Rahul & yogi : राहुल के और योगी के बहनोई

  •  राहुल के और योगी के बहनोई !


  • के. विक्रम राव


यह गाथा है दो जीजाओं की| एक सम्पन्न, समर्थ, पर बैठा-ठाला| दूसरा है विपन्न, मेहनतकश, धरती पर टिका, मगर औसत| इन दोनों व्यक्तियों की निजी मर्यादा पर ही आधारित है उनके पारिवारिक व्यवहार की शुचिता| यही अब मुद्दा भी है| उसके सन्दर्भ में उपजता है गत सप्ताह के कांग्रेसी विद्रोह का जिक्र जो अब चर्चा का विषय है| उसी पर गौर कर लें| राजनैतिक बवंडर न उठता अगर जनाब नबी भाई, जो गुलाम हैं, साथ में आजाद भी हैं, कोई बयानबाजी न करते, सोनिया को धमकाते नहीं| उन्होंने ऐसा किया, क्योंकि कारूं के खजाने की कुंजी जो गुम हो रही थी| उनके बाईसों बांकों की टीस उठी, पीड़ा हुई| मगर विलम्ब हो चुका था| दशकों से जी हुजूरी की लत जो पड़ गयी थी| 


इस बार सबला की तगड़ी लताड़ न पड़ती तो यह टेव व्यसन बन चुकी होती| ये सोनिया-कांग्रेसीजन शायद भूल गए जब भारत का (14-15 अगस्त मध्यरात्रि, 1947) “नियति से सामना” हुआ था| किन्तु वे अनभिज्ञ रहे तब सड़कों पर दीवाने जनसूत्र गुंजा रहे थे “नया जमाना आयेगा, कमानेवाला खायेगा|” आधुनिक त्रासदी है कि अब यह नारा पुराना पड़ गया, इसके मायने भी जंग खा गए| उसका सूरमापन फीका पड़ गया| बापू के लोग फिर लुटेरे हो गए थे, सिपाहसालार समेत|


आज कांग्रेस पार्टी की उत्पादक शक्ति शोचग्रस्त हो गयी है उस जीजा की हरकतों के कारण, जिसके पुत्र (अगली पीढ़ी वाले) का नाम है “रेहान राजीव वाड्रा” | 


चर्चा बढ़ाने हेतु सर्वप्रथम तो हम उस दूसरे दामाद का उल्लेख करें| उनका नाम है श्री पूरन सिंह| ऋषिकेश के निकट यमकेश्वर-स्थित नीलकंठ मंदिर के पास वे एक परछत्ती पर चाय बेचते हैं| बिस्कुट, पकोड़ी भी भक्तों को देते हैं| ठीक जैसे प्रधानमंत्री वडनगर बस स्टैंड पर चाय बेचा करते थे| पूरनजी की ब्याहता शशिदेवी वहीँ फूल बेचती हैं, भगवान को अर्पित करने हेतु| यह दंपति पूरी तरह समर्पित जीवन व्यतीत कर रहा है| उनमें संचय प्रवृत्ति नहीं है| तो फिर वे जागीरदार कैसे बनते? इसीलिए न पाने की चाहत है,और न खोने का रंज|

 

पूरन सिंह ढिंढोरा तक नहीं पीटते कि उनके साले का नाम बड़ा है| वे दीक्षापूर्व अजय सिंह बिष्ट थे, जो गणित में स्नातक रहे| नाथ संप्रदाय में दीक्षा पाकर, गोहितकारी पुजारी, हिन्दू वाहिनी के संस्थापक, 48-वर्षीय योगी आदित्यनाथ हैं, जो तीन सालों से, पूर्णबहुमत से जीतकर, विशाल उत्तर प्रदेश के 21वें मुख्यमंत्री हैं| हालाँकि संन्यास के पश्चात लौकिक रिश्ते ढीले पड़ जाते हैं |


