AKALI DAL & BSP IN PUNJAB : बसपा-अकाली दल गठबंधन: पंजाब के लिए नई उम्मीद

  •  बसपा-अकाली दल गठबंधन:  पंजाब के लिए नई उम्मीद







मुबाहिसाः आर.के मौर्य

सपा जहां इन दिनों उत्तर प्रदेश में अंतरकलह और अपने कद्दावर नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने के कारण विरोध का सामना कर रही है, वहीं पंजाब में अकाली दल के साथ गठबंधन अच्छा कदम रहा है, जो भविष्य के चुनाव में फायदे का सौदा साबित होगा और मान्यवर कांशीराम की धरती पर एक बार फिर बसपा अपनी ताकत बनाने में सफल होगी।  भले ही समझौते में बसपा को  विधानसभा के लिए 20 सीटों पर ही चुनाव लड़ने का समझौता हुआ है, लेकिन यह 20 सीटें ही जमीनी आधार मजबूत करने वाली साबित होंगी और यदि बहनजी ने अपनी आदतन यूपी की तरह उतावलापन नहीं दिखाया और अकाली दल के साथ साझेदारी जारी रखी तो दोनों पार्टियों का गठबंधन पंजाब में लंबे समय तक स्थायी सरकार देने में सक्षम बनेगा।

पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जनता के सामने अकाली दल-बसपा गठबंधन के रूप में एक नया सियासी समीकरण सामने आया है। 2022 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए सुखबीर सिंह बादल की शिरोमणी अकाली दल और मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने तमाम अटकलों के बीच आखिर गठबंधन कर लिया है। पिछले चुनाव में अकाली दल और भाजपा के बीच गठबंधन था।

बसपा के साथ गठबंधन का ऐलान अकाली दल के मुखिया सुखबीर सिंह बादल ने करते हुए कहा कि शिरोमणि अकाली दल और बसपा अगले साल 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ेंगे। पंजाब की 117 सीटों में से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) 20  सीटों पर और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) शेष 97 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

गठबंधन का ऐलान करते हुए सुखबीर सिंह बादल ने इसे पंजाब की राजनीति का एक नया दिन बताया। उन्होंने कहा कि आज ऐतिहासिक दिन है। पंजाब की राजनीति का बड़ा टर्न है। इस दौरान बसपा के महासचिव  सतीश चंद्र मिश्रा भी उनके साथ मौजूद थे। मीडिया को संबोधित करने के ल‌िए एक बड़ा सा मंच सजाया गया था, जिसपर दोनों पार्टियों के नेता मौजूद थे।

ऐलान के वक्त बताया गया कि पंजाब में बसपा जालंधर, करतारपुर साहिब, जालंधर-पश्चिम, जालंधर-उत्तर, फगवाड़ा, होशियारपुर अर्बन, दसूया, रूपनगर जिले में चमकौर साहिब, बस्सी पठाना, पठानकोट में सुजानपुर, मोहाली, अमृतसर उत्तर और अमृतसर सेंट्रल सीटे मुख्य रूप से शामिल हैं।

पिछले वर्ष तक शिअद यानी शिरोमणि अकाली दल ने पहले भाजपा के साथ गठजोड़ था। दोनों पार्टियों ने कई चुनाव साथ-साथ लडे। यहां तक कि इस बार हरियाणा में भी भाजपा की सरकार को बनवाने के लिए अंततः प्रकाश सिंह बादल ने ही मददगार बनकर दुष्यंत चौटाला को मनाया वरना वहां भी मनोहर लाल खट्टर सरकार साफ हो जाती। लेकिन पिछले वर्ष किसान आंदोलन के सामने जिद पर अड़े प्रधानमंत्री मोदी ने जब किसानों की मांगों को नकार दिया तो न केवल प्रकाश सिंह बादल की पुत्रवधु और सुखबीर सिंह बादल की धर्मपत्नी श्रीमती हरसिमरत कौर ने केंद्रीय मंत्रालय से इस्तीफा दिया, बल्कि भाजपा से अपना रास्ता अलग कर लिया। कृषि कानूनों के मुद्दे पर भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए से अलग रास्ता अपनाते हुए किसानों का साथ चुना। हालांकि किसानों के आंदोलन के दौरान कांग्रेस का रुख अकाली दल से भी कहीं अधिक किसानों के साथ दिखाई दिया। कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक निरंतर किसान आंदोलन के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है। भाजपा पंजाब में अकाली दल यानी शिअद के साथ गठबंधन के तहत 23 सीटों पर चुनाव लड़ती थी।

   इन दिनों पंजाब में कांग्रेस अंतरकलह से जर्जर होती जा रही है। साथ ही कांग्रेस हाईकमान की कैप्टन अमरिंदर सिंह पर ढीली होती पकड़ का लाभ उठाकर भी कैप्टन अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने की कोशिश में हैं। इससे कांग्रेस की इस खींचतान से नीचे तक पार्टी कमजोर होती दिख रही है, जिसका आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सीधा नुकसान होने से कोई नहीं रोक पाएगा। कैप्टन की आंतरिक रूप से प्रधानमंत्री मोदी से बढ़ती नजदीकी भी अब सामने आती दिख रही है, जिसका आम जनता में भी अच्छा संदेश नहीं जा रहा है। किसान आंदोलन और कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मोदी की लोकप्रियता में निरंतर कमी आ रही है। जनता में इन दिनों मोदी का मुखर होकर लोग विरोध करने लगे हैं। हालांकि मोदी अपने सीधे संवाद के टोटके से डैमेज कंट्रोल की कोशिश में है, पर इसका कहीं खास असर होता नहीं दिख रहा है।   

ऐसे में पंजाब में जहां अकाली दल से गठबंधन करने पर अपनी जमीनी ताकत को मजबूत करने का मौका मिलेगा, वहीं अकाली दल को जनता का दोबारा विश्वासन जीतकर सत्ता में लौटने का मौका और वहां की जनता को भी सुखबीर सिंह के सीधे नेतृत्व में एक नई उम्मीद दिख रही है।

  • (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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