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Showing posts from July, 2011
BETIYAN. "Oas ki bund hoti hai betiyan Sparsh khurdra ho to roti hai betiyan Roshan karega beta to bus 1 hi kul ko 2-2 kulon ki laaj ko dhoti hai betiyan Koi nahi ek dusre se kam Heera agar hai beta to sachcha moti hai betiyan Kanton ki raah pe khud hi chalti rahengi Auron ke liye phool boti hai betiyan Vidhi ka vidhan hai, Yahi duniya ki rasam hai Mutthi bhar neer si hoti hai BETIYAN Jinpe ho Ishwar ki aseem kripa Unke naseeb main hoti hai BETIYAN "
आर.के. मौर्य का सम्मान शामली (उ.प्र.)। राष्ट्रीय स्वतंत्र पत्रकार एसोसिएशन के राष्ट्रीय अधिवेशन में इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के राष्ट्रीय पार्षद आर.के. मौर्य को सम्मानित किया गया। पत्रकारिता और पत्रकार संगठनों के लिए श्री मौर्य के कार्यों की सराहना करते हुए उनको सम्मानित किया गया। मौर्य ने इस मौके पर देश के कोने-कोने से आए पत्रकारों को संबोधित करते हुए आज के परिवेश में पत्रकार संगठन की आवश्यकता पर बल दिया और देश के वर्तमान हालात पर अपने विचार व्यक्त किए। राष्ट्रीय स्वतंत्र पत्रकार एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमीर आलम ने सभी पत्रकारों का आभार जताया। यह संगठन स्वतंत्र पत्रकारों विशेष रूप से रिटेनर के रूप में विभिन्न समाचार पत्रों में कार्यरत पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए काम करता है। श्री मौर्य पहले भी तमाम अवार्ड से विभिन्न पत्रकार संगठनों द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं।
STORY Two friends were walking through the desert. During some point of the journey they had an argument, and one friend slapped the other one in the face. The one who got slapped was hurt, but without saying anything, wrote in the sand: "TODAY MY BEST FRIEND SLAPPED ME IN THE FACE." They kept on walking until they found an oasis, where they decided to take a bath. The one, who had been slapped, got stuck in the mire and started drowning, but the friend saved him. After the friend recovered from the near drowning, he wrote on a stone: "TODAY MY BEST FRIEND SAVED MY LIFE." The friend who had slapped and saved his best friend asked him, "After I hurt you, you wrote in the sand and now, you write on a stone, why?" The other friend replied: "When someone hurts us, we should write it down in sand where winds of forgiveness can erase it away. But, when someone does something good for us, we must engrave it in stone where no wind can ever erase it."
समझों बाबा रामदेव जैसे संतों को ! मेरा बचपन पटियाला (पंजाब ) में बीता है। मेरी उम्र करीब पांच वर्ष रही होगी, जब मैं एक दिन अपने पिताजी के व्यवसाय के लिए बाहर जाने पर मकान मालकिन के पास बैठा था। दुपहर को एक साधु आया और उसने कहा कि माई मुझे भूख लगी है, मुझकों खाना खिला दो। मकान मालकिन काफी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं, उन्होंने साधु को बड़े ही श्रद्धापूर्वक भोजन खिलाया। खाना खाने के बाद साधु ने मुझ बालक के बारे में जानकारी की, कि यह कौन है। उत्तर में मकान मालकिन ने उनको बताया कि यह किरायेदार का बच्चा है। साधु ने मेरे मस्तक को देखकर कुछ बातें बताईं, जो मेरे भविष्य को लेकर थी। उस समय बाल्यावस्था में मैं भविष्य को लेकर अनजान था, तो वे मेरी समझ से बाहर थी। साधु को जब विदा होने लगे तो मकान मालकिन ने उनको दक्षिणा के रूप में अब से करीब 35 वर्ष पूर्व सवा रुपया दिया, जिसको साधु ने यह कहते हुए लेने से इनकार कर दिया कि वह मुद्रा नहीं ले सकता और उनका संकल्प है कि वह कभी मुद्रा नहीं छुएगा। पूछने पर साधु ने बताया कि उसकी आवश्यकता केवल जीवन के लिए दो रोटी और तन ढकने के लिए एक कपड़ा, जो जहां से भी