अब आयें पहले वाले दामाद पर, अर्थात राबर्ट वाड्रा, पुत्र स्कॉटलैंड मूलवाली मोरीन आर. वाड्रा| वे मुरादाबाद में पीतल के बर्तन हाल ही तक बेचा करते थे| राजीव गाँधी की पुत्री प्रियंका से प्रेम हुआ, शादी कर ली| उनकी प्रगति में छलांग लगी| नेहरू-परिवार के वारिस राहुल के यह अकेले जीजा कई कीर्तिमान रचकर मीडिया की सुर्ख़ियों में हैं| उनपर भू-माफियागिरी का आरोप भी आयद हुआ है| 


अर्थात प्रियंका की दादी के पूर्वजों को देखें| कहाँ जवाहरलाल नेहरू दस वर्ष जेल में रहे अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने में| कहाँ उनके नाती के दामाद हैं जो आर्थिक अपराध में हिरासत के बाहर-भीतर आवागमन करते रहते हैं!


राजनेताओं के रिश्तेदारों की दबंगई तो देखी सुनी जाती रही, मसलन बीवी-बहन-बेटी और बहू, अथवा भाई-भतीजा, बेटा और साला इत्यादि। हालाँकि देश के प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री का जीजा आजकल बस यदाकदा ही दिखता अथवा याद आता है। यूं गत लोकसभा के आम निर्वाचन में उनका जोर-शोर से नामी गिरामी हो जाना करामाती था। कांग्रेस के भ्रष्टाचार पर हमला बोलना हो तो यह दामाद अत्यंत सुलभ माध्यम है। भले ही किसी मेनिफेस्टो में वह उल्लिखित न भी हुआ हो। वह बीवी के सरकारी आवास का वासी था| राष्ट्र की अर्थनीति पर प्रभाव डालता रहा, खासकर किसानों से भूमि अधिग्रहण वाले मामले में। राबर्ट वाड्रा ने शायद स्पेनी कहावत सुनी थी कि शेर की पूंछ बनने के बजाय मूषक का सिर बनकर रहो। अतः एक बार दावा भी किया था कि लोकसभा की 543 निर्वाचन क्षेत्रों से वे कहीं से भी लड़े तो विजयी होंगे। पर प्रियंका ने राबर्ट को राजनीति से परे ही रखा है। फिर भी बेचारे राबर्ट घुन की भाँति अपने ससुरालवाले गेहूँ के साथ चुनाव में पिसते नजर आते रहे । 


वे केवल दसवीं तक पढे़ है और एक लाख रूपये की पूंजी से कृत्रिम आभूषण निर्यात का व्यापार शुरू कर गत छः वर्षों में जमीन के क्रय-विक्रय से जुडे़ है। उनकी संपत्ति अब खरब रूपये में हैं। 


इस जीजा-जामाता पुराण में सर्वाधिक ऐतिहासिक और यादगार प्रकरण रहा सवा सौ साल पूर्व वाला। तब महान अर्थशास्त्री कार्ल हेनरिख मार्क्स ने अपने पत्रकार-दामाद को लिखा था, “मैं मार्क्सवादी नहीं हूँ”। दामाद पाल लाफार्ग जिसने लारा मार्क्स से विवाह किया था, पेरिस में क्रान्तिकारी कार्यों में लीन था। उसने अपने ससुर के चिन्तन में मौलिक संशोधन कर डाला था, फिर भी निखालिस मार्क्सवादी होने की दुंदुभि बजाता रहा। नाराज ससुर ने इस वैचारिक भटकाव के कारण दामाद से नाता तोड़ लिया था। उसे लिखा था: “यदि तुम मार्क्सवादी हो, तो मैं मार्क्सवादी कदापि नही हूँ|”


 अतः पॉल लाफार्ग से पूरन सिंह और राबर्ट वाड्रा तक के इस क्रम में सवाल यही उठता है कि निकट संबंधों में छूट कितनी जायज सीमा तक हो सकती है? शुचिता का अर्थ क्या हो ? 


  • K Vikram Rao

Mobile -9415000909

E-mail –k.vikramrao@gmail.com

Comments

Popular posts from this blog

26/11 what mumbai diaries/Expose irresponsible electronic media/ Live reporting of TV became helpful to terrorists