आशीष नंदी ने आईना दिखाया !
प्रमुख समाजशास्त्री आशीष नंदी ने जयपुर साहित्य महोत्सव में कहा था कि ज्यादातर भ्रष्ट लोग पिछड़ी और दलित जातियों से आते हैं। उनके इस बयान को लेकर राजनीतिक हलकों में बवाल मचा हुआ है। राजस्थान के मीणा समाज के नेता राजपाल मीणा ने उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवा दी थी। महोत्सव परिसर के बाहर युवाओं का समूह, यह कौन है नंदी, जिसकी सोच है गंदी, स्लोगन वाले पोस्टर लेकर प्रदर्शन करते देखे गए। जयपुर के अंबेडकर चौक पर धरना भी दिया गया। दलित नेताओं ने आशीष नंदी को गिरफ्तार करने के लिए अल्टीमेटम भी दिए। जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील ने भी नंदी का मुंह काला करने की धमकी दी। यहां तक कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान, आरपीआई नेता रामदास अठावले आदि सभी नेता नंदी के बयान को लेकर गुस्से में हैं। 
यह निर्विवाद रूप से सही है कि आशीष नंदी को किसी भी एक वर्ग या किसी जाति विशेष पर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगाना चाहिए था। चूंकि भ्रष्टाचार न तो किसी एक जाति तक सीमित है और न ही इसके लिए गरीबी-अमीरी कोई मायने रखती है। एक गरीब बहुत बड़ा ईमानदार हो सकता है जबकि एक अमीर बड़ा भ्रष्टाचारी हो सकता है, ऐसे तमाम उदाहरण प्रत्येक व्यक्ति को चारों ओर देखने को मिल सकते हैं।
नंदी के बयान की भले ही सभी लोग ‌निंदा करके अपने को एससी, एसटी और ओबीसी का हिमायती साबित करने का काम कर रहे हों, लेकिन यह अवश्य ध्यान देना होगा कि एक प्रतिष्ठा वाले समाजशास्त्री ने ऐसा क्यों कहा, उसकी ऐसी धारणा क्यों बनी?  नंदी ने अपने बयान को वापस नहीं लिया है, बल्कि लोगों की भावनाओं की कद्र करते हुए खेद जताया है। नंदी ने यदि यह माना है कि जहां भी दलित या पिछड़े वर्ग के लोग सत्ता में आए हैं, वहां भ्रष्टाचार चरम पर पहुचे। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और मायावती क्या इस बात का हिसाब दे सकते हैं कि उनके द्वारा अरबों रुपये की घोषित अघोषित संपत्ति कहां से एकत्र कर ली, बिहार में लालू प्रसाद यादव क्या अपने पास इकट्ठा संपत्ति को नकार सकते हैं  जबकि उनकी संपूर्ण आय (विधायक, सांसद और मंत्री, मुख्यमंत्री के तौर पर मिले वेतन और भत्ते) से तो कतई इतनी संपत्ति एकत्र नहीं की जा सकती है। ये नेता उदाहरण मात्र हैं। इसके अलावा भी तमाम क्षेत्रों के विधायक से लेकर सांसद, मंत्री और मुख्यमंत्री तक चपरासी से लेकर अफसर कर अकूत संपत्ति के मालिक बने दिखाई दे रहे हैं।  इसलिए यह स्पष्ट है कि यह संपत्ति भ्रष्टाचार से एकत्र की गई है। आम दलित, पिछड़े वर्ग का कोई व्यक्ति तो भ्रष्टाचार नहीं कर सकता है। भ्रष्टाचार तो सर्वाधिक राजनेता और  सरकारी तंत्र से जुड़े कर्मचारी और अफसर ही कर रहे हैं। इसलिए ईमानदारी से की जाने वाली जांच से स्पष्ट हो सकता है कि किसके पास कितनी संपत्ति है और उसने किस स्रोत से इसे एकत्र किया है। 
मेरा मानना है कि आशीष ने समाज को एक आईना दिखाया है, जिसकी निंदा करने की बजाय हमें आत्मचिंतन करना चाहिए कि आखिर एक समाजशास्त्री की ऐसी धारणा क्यों बनी है। दलित और पिछड़े समाज के राजनेताओं और अफसरों को इसे चुनौती के रूप में लेकर अपने को बेहद ईमानदार और कर्मठ साबित करके अपनी पहचान बनानी चाहिए। केवल बयान की निंदा करने मात्र से काम नहीं चलेगा, बल्कि असल में गरीब को ही अग्नि परीक्षा देकर अपने को साफ-सुथरा साबित करना होता है चूंकि अभाव के इतिहास में उसी पर बेईमानी के आरोप लगाए जाते हैं!  

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