केजरीवाल जी जुबान पर लगाम लगाओ !
टीम अन्ना के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल ने ग्रेटर नोएडा में शनिवार को यह कहकर सियासी बवाल पैदा कर दिया कि संसद में हत्यारे, लुटेरे और बलात्कारी बैठे हुए हैं। उनके इस बयान के बाद सभी राजनीतिक दलों ने उनके वक्तव्य पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि इससे साफ है कि लोकतंत्र और संविधान में उनका विश्वास नहीं है। तमाम राजनीतिक दलों के आपत्ति करने के बावजूद आज पूरे दिन विभिन्न खबरिया चैनलों पर अरविंद केजरीवाल अपने बयान पर अड़े रहे।
केजरीवाल का कहना है कि संसद में 163 सदस्यों पर बेहद संगीन मामले दर्ज हैं। इसी संसद में बलात्कारी, हत्यारे और लुटेरे बैठे हैं। ऐसे में देश का भला कैसे होगा ? लोकपाल बिल पास होने की उम्मीद कैसे की जा सकती है।  गरीबी और भ्रष्टाचार से मुक्ति कैसे मिलेगी। अब तो संसद ही समस्या बन गई है। इसके चरित्र को बदलने की जरूरत है।केजरीवाल भ्रष्टाचार के मामले में मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई को भी ड्रामा मानते हैं। यह कार्रवाई सिर्फ वोट बटोरने के उद्देश्य से की जा रही है।
वैसे तो जबसे टीम अन्ना के आंदोलन को जब से देश की जनता ने तवज्जों देना बंद किया है, तब से इस टीम के सभी सदस्यों के बहके-बहके बयान आ रहे हैं, लेकिन केजरीवाल के संसद को अपमानित करने वाले बयान को लेकर काफी दुख हुआ है। आखिर केजरीवाल किस गलतफहमी में हैं, क्या जो वह कह और कर रहे हैं बस, वही ठीक है। वह पूरी व्यवस्था को कैसे खराब मान सकते हैं। व्यवस्था में कोई दोष कतई नहीं है और लोकतंत्र से अच्छी कोई व्यवस्था हो भी नहीं सकती है। केजरीवाल यदि मानते हैं कि वह और उनकी टीम देश की जनता का नेतृत्व करती है तो वे क्यों घरों में दुबके बैठे हैं खुलकर राजनीतिक दल बनाकर जनता के बीच जाएं और संसद में सभी सीटों पर अच्छे ईमानदार और स्वच्छ छवि के लोगों को लेकर बैठें तथा अपनी मनपसंद के कानून बनाकर अपनी इच्छानुसार देश की व्यवस्था सुधारने का काम करें। उनको खुद पता चल जाएगा कि लोकतंत्र में कोई भी एक व्यक्ति अपनी मनमर्जी से कुछ नहीं कर सकता है। सभी संवैधानिक संस्थाएं एक-दूसरे के प्रति जवावदेह हैं और इन सब में जनता की स्थिति सर्वोच्च है। इसलिए जब तक केजरीवाल जी या उनकी टीम व्यवस्था बदलने की हैसियत में नहीं आ जाती तब तक आंदोलन खूब करें, लेकिन अपनी जुबान पर लगाम अवश्य लगानी चाहिए और आत्मचिंतन भी करना चाहिए कि जिन सुधारों या फिर व्यवहार की हम दूसरों, विशेष रूप से नेताओं से अपेक्षा करते हैं, क्या वह खुद भी स्वेच्छा से उनके लिए दृढ़ निश्चियी हैं।   
केजरीवाल को मान लेना चाहिए कि उनका बयान न केवल लोकतंत्र और संसद का अपमान है बल्कि जनता का भी अपमान है क्योंकि देश की जनता ही सांसदों को चुनती है और उन्हें संसद में पहुंचाती है। सस्ती लोकप्रियता के लिए इस तरह के बयान देने से उनको बचना चाहिए। 

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