूठा रखकर आवास विकास कर रहा है।कहाँ से लाएं वे पन्द्रह-पन्द्रह लाख रुपये दोबारा। क्या सुप्रीम कोर्ट या सरकार इस अंधेरगर्दी का संज्ञान लेगी ?जबकि सरकार को इस तरह की सोसायटीज ग्रुप्स, कम्पनीज रोज खुद चूना लगा रही हैं। बड़े-बड़े मगरमच्छ डिफाल्टर का वे कुछ बिगाड़ नहीं पाते। मगर कुम्हार का कुम्हारी पर वश चलता नहीं, जाकर फ्लैट होल्डर्स गधों की गर्दन पकड़ी जा रही है या छोटे-मोटे लोनधारकों की गर्दन मरोड़ी जा रही है। जिन जजों को मानहानि की चिंता हुई, उनकी इस कथित मानहानि करने वालों में यद्यपि एक अधिवक्ता है, जो वे रह चुके हैं और एक जज है, जो वे हैं। उधर जिनकी जान हानि,धन हानि, मानहानि व सुख-शांति की हानि हो रही है, उनके अधिकारों की रक्षा के लिए ही उनको ये पद,ये सम्मान दिया गया है। किसी और उद्देश्य के लिए सुप्रीम कोर्ट की स्थापना नहीं हुई है। क्या वे इसका भी संज्ञान लेंगे?सादर माफ़ीनामे के साथ।यद्यपि वे संज्ञान लें, ये रिक्वेस्ट ट्वीट में भी कर चुकी हूँ ।
( लेखक सुप्रसिद्ध साहित्यकार और वरिष्ठ अधिवक्ता हैं )
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