दलित नायक : बीपी मौर्य

राजेन्द्र मौर्य

लीगढ़ के खैर में एक साधारण परिवार में जन्म लेने वाले बुद्ध प्रिय मौर्य का मूल नाम भगवती प्रसाद था। बीएससी और फिर एलएलएम करने के बाद वे अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में ही प्राध्यापक रहे। वैसे उनका जन्म 12 सितंबर 1928 को होना बताया जाता है, लेकिन बुद्ध प्रिय मौर्य सदैव कहा करते थे कि उनका जन्म ज्येष्ठ माह में तब हुआ था जब उनकी माता खेत में मजदूरी कर रही थीं। उस समय बैसाख माह की पूर्णिमा अर्थात बुद्ध पूर्णिमा थी। इसलिए वे अपना जन्मदिन बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही मनाते थे। पहली बार उन्होंने 1962 में अलीगढ़ लोकसभा सीट से रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के बैनर तले चुनाव लड़ा। मुस्लिम बहुल्य सीट होने के बावजूद उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार को हराकर सीट हासिल की थी। उस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार के पक्ष में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू ने सभा को संबोधित किया था। सांसद बनने के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया व सोशलिस्ट पार्टी के गठबंधन के तहत 1967 में यूपी में गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। इस गठबंधन के 67 विधायक चुनकर विधानसभा में पहुंचे थे। गाजियाबाद से प्यारेलाल शर्मा भी उसी गठबंधन के प्रत्याशी थे और चुनाव जीते थे। तब मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह बने थे। 1971 में उन्होंने हापुड़- गाजियाबाद लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत गए। यहां से वे कांग्रेस के साथ हो गए थे। पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने बीपी मौर्य को अपनी कैबिनेट में उद्योग के साथ ही कई विभागों का मंत्री बनाया। 1977 में जब सभी नेता इंदिरा गांधी को छोड-छोड़कर जा रहे थे, तब मौर्य उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे थे। इंदिरा गांधी ने चुनाव हारने पर मौर्य को आंध्र प्रदेश से राज्यसभा में भेजा।  इसके बाद उन्होंने 1989 में चुनाव लड़ा और दूसरे नंबर पर रहे।  1991 में हुए लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने इसी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और तीसरे नंबर पर रहे। इसके बाद वह कोई चुनाव नहीं लड़े।
उनके राजनीतिक जीवन में कई बार उतार चढ़ाव आए लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। उन्हें जब लगा कि उनके समाज की अनदेखी की जा रही तब ही उन्होंने अपने निर्णय लेने में कोई देर नहीं की। अपने राजनीतिक जीवन के आखिरी अध्याय को उन्होंने भाजपा में रहते हुए पूरा किया। भाजपा में शामिल होने के बाद वे फिर किसी पार्टी में नहीं गए। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उन्हें आदर्शवादी नेता मानते थे। भाजपा ने उनका चुनावों में खूब इस्तेमाल किया, लेकिन उनको सम्मान के नाम पर हाल यह रहा कि 2004 में जब उनका निधन हुआ था तो भाजपा का कोई स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय नेता तक अंतिम संस्कार और उसके बाद ‌परिजनों को सांत्वना तक देने नहीं पहुंचा।
दलितों में संघर्ष करने की जो भावना, जागरूकता उत्तर प्रदेश में आई उसके असली जनक बीपी मौर्य ही थे। बसपा प्रमुख सुश्री मायावती ने तो वह फसल काटी है, जिसका बीजारोपण बीपी मौर्य ने किया था। आज दलित समाज के लोग भी बीपी मौर्य को भूल बैठे हैं। 27 सितंबर 2004 को उनके निधन पर पूर्व सांसद सुरेन्द्र प्रकाश गोयल, पूर्व केन्द्रीय मंत्री चांदराम, रवि गौतम, दिल्ली के विधायक राजकुमार जैन आदि ही नेता और जनप्रतिनिधि पहुंचे थे। भाजपा के स्थानीय, प्रदेश या राष्ट्रीय नेता उनके अंतिम संस्कार में नहीं पहुंचे थे।
बीपी मौर्य ने 14 नवंबर 1976 को गाजियाबाद जिला घोषित कराया। उस समय नारयण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। गाजियाबाद के लोगों को अपने काम के लिए मेरठ की दौड़ लगानी पड़ती थी। बुद्ध प्रिय मौर्य जनता का दर्द जानते थे और उन्होंने नारायण दत्त तिवारी से गाजियाबाद को जिला घोषित करने की वकालत की। बुद्ध प्रकाश मौर्य ने गाजियाबाद को जिला बनवाया। लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अब इस जिले में भी कहीं उनका कोई नाम तक नहीं लेता। उनके नाम से न तो शहर में कोई पार्क और न ही किसी चौराहे का नामकरण उनके नाम से किया गया। यह बात अलग है कि वे दलितों के उत्थान के हमेशा पक्षधर रहे लेकिन गाजियाबाद की तरक्की के लिए उद्योगों को बढ़ावा देने में भी वे पीछे नहीं रहे। नोएडा की स्थापना में भी बीपी मौर्य का अहम योगदान रहा। 

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