हिंदुओं का गुरु-मुसलमानों का पीर...Guru of Hindus, Pir of Muslims

 हिंदुओं का गुरु-मुसलमानों का पीर

 






    ववर्ष की पूर्व संध्या पर गुरु नानक देव जी महाराज की पुण्यभूमि करतारपुर साहब (पाकिस्तान) जाकर उनके पावन स्थान के दर्शन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। मैं अनेक मामलों में स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूं कि उनके जन्म स्थल ननकाना साहिब का भी दर्शन करने का दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ।
     करतारपुर साहब वह स्थान है, जहां गुरु नानक देव जी महाराज ने अपने जीवन यात्रा के लगभग 17-18 वर्ष एक जगह रहकर बिताए । उन्होंने यहीं संगत, पंगत और कीरत के महान प्रयोग कर उनका संदेश दिया। यहीं उन्होंने लंगर अर्थात कम्युनिटी किचन की स्थापना की। अपनी महान कृति जपु जी साहब की रचना कर एक आध्यात्मिक साधना का संदेश दिया । उनकी कृषि भूमि, बाग और स्मृति से जुड़े अन्य स्थल यहां सुरक्षित हैं। 
     "मानस की एक जात,एक ही पहचान है" का संदेश देने वाले बाबा नानक भी अपने अनुयायियों द्वारा छेड़े इस विवाद से नहीं बच पाए कि वे कौन है ?  अपना शारीरिक चोला छोड़ने के बाद चेले आपस में ही भिड़ गए । हिंदू कहते कि वे हिंदू है उनका हिंदू रीति रिवाज के अनुसार दाह संस्कार किया जाएगा और मुस्लिम कहते कि वे उनके पीर थे इसलिए उनकी मजार बनाई जाएगी । खूब झगड़ने के बाद जब वे किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे तो उस कमरे के अंदर पहुंचे जहां उनका पार्थिव शरीर रखा गया था तो पाया कि वहां तो उसके स्थान पर कुछ फूल रखे है, जिन्हें उन दोनों ने आपस में बांट लिया। हिंदुओं ने उसी स्थान पर समाधि बनाई और मुसलमानों ने मजार (कब्र)। 
 करतारपुर साहब में कुल 5-7 मीटर पर इन दोनों के दर्शन किए जा सकते हैं, जो एक ऐसे आध्यात्मिक अनुभव है, जिसका वर्णन शब्दों से परे है ।
       सन् 1947 में भारत विभाजन के बाद गुरु नानक जी की अपनी खेती की जमीन का भी बंटवारा हो गया। एक हिस्सा इधर रह गया, जिसे डेरा बाबा नानक और रावी नदी के पार दूसरा हिस्सा करतारपुर। ज़मीन तो इधर उधर हो गई पर बाबा नानक किनके हुए ? इनके या उनके। 
दोनों तरफ के हिंदू-मुस्लिम श्रद्धालुओं का दवाब था कि वे इस दीवार को ख़त्म करें ताकि दोनों स्थानों के दर्शन हो सकें।यह विवाद भी खत्म होने को नहीं आ रहा था और आखिरकार दोनों सरकारों ने एक वीजा फ्री काॅरिडोर बनाने का फैसला लिया और अब दोनों तरफ के श्रद्धालु यहां आकर गुरु महराज की समाधि और मजार के दर्शन करते हैं वहीं, तमाम राजनीतिक- कूटनीतिक पाबंदियों के एक- दूसरे को मिलकर अपनी दोस्ती और इच्छाशक्ति का इज़हार करते हैं। बेशक एक दिन में जानें वालों की संख्या को सीमित किया गया है परंतु यह एक ऐसा तीर्थ बन गया है जहां दोनों देशों के लोग बराबर संख्या में होते हैं और अपने ख्यालात का इज़हार करते हैं।
      करतारपुर साहब काॅर‌िडोर, दक्षिण एशिया विशेषकर भारत और पाकिस्तान के अमन पसंद जनता का मिलन स्थल बन गया है, जो हर मसले का हल गोली से नहीं बोली से चाहते हैं। जिनके नारे है "गोली नहीं- बोली चाहिए" और "जंग नहीं उन्हें अमन चाहिए"।
 आगाज़ ए दोस्ती की इस मुहिम के तहत इससे जुड़ना मेरी चिर प्रतिक्षित अभिलाषा की पूर्ति थी ।

  • राम मोहन राय, वर‌िष्ठ अध‌िवक्ता, सुप्रीम कोर्ट
  • करतारपुर साहब (Pakistan)

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