आरुषि के मां-पिता की दलीलों
को सुना जाना चाहिए !
आरुषि मर्डर मिस्ट्री में उसके
मां-बाप को उम्रकैद की सजा सुना दी गई। इस बाबत राजेश तलवार के भाई दिनेश तलवार के
तर्क मैने टीवी पर सुने, जिसको सुनकर मुझे लगता है कि कहीं न कहीं राजेश
तलवार और नुपूर तलवार को इस मामले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट
का विरोध करना ही महंगा पड़ गया है।
मुझे एक बार का वाक्या
याद आता है कि उत्तर प्रदेश में ही एक व्यापारी की हत्या हो गई थी। उस हत्या
के खुलासे और हत्यारों को पकड़ने के लिए व्यापारी का एक दोस्त काफी
पैरवी कर रहा था। जब पुलिस हत्या का खुलासा करने में नाकाम हो रही
थी और मृतक व्यापारी के दोस्त की पैरवी से परेशान थी तो पुलिस
ने इस केस का खुलासा करते हुए निर्दोष दोस्त को ही कातिल बनाकर जेल
भेज दिया। नतीजा यह हुआ कि उसको उम्रकैद हो गई और व्यापारी का
परिवार नगर छोड़कर कई दूर दूसरे शहर में जाकर बस गया। उम्रकैद की सजा के करीब
10 वर्ष जेल में गुजारने के बाद शहर में चर्चा हुई कि हत्या तो शातिर
अपराधियों ने अपनी मामूली कहासुनी होने की रंजिश में की थी, लेकिन तब तक व्यापारी
के दोस्त का जीवन तबाह हो चुका था। कहीं आरुषि की हत्या में ऐसा ही न हो
?
राजेश तलवार और नुपूर तलवार को
उम्रकैद की सजा को लेकर दिनेश तलवार ने जो तर्क रखे हैं, वे गौर
करने योग्य हैं। अपराधी हमेशा इस बात के प्रयास में रहता है कि किसी
भी तरह उसके अपराध की जांच या विवेचना बंद हो जाए, लेकिन राजेश तलवार और नुपुर
तलवार ने हमेशा इस बात के प्रयास किए कि उच्च से उच्चतम तकनीकि वाली विधि और
वैज्ञानिक जांच की जाए ताकि आरुषि की हत्या का खुलासा होकर अपराधी पकड़े
जा सकें। इसीलिए उन्होंने सीबीआई की ओर से
क्लोजर रिपोर्ट का विरोध किया।
अजीब इत्तेफाक है कि
सीबीआई ने ठोस सुबूतों को जुटाने की बजाय आधे-अधूरे साक्ष्यों के आधार
पर राजेश तलवार और नुपूर तलवार को न केवल अपनी बेटी का हत्यारा साबित
कर दिया, बल्कि उनको इस आधुनिक समाज में बहुत बड़ा विलेन बनाकर समाज
के लिए घृणति मां-बाप का प्रतीक बना दिया है।
सीबीआई के साक्ष्यों पर कोर्ट
ने उम्रकैद की सजा सुनाई, उसपर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं,
लेकिन मुझे दिनेश तलवार की यह बात काफी हद तक सही मालूम पड़ती
है कि तलवार दंपति द्वारा क्लोजर रिपोर्ट का
विरोध कर उच्च तकनीकी जांच कर हत्या का सही खुलासा कर हत्यारों
को पकड़ने की मांग की गई, जिससे झल्लाकर दंपति को ही उल्टा
फंसा दिया गया है।
ऐसे में उच्च और
उच्चतम स्तर पर यह प्रयास किए जाने चाहिए कि राजेश और
नुपूर ही हत्यारें हैं तो उनको ठोस सुबूतों के आधार पर स्पष्ट किया
जाना चाहिए। महज घटनास्थल और बाद की परिस्थितियों को साक्ष्य मानकर उन्हें
दोषी नहीं माना चाहिए।
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