समझों बाबा रामदेव जैसे संतों को !



मेरा बचपन पटियाला (पंजाब ) में बीता है। मेरी उम्र करीब पांच वर्ष रही होगी, जब मैं एक दिन अपने पिताजी के व्यवसाय के लिए बाहर जाने पर मकान मालकिन के पास बैठा था। दुपहर को एक साधु आया और उसने कहा कि माई मुझे भूख लगी है, मुझकों खाना खिला दो। मकान मालकिन काफी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं, उन्होंने साधु को बड़े ही श्रद्धापूर्वक भोजन खिलाया। खाना खाने के बाद साधु ने मुझ बालक के बारे में जानकारी की, कि यह कौन है। उत्तर में मकान मालकिन ने उनको बताया कि यह किरायेदार का बच्चा है। साधु ने मेरे मस्तक को देखकर कुछ बातें बताईं, जो मेरे भविष्य को लेकर थी। उस समय बाल्यावस्था में मैं भविष्य को लेकर अनजान था, तो वे मेरी समझ से बाहर थी। साधु को जब विदा होने लगे तो मकान मालकिन ने उनको दक्षिणा के रूप में अब से करीब 35 वर्ष पूर्व सवा रुपया दिया, जिसको साधु ने यह कहते हुए लेने से इनकार कर दिया कि वह मुद्रा नहीं ले सकता और उनका संकल्प है कि वह कभी मुद्रा नहीं छुएगा। पूछने पर साधु ने बताया कि उसकी आवश्यकता केवल जीवन के लिए दो रोटी और तन ढकने के लिए एक कपड़ा, जो जहां से भी भिक्षा में मिल जाए। वह हमेशा पदयात्रा करते हैं कभी एक स्थान पर अधिक दिन नहीं ठहरते हैं। उन्होंने बाल्यावस्था में ही अपना घर त्याग दिया था और उसके बाद दुबारा लौटकर वापस नहीं गए। इस साधु की उस समय उम्र 60-70 वर्ष रही होगी, लेकिन उसके मुख पर एक अजीब तेज देखने को मिला। साधु के विदा होने के बाद मैंने अपने मकान की मालकिन वृद्धा से पूछा कि दादी ये कौन थे?


मकान मालकिन दादी ने बताया कि बेटा इनको साधु कहते हैं और दूसरे अर्थों में ये भगवान के दूत है, यानि जिसने हम सबको बनाया और वह सबका मालिक है, उससे सिर्फ इन साधु-संतों का ही सीधा संबंध होता है। दादी ने मुझे बताया कि इस साधु ने जो बात बताई है, यदि वे तेरे जीवन सच हों, तो मान लेना कि यह साधु वास्तव में भगवान का ही दूत था। समय के साथ कदमताल बढ़ाते हुए मेरे पिताजी ने पटियाला छोड़ दिया और हम पुनः अपने जन्म स्थान पर आ गए। जब मैं पढ़ने जाने लगा तो कुछ वर्षों बाद ही साधु की बातें सच साबित होने लगी और मैं अब भी लगातार महसूस करता हूं कि उनकी बताई बातें सच थी और वह साधु मेरी दादी के बताए अनुसार वास्तव में भगवान का सच्चा दूत था।


मैंने आपको अपने जीवन का यह प्रसंग इसलिए सुनाया कि मेरे मन में एक साधु की सच्ची तस्वीर और उसके प्रति अपार श्रद्धा है। इसलिए मैंने उक्त जैसे ही सच्चे साधु की तलाश अपने जीवन में समय-समय पर कई बार की। मैं कुंभ और महाकुंभों में भी काफी गया और अपने पत्रकारिता के पेशे में भी तमाम बड़े-बड़े साधु-संतों से मिलने का अवसर मिला, उनसे लंबी वार्ता करने का अवसर भी मिला। पर मैं देखता हूं, मुझे उक्त जैसा भगवान का दूत कहे जाने योग्य कोई साधु महात्मा नहीं मिल पाता है और अब तो अति हो रही है, जिसको दुनिया साधु -संत मानकर उसके पीछे लग जाती है, कुछ अर्से बाद जब उसके जीवन के पन्ने खुलने शुरू होते हैं तो साधु-संत नाम से ही नफरत होना शुरू हो गई है।


