पासवान ने एनडीए में शामिल होकर कोई गलती नहीं की
वर्ष 2002 के गुजरात दंगे को लेकर 12 साल पूर्व राजग से अलग होने वाले
लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने कहा कि एनडीए में शामिल होकर उन्होंने
कोई गलती नहीं की क्योंकि कांग्रेस और आरजेडी के साथ गठबंधन को लेकर
अनिश्चितता के बीच उन्हें जिस तरह से अपमानित और किनारे कर दिया. इसके बाद
अपनी पार्टी के हित को ध्यान में रखकर उन्हें यह फैसला करना पड़ा.पटना
में पत्रकारों से बातचीत करते हुए पासवान ने कहा कि उन्होंने व्यक्तिगत
आदर्श भावना में बहकर धर्मनिरपेक्षता और पुराने गठबंधन (आरजेडी और लोजपा
का) के नाम पर कांग्रेस और आरजेडी के साथ समझौते के लिए समय को बर्बाद किया
जबकि लोजपा संसदीय बोर्ड का कहना था कि उन्हें बिना समय गंवाये यूपीए या
एनडीए में जाने को लेकर निर्णय ले लेना चाहिए.
उन्होंने कहा कि उन्हें यह अंदाजा हो गया था कि इसी तरह गठबंधन के मामले को खींचकर चुनाव की घोषणा तक ये दोनों दल ले जाएंगे और अंत में लोजपा को दो-तीन सीट देने की पेशकश कर उससे कहते कि उन सीटों पर चुनाव लड़ना है तो लड़ो नहीं तो अपना रास्ता अलग करो. पासवान ने कहा कि एनडीए में उनकी पार्टी के जाने का सबसे बड़ा कारण उनके द्वारा अपमानित और किनारे कर दिया जाना था और लोग समझने लगे थे कि लोजपा का कोई अपना आस्तित्व ही नहीं है तथा कार्यकर्ताओं को जगह-जगह अपमानित होना पड़ रहा था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस और आरजेडी के साथ गठबंधन को लेकर अनिश्चितता के कारण लोजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के बागी रुख अख्तयार करते देख उन्हें एनडीए में जाने का फैसला लेना पड़ा.
यह पूछे जाने पर कि कैसे वे अपने मतदाताओं को समझाएंगे पासवान ने कहा कि उनका मतदाता उनसे आगे है और उनकी मांग थी कि हमें एनडीए के साथ जाने का निर्णय लेना चाहिए बल्कि एनडीए में अब जाने के बाद मतदाताओं का कहना है कि ये निर्णय उन्होंने पहले क्यों नहीं लिया. पासवान ने कहा कि वे तो अब एनडीए में शामिल हो गए हैं पर लोकसभा चुनाव की घोषणा हो जाने के बावजूद भी आज तक कांग्रेस और आरजेडी के बीच गठबंधन को लेकर निर्णय नहीं हो पाया है, वैसी परिस्थिति में हम कहीं के नहीं रहते.
उन्होंने कहा, ‘हमको इस स्तर पर लाया गया और उन्हें यहां तक धकेला गया कि उनके पास कोई चारा नहीं बचा था. हमारी पार्टी की अपनी विचारधारा है और यह उनकी पार्टी के आस्तित्व को लेकर लड़ाई है.’ यह पूछे जाने पर क्या उनका दिल अभी भी धर्मनिरपेक्षता के लिए धड़कता है और मजबूरी में इधर आए हैं, पासवान ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता तो उनका मिशन और उसके लिए वे अभी भी संकल्पित है तथा उसके लिए हमेशा उनका दिल धड़कता रहेगा.
यह पूछे जाने पर क्या एनडीए के साथ मजबूरी का गठबंधन है पासवान ने इससे इनकार करते हुए कहा कि वे यह महसूस करते हैं गठबंधन पहले हो जाना चाहिए था और जहां तक विचाराधारा का सवाल उनकी पार्टी भाजपा में विलय नहीं हुआ है.
उन्होंने कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर भले ही आरोप लगता हों पर पिछले एक वर्ष के दौरान उनके किसी भी भाषण में जरा भी सांप्रदायिकता नहीं दिखाई दी है. पासवान ने कहा कि एक मुद्दा यह है कि विकास और समाज के सभी वर्ग को साथ लेकर चलना है क्योंकि भारत एक बगीचा के समान है जिसमें सभी धर्म और समुदाय के लोग हैं और बागीचा का माली वही अच्छा होता है जहां हर तरह के फूल खिलते हैं और बातें उन्होंने नरेंद्र मोदी से भी कही हैं.
