मायावती का दलित विरोधी ढोल
बसपा की अध्यक्ष मायावती जी जब भी मीडिया से बात करती हैं, उनकी शुरूआत में दलित विरोधी ढोल पीटना एक आदत बन गई है। उन्होंने कहा कि मान्यवर कांशीराम के प्रेरणा स्थल के बंगले और उनके भाई तथा उनकी संपत्ति को लेकर जारी खबर पूरी तरह दलित विरोधी मानसिकता का प्रमाण है। कुछ हद तक उनका यह आरोप सच हो सकता है, लेकिन क्या उनको यह नहीं बताना चाहिए कि सत्ता में आने से पहले तक साधारण परिवार कैसे अरबोपति बन गया है? उनके और उनके परिजनों के नाम यह अकूत संपत्ति कहां से आ गई है? अब वह कांग्रेस को कोस रही हैं, तो फिर पिछले
9 वर्षों से कांग्रेस की सरकार को समर्थन देने का काम क्यों कर रही हैं? या फिर भोले-भाले दलितों को गुमराह करने के लिए ही उनको डॉ. अंबेडकर या फिर अब मान्यवर कांशीराम की याद आती है।
वह 2007 में उत्तर प्रदेश के सभी वर्गों के सहयोग से पूर्ण बहुमत की मुख्यमंत्री बनी तो उनको लगा कि अब वह देश की प्रधानमंत्री बन जाएंगी, जिसके लिए उन्होंने और उनके कुछ खास चहेतों ने 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान खूब मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखे भी और दलितों को दिखाए भी। लोकसभा का चुनाव हुआ तो गैर दलित वोटों ने उनका हसीन सपना तोड़ दिया। 2012 के विधानसभा चुनाव में भी गैर दलित वोट उनको नहीं मिले, जिनका मिलना अभी भी कहीं नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में उनका केंद्र में ताकतवर बनना आसान नहीं है, लेकिन अपनी राजनीतिक सुरक्षा और दलित वोटों के आधार पर गैर दलित नेताओं को टिकट बेचने के लिए वह एक बार फिर दलितों को भ्रमित करने की कोशिश कर रही हैं। दलितों को चाहिए कि वे अब मायावती जी के द्वारा दिखाए जा रहे मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने से बचें और हकीकत को समझकर देश में सांप्रदायिक ताकतों को परास्त कर अपनी ताकत को मजबूती के साथ पेश करने का काम करें। चूंकि भारतीय जनता पार्टी की यदि सरकार बनी तो फिर संविधान संशोधन के नाम पर दलितों के तमाम हकों को समाप्त करने की साजिश की जा सकती है।
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