अभी हाल ही में देश को काला धन वापस लाने के नाम पर बाबा रामदेव काफी चर्चा में हैं, जिनका वेश भले ही साधु-संत का है, लेकिन वह भी साध्वी के नाम पर उमा भारती और ऋतंभरा के नक्शे कदम पर चलकर राजनीति कर रहे हैं। उनकी महत्वकांक्षा सभी के सामने है। वह चार्टर विमान में घूम रहे हैं। विदेशों में धन संपदा का विरोध करने वाले इस स्वयंभू बाबा रामदेव की कई देशों में संपत्ति है। इनके ट्रस्टों में हजारों करोड़ों रुपये हैं और उनका अवैध रुप से निवेश कंपनियों में किया जा रहा है। ट्रस्टों में दान के जरिए ही मात्र 16 ‍वर्षों में हजारों करोड़ रुपये एकत्र करने वाले बाबा रामदेव भले ही नेताओं पर पार्टी फंड के नाम पर अवैध वसूली को काला धन बताकर उसको विदेशी बैंक में रखने का विरोध कर रहे हैं, लेकिन स्वयं की विदेशी संपत्ति और विदेशों में किया जा रहा निवेश उनको कहीं काला धन नहीं दिख रहा है। वह राष्ट्रवाद के नाम पर विदेशियों को भी कोस रहे हैं, लेकिन उनको अपनी आयुर्वेदिक और ट्रस्ट की गतिविधि चलाने के लिए एक अदद बालकृष्ण भी विदेशी ही मिले, जिन्होंने विधिवत भारतीय नागरिक बने बगैर ही यहां की पासपोर्ट सुविधा ले ली है।


खुद रामदेव और उनके स्टाइल को देखकर हमें एक बार फिर याद आ जाती है योग गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी की। उनके द्वारा भी खाली हाथ योग का धंधा शुरू किया गया और टीवी को माध्यम बनाकर वह भी कुछ ही वर्षो में करोड़ों के मालिक और चार्टर विमान में यात्रा करने वाले अति विशिष्ट व्यक्ति बन गए थे। जिनके तमाम धंधों में हथियारों की फैक्टरी भी बताई जाती थी। दिल्ली में उन्होंने सबसे पहले अपना आशियाना तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एवं पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा के सर्वेंट रूम को बनाया था, लेकिन फिर वह भी समय आया, जब देश की सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के आवास पर उनकी बेरोकटोक एंट्री होने लगी।


बाबा रामदेव ही क्यों चंद्रा स्वामी हो या फिर तमाम भगवाधारी साधु के रूप में ऐसे लोग जो नाम के लिए कथावाचक हैं या फिर आध्यात्मि क गुरु, इन सभी का उद्देश्य आम आदमी की तरह ही अधिकाधिक धन का संचय करना और भौतिक सुविधाओं के अंबार लगाना,, आश्रम के नाम पर महल बनाना। चमचमाती गाड़ियां एकत्र करना ही रह गया है, ऐसे में भला ये साधु-संत कैसे भगवान के दूत हो सकते हैं। ये तो कहीं न कहीं धर्म और आध्यात्म काराबोरी लगते हैं। धर्मगुरु स्वयं ही अपनी उपाधि 108, 1008 लगाकर कई जगदगुरु और कई स्वयं ही शंकराचार्य ही बन गए हैं। इनको लाल बत्ती, गाडि़यों के काफिलों में चलते हुए देखा जाता है, तो कई सत्संग के नाम पर अरबों की संपत्त‌ि एकत्र कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षोँ में इन पाखंडी साधु-संतों की खूब पोल खुल रही है उनपर आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद जनता फिर भी इन पाखंडी साधु-संतों के झांसे में फंस रही है।


Comments

Popular posts from this blog

mirror of society : समाज का आईना है "फीका लड्डू"