पासवान ने कहा कि वे भले ही 12 साल बाद एनडीए में लौटे हैं लेकिन देश की जनता ने यह मन बना लिया है कि इस बार केंद्र में सत्ता का परिवर्तन करना है और उन्हें लगता है कि इस बार केंद्र में एनडीए की सरकार बनेगी. उन्होंने कहा कि लोजपा एनडीए के अन्य घटक दलों के साथ तालमेल कर बिहार में सात सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ रही है जिसमें से जमुई, मुंगेर, हाजीपुर, समस्तीपुर, नालंदा, वैशाली और खगड़िया.
उन्होंने कहा कि उन्हें यह अंदाजा हो गया था कि इसी तरह गठबंधन के मामले को खींचकर चुनाव की घोषणा तक ये दोनों दल ले जाएंगे और अंत में लोजपा को दो-तीन सीट देने की पेशकश कर उससे कहते कि उन सीटों पर चुनाव लड़ना है तो लड़ो नहीं तो अपना रास्ता अलग करो. पासवान ने कहा कि एनडीए में उनकी पार्टी के जाने का सबसे बड़ा कारण उनके द्वारा अपमानित और किनारे कर दिया जाना था और लोग समझने लगे थे कि लोजपा का कोई अपना आस्तित्व ही नहीं है तथा कार्यकर्ताओं को जगह-जगह अपमानित होना पड़ रहा था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस और आरजेडी के साथ गठबंधन को लेकर अनिश्चितता के कारण लोजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के बागी रुख अख्तयार करते देख उन्हें एनडीए में जाने का फैसला लेना पड़ा.
यह पूछे जाने पर कि कैसे वे अपने मतदाताओं को समझाएंगे पासवान ने कहा कि उनका मतदाता उनसे आगे है और उनकी मांग थी कि हमें एनडीए के साथ जाने का निर्णय लेना चाहिए बल्कि एनडीए में अब जाने के बाद मतदाताओं का कहना है कि ये निर्णय उन्होंने पहले क्यों नहीं लिया. पासवान ने कहा कि वे तो अब एनडीए में शामिल हो गए हैं पर लोकसभा चुनाव की घोषणा हो जाने के बावजूद भी आज तक कांग्रेस और आरजेडी के बीच गठबंधन को लेकर निर्णय नहीं हो पाया है, वैसी परिस्थिति में हम कहीं के नहीं रहते.
उन्होंने कहा, ‘हमको इस स्तर पर लाया गया और उन्हें यहां तक धकेला गया कि उनके पास कोई चारा नहीं बचा था. हमारी पार्टी की अपनी विचारधारा है और यह उनकी पार्टी के आस्तित्व को लेकर लड़ाई है.’ यह पूछे जाने पर क्या उनका दिल अभी भी धर्मनिरपेक्षता के लिए धड़कता है और मजबूरी में इधर आए हैं, पासवान ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता तो उनका मिशन और उसके लिए वे अभी भी संकल्पित है तथा उसके लिए हमेशा उनका दिल धड़कता रहेगा.
यह पूछे जाने पर क्या एनडीए के साथ मजबूरी का गठबंधन है पासवान ने इससे इनकार करते हुए कहा कि वे यह महसूस करते हैं गठबंधन पहले हो जाना चाहिए था और जहां तक विचाराधारा का सवाल उनकी पार्टी भाजपा में विलय नहीं हुआ है.
उन्होंने कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर भले ही आरोप लगता हों पर पिछले एक वर्ष के दौरान उनके किसी भी भाषण में जरा भी सांप्रदायिकता नहीं दिखाई दी है. पासवान ने कहा कि एक मुद्दा यह है कि विकास और समाज के सभी वर्ग को साथ लेकर चलना है क्योंकि भारत एक बगीचा के समान है जिसमें सभी धर्म और समुदाय के लोग हैं और बागीचा का माली वही अच्छा होता है जहां हर तरह के फूल खिलते हैं और बातें उन्होंने नरेंद्र मोदी से भी कही हैं.
पासवान ने कहा कि वे भले ही 12 साल बाद एनडीए में लौटे हैं लेकिन देश की जनता ने यह मन बना लिया है कि इस बार केंद्र में सत्ता का परिवर्तन करना है और उन्हें लगता है कि इस बार केंद्र में एनडीए की सरकार बनेगी. उन्होंने कहा कि लोजपा एनडीए के अन्य घटक दलों के साथ तालमेल कर बिहार में सात सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ रही है जिसमें से जमुई, मुंगेर, हाजीपुर, समस्तीपुर, नालंदा, वैशाली और खगड़िया